Explainer: कौन हैं पसमांदा मुसलमान, पीएम मोदी ने जिन्हें जोड़ने का किया आह्वान; क्या हैं इसके राजनीतिक मायने
Pasmanda Muslims भारतीय मुसलमान मुख्यतः तीन वर्गों में विभाजित हैं। पिछले दिनों पीएम मोदी ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से अपील की थी कि वह मुसलिम समुदाय के गरीब तबके तक भी पहुंच बनाएं। इसे भाजपा की भविष्य की राजनीति के रोडमैप के तौर पर देखा जा रहा है।
By Amit SinghEdited By: Updated: Tue, 12 Jul 2022 05:44 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। भाजपा ने पिछले सप्ताह हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की एक मीटिंग की थी। इस मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से अपील की थी कि वह समाज के सबसे पिछड़े तबके तक अपनी पहुंच बनाएं। उन्होंने कहा था केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों के कमजोर तबके तक भी हमें पहुंच बनानी चाहिए। अल्पसंख्यक समुदाय का जिक्र करते हुए उन्होंने 'पसमांदा मुस्लिमों' (Pasmanda Muslims) का उदाहरण दिया था।
पीएम मोदी द्वारा पार्टी मीटिंग में मुस्लिम समाज के एक विशेष और पिछड़े तबके का जिक्र किया गया। इसने राजनीतिक विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित किया है। राजनीतिक और मुस्लिम मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि पीएम मोदी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत पसमांदा मुस्लिमों का जिक्र किया है। ये भाजपा की भविष्य की राजनीति का रोडमैप हो सकता है। भाजपा मुस्लिम समुदाय के उस वर्ग पर फोकस कर रही है, जो पारंपरिक तौर पर विपक्षी दलों का वोट बैंक माना जाता है।
भारतीय मुसलमानों के तीन वर्ग
भारतीय मुसलमानों को मुख्यतः तीन सामाजिक समूहों में विभाजित किया जा सकता है। पहला अशरफ (Ashraf), दूसरा अजलाफ (Ajlaf) और तीसरा अरजाल (Arzal)। ये तीनों वर्ग मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक हैसियत दर्शाते हैं।
अशरफ मुसलमान (Ashraf Muslims)
अशरफ मुसलमानों का वो सामाजिक वर्ग है जो पारंपरिक तौर पर प्रभावशाली माना जाता है। मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक इस समूह में ऐसे मुसलमान शामिल हैं, जो मुस्लिम विजेताओं के वंश से ताल्लुक रखते हैं। इनमें उच्च जाति के हिंदू भी शामिल हैं, जिन्होंने बहुत पहले इस्लाम धर्म अपना लिया था। अशरफ मुसलमानों में सैयद, मुगल, पठान आदि जातियां शामिल हैं। इसके अलावा हिंदू धर्म की उच्च जातियों से इस्लाम धर्म अपनाने वाले जैसे रंगद (मुस्लिम राजपूत) या तागा (त्यागी मुसलमान) भी इसी वर्ग में शामिल हैं। अशरफ मुसलमान, आर्थिक रूप से संपन्न और सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित व उच्च पदों पर है।
अजलाफ और अरजाल मुसलमान (Ajlaf & Arzal Muslims)पसमांदा एक फारसी शब्द है, जिसका मतलब होता है 'पीछे छूट' गए लोग मतलब पिछड़े। अज्लाफ और अर्जल दोनों वर्गों को सामूहिक रूप से पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है। इसमें मुस्लिम समुदाय के आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोग शामिल हैं।पसमांदा बनाम अन्यविशेषज्ञों का मानना है कि पसमांदा मुसलमानों को बाकी मुस्लिमों की तुलना में निचले स्थान पर रखा गया। ऐसा इसलिए क्योंकि ये वो मुसलमान हैं, जिन्होंने दूसरे धर्मों से परिवर्तित होकर इस्लाम (Converted Muslims) अपनाया। धर्म परिवर्तन करने वाले ये मुसलमान स्थानीय आबादी का हिस्सा थे और इन्होंने काफी बाद में इस्लाम धर्म अपनाया है। इनमें से ज्यादातर लोगों ने व्यवसाय के आधार पर अपनी टाइटल का इस्तेमाल किया, जैसे अंसारी (बुनकर) और कुरैशी (कसाई) आदि।
80 फीसद हैं पसमांदापसमांदा मुसलमानों के नेताओं का दावा है कि भारतीय मुस्लिमों की कुल जनसंख्या में उनकी आबादी लगभग 80-85 फीसद है। शेष 15-20 फीसद आबादी अशरफों की है। पसमांदा समुदाय ने कई बार आवाज उठाई कि मुस्लिम आबादी में उनकी संख्या ज्यादा होने के बावजूद, नेतृत्व वाले पदों पर अशरफ मुस्लिमों का कब्जा है। 14वीं लोकसभा में पहली बार करीब 400 मुस्लिम सदन में पहुंचने में कामयाब रहे। इसमें पसमांदा बैकग्राउंड के मुस्लिम नेताओं की संख्या मात्र 60 थी।
पसमांदा से हमदर्दी है तो बदलनी होगी विचारधारापत्रकार और समाज सेवक से राजनेता बने अली अनवर ने अपनी किताब 'मसावात की जंग - पसेमंजर : बिहार के पसमांदा मुसलमान' और 'दलित मुसलमान' में पसमांदा मुसलमानों के मुद्दों और उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति को प्रमुखता से उठाया है। उन्होंने पिछड़े व दलित वर्ग के मुस्लिमों की आवाज उठाने के लिए 1998 में पसमांदा मुस्लिम महज (Pasmanda Muslim Mahaz) नाम से संगठन बनाया था। वह बताते हैं कि मसावात का मतलब है बराबरी, जो कि इस्लाम की रीढ़ की हड्डी है। इसी मसावत मतलब बराबरी का दर्जा पाने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों ने इस्लाम धर्म अपनाया था। अली अनवर के अनुसार मुस्लिम दलितों की स्थिति में तब तक कोई सुधार नहीं हो सकता, जब तक उन्हें आर्टिकल 341 के तहत दलित घोषित कर आरक्षण न मिले। राजनीति में उनकी भागीदारी बढ़ाना भी आवश्यक है। इसलिए मुस्लिम सहित सभी धर्मों में जातिगत जनगणना जरूरी है। पसमांदा (पिछड़ा वर्ग या दलित वर्ग) सभी धर्मों में है। इसकी मांग 2009 में राज्यसभा सदस्य रहते हुए सदन में की थी। अगर वास्तव में पीएम मोदी को पसमांदा मुस्लिमों से हमदर्दी है और वह उन्हें साथ लाना चाहते हैं तो भाजपा को अपनी विचारधारा में परिवर्तन करना होगा।
मुस्लिम व ईसाई को दलित का दर्जा नहींअनुच्छेद 341 के तहत पूर्व में केवल हिंदू दलितों को मान्यता दी गई थी। बाद में अनुच्छेद में संशोधन किया गया और उन हिंदू दलितों को भी इसमें शामिल किया गया, जो धर्म बदलकर सिख या बौद्ध हो गए। वहीं, इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाने वाले हिंदू दलितों को इस कैटेगरी से बाहर कर दिया गया। मंडल आयोग की सिफारिश पर वीपी सिंह सरकार ने 1989 में ओबीसी वर्ग के लिए 27 फीसद कोटा निर्धारित किया था। तब मुस्लिमों की कई उपजातियों को इसमें शामिल किया गया था। अभी मुसलमानों की 79 उपजातियां ओबीसी कैटेगरी में आती हैं।।
योगी 2.0 में मुस्लिमों की भागीदारीपसमांदा मुस्लिमों को भाजपा से जोड़ने की मुहिम यूपी से शुरू हो चुकी है। योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल (Yogi Adityanath 2.0 UP Government) में पसमांदा समुदाय से आने वाले दानिश आजाद अंसारी (Danish Azad Ansari) को राज्य मंत्री बनाया गया। साथ ही जावेद अंसारी (Javed Ansari) को यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन (UP Board of Madarsa Education) का चेयरमैन नियुक्त किया गया। वहीं, चौधरी काफिल-उल-वारा (Chaudhary Kafil-Ul-Wara) को यूपी उर्दू अकादमी (UP Urdu Akademi) का चीफ नियुक्त किया गया है। जावेद और चौधरी काफिल भी पसमांदा समुदाय से आते हैं। इतना ही नहीं, यूपी के आजमगढ़ और रामपुर में पिछले दिनों हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने जीत दर्ज की थी। दोनों सीटों पर मुस्लिम वोटरों की संख्या काफी ज्यादा है। इस जीत को भी भाजपा की इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
पसमांदा मुस्लिमों की तीन प्रमुख मांग1. अनुच्छेद 341 के तहत दलित मुस्लिमों को आरक्षण मिले। दलित मुस्लिमों को भी 1936 से 1950 तक आरक्षण मिलता था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे खत्म कर दिया था। इसके बाद जिस तरह से सिख व बौद्धों के लिए आरक्षण फिर से बहाल हुआ, उसी तरह दलित मुस्लिमों को भी मिलना चाहिए।2. बिहार में जिस तरह से कर्पूरी ठाकुर ने आरक्षण का फार्मूला लागू किया था उसे अपनाया जाए, ताकि किसी भी धर्म अथवा जाति के लोगों में किसी तरह का भय अथवा संशय न हो।
3. पसमांदा मुस्लिमों के लिए नौकरी के अवसर और एमएसएमई सेक्शन के तहत सहायता।भाजपा अल्पसंख्यक शाखा ने तैयार किया खाकापीएम मोदी के सुझाव के बाद भाजपा की अल्पसंख्यक शाखा ने सबसे पिछड़े पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने का खाका तैयार कर लिया है। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख जमाल सिद्दीकी, खुद पसमांदा मुस्लिम वर्ग से हैं। मोर्चा के अधिकांश सदस्य पसमांदा समुदाय के विभिन्न वर्गों से हैं। उनके अनुसार, पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने के लिए दो तरह की योजना बनाई गई है। पहला ये सुनिश्चित करना कि उन तक मोदी सरकार की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचे। दूसरा संगठन, विशेषकर पार्टी इकाइयों में उन्हें प्रतिनिधित्व दिया जाएगा, जहां वे बहुमत में हैं। अल्पसंख्यक मोर्चा के सदस्य देशभर में पसमांदा मुसलमानों से संपर्क करेंगे। साथ ही भाजपा ने 1965 की जंग में शहीद हुए परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद जैसे पसमांदा समुदाय के नायकों को सम्मानित करने और उनकी जयंती पर समारोह आयोजित करने की भी योजना तैयार की है। भाजपा का प्रयास है कि विभिन्न राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले इस समुदाय तक पहुंच बना ली जाए।भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में है ये भेदभावउर्दु समाचार पत्र इंकलाब के पूर्व संपादक शकील शम्सी के अनुसार मूलतः मुसलमानों में जात-पात का कोई अंतर नहीं है। आर्थिक स्तर पर कोई कम-ज्यादा हो सकता है, लेकिन समाजिक स्तर पर सब बराबर हैं। इसलिए दलित मुस्लिम जैसा कुछ नहीं होता। केवल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में ही ये भेदभाव है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां लोगों ने अतीत में धर्म परिवर्तन तो कर लिया, लेकिन अपनी मजबूत वंशावली से बाहर नहीं निकल सके। इसलिए यहां के मुसलमान सामाजिक भेदभाव को नहीं मिटा सके। बाकी देशों में वंशावली सिस्टम इतना मजबूत नहीं था, इसलिए वहां ये भेदभाव उत्पन्न नहीं हुआ।