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2013 अप्रैल में सामने आया था सारधा और रोज वैली घोटाला, जानें- इन घोटालों की कहानी

2500 करोड़ का है सारधा चिट फंड घोटाला, करीब 17 लाख लोगों से ठगी की गई ये रकम। रोज वैली चिट फंड घोटाला भी तकरीबन 17000 करोड़ रुपये का है। जानें- इनका राजनीतिक कनेक्शन।

By Amit SinghEdited By: Updated: Wed, 06 Feb 2019 06:24 PM (IST)
2013 अप्रैल में सामने आया था सारधा और रोज वैली घोटाला, जानें- इन घोटालों की कहानी
कोलकाता [जागरण स्पेशल]। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के धरने पर बैठने से खड़े हुए सियासी भूचाल में एक बार फिर सारधा और रोज वैली घोटाले के पन्ने पलटे जाने लगे हैं। देश के इतिहास में सबसे बड़े घोटालों में दर्ज ये स्कैम बताते हैं कि कैसे आम आदमी को सपने दिखाकर उनसे हजारों करोड़ की ठगी की गई। सारधा चिटफंड घोटाला जहां 2500 करोड़ रुपये का बताया जाता है (जिनमें 17 लाख लोगों से ठगी की गई) वहीं रोज वैली घोटाला 17,000 करोड़ रुपये का निकला। एक नजर इन दो बड़े घोटालों पर...

सारधा में धांधली

  • 2006 में सुदीप्त सेन ने सारधा ग्रुप की स्थापना की थी। यह समूह अपने निवेश से प्राप्त आय की जगह नए निवेशकों को भुगतान पुराने निवेशकों से प्राप्त धन से करता था। बाद में सामने आया कि कंपनी ने नियमों का गंभीर उल्लंघन किया है।
  • पश्चिम बंगाल और उसके पड़ोसी राज्यों में लाखों लोगों के साथ हजारों करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का यह मामला 2013 में सामने आया। बाद में इस केस ने राजनीतिक मोड़ ले लिया और ममता सरकार पर इसे लेकर अंगुलियां उठाई जाने लगीं।
  • 14 मार्च 2013 को तत्कालीन कॉरपोरेट मामलों के मंत्री सचिन पायलट ने लोकसभा में ऐसी 87 कंपनियों की सूची जारी की जो पोंजी योजनाओं में संलिप्त थीं। इनमें से 73 पश्चिम बंगाल से थीं।
  • 2013 अप्रैल में सेबी के तत्कालीन चेयरमैन यूके सिन्हा ने मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि इस तथाकथित पोंजी स्कीम के जरिये 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जुटाई गई। उन्होंने कहा, ‘ऐसी योजनाओं में निवेश करने वाले सामान्य लोग एवं कर्मचारी हैं।’
  • लोगों का विश्वास खत्म होने पर सारधा समूह अप्रैल 2013 में डूब गया और सुदीप्त सेन सहयोगी देवयानी मुखर्जी के साथ पश्चिम बंगाल छोड़कर फरार हो गए। इसके बाद सारधा समूह के हजारों कलेक्शन एजेंट तृणमूल कांग्रेस के कार्यालय के बाहर जमा हुए और सुदीप्त सेन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
  • सारधा समूह के खिलाफ पहला मामला विधान नगर पुलिस आयुक्तालय में दायर किया गया, जिसका नेतृत्व राजीव कुमार कर रहे थे। 1989 बैच के आइपीएस अधिकारी राजीव कुमार ने अपनी टीम के साथ मिलकर सुदीप्त सेन को अप्रैल, 2013 को देवयानी के साथ कश्मीर से गिरफ्तार किया।
  • गिरफ्तारी के बाद राज्य सरकार ने राजीव कुमार के नेतृत्व में एक एसआइटी गठित की। एसआइटी ने टीएमसी से राज्यसभा के तत्कालीन सदस्य और पत्रकार कुणाल घोष को सारधा चिटफंड घोटाले में कथित तौर पर शामिल होने के मामले में गिरफ्तार किया।

छवि सुधारने का प्रयास
जनता के बीच अपनी छवि साफ रखने के लिए सारधा समूह ने कोलकाता के फुटबॉल क्लब मोहन बागान और ईस्ट बंगाल में निवेश किए। साथ ही उसने दुर्गा पूजा कार्यक्रम भी प्रायोजित किए। इसके अलावा ममता बनर्जी सरकार ने योजना में पैसा लगाने वाले छोटे निवेशकों के लिए 500 करोड़ रुपये का रिलीफ फंड जारी किया।

इन राज्यों के लोग बने शिकार
सारधा घोटाले में सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं, बल्कि आस-पास के राज्यों के लोगों को भी शिकार बनाया गया। इनमें ओडिशा, असम, झारखंड और त्रिपुरा के आम लोग भी शामिल थे।

क्या है चिटफंड
चिटफंड छोटे व्यापारियों और कारोबारियों को रोज अतिरिक्त पैसों की बचत करने में मदद करता है। ग्रामीण इलाकों में बचत का इसे बेहतर विकल्प माना जाता है। इस बचत पर सालाना ब्याज करीब 12 प्रतिशत मिलता है। सूदखोरों के ब्याज को देखते हुए इसे कम माना जाता है, जबकि फिक्स डिपॉजिट पर बैंक सात से आठ प्रतिशत का ब्याज देते हैं।

इतनी गिरफ्तारियां
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सीबीआइ द्वारा केस संभालने के बाद एसआइटी ने 11 लोगों को गिरफ्तार किया और 224 अचल संपत्तियों का पता लगाया। इसके अलावा एसआइटी ने 54 वाहनों को जब्त और करीब 300 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए।

इनके नाम हैं शामिल
जांच के दौरान कई बड़े नाम उजागर हुए, जिनमें तृणमूल कांग्रेस के दो सांसद कुणाल घोष और सुजॉय बोस, पश्चिम बंगाल के पूर्व पुलिस महानिदेशक रजत मजमूदार, पूर्व खेल एवं परिवहन मंत्री मदन मित्र शामिल हैं।

रोज वैली घोटाला
शारदा चिटफंड की तरह ही रोज वैली घोटाले पर भी काफी वक्त से हड़कंप मचा रहा। इसमें कई बड़े नेताओं का नाम भी शामिल होने की बात सामने आ चुकी है। दरअसल, रोज वैली चिटफंड घोटाले में रोज वैली समूह ने लोगों को दो अलग-अलग स्कीमों का लालच दिया और करीब एक लाख निवेशकों को करोड़ों का चूना लगाया। इसमें आशीर्वाद और हॉलिडे मेंबरशिप स्कीम के नाम पर ग्रुप ने लोगों को ज्यादा रिटर्न देने का वादा किया। ग्रुप के एमडी शिवमय दत्ता इस घोटाले के मास्टरमाइंड बताए जाते हैं, जिसके बाद लोगों ने भी इनकी बातों में आकर इसमें निवेश कर दिया।

असम के मंत्री ने लिए थे सारधा समूह के प्रमुख से तीन करोड़ रुपये!
असम के स्वास्थ्य एवं वित्त मंत्री हेमंत विश्वशर्मा ने सारधा समूह के प्रमुख सुदीप्त सेन से तीन करोड़ रुपये लिए थे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को धरना मंच से मीडिया को सुदीप्त सेन की चिट्ठी दिखाकर यह सनसनीखेज आरोप लगाया। हालांकि इसके कुछ ही देर बाद विश्वशर्मा ने ट्वीट कर ममता के आरोप को बेबुनियाद करार दिया और सीबीआइ को जांच में हर तरह से मदद करने की भी बात कही।

सुदीप्त सेन की चिट्ठी से हड़कंप
ममता ने मंगलवार को धरना खत्म करने से पहले मंच से मीडियाकर्मियों को जेल में बंद सुदीप्त सेन की 18 पेज की चिट्ठी की प्रति सौंपी। इसके 11 एवं 12 नंबर पेज पर उन पंक्तियों को हाइलाइट किया गया है, जिसमें सुदीप्त सेन ने दावा किया है- ‘हेमंत विश्वशर्मा ने मुझसे तीन करोड़ रुपये लिए हैं। हमारे पास हेमंत के कार्यालय के कर्मचारियों की हस्ताक्षरित रसीदें हैं।’

भाजपा को सात खून माफः ममता
इस चिट्ठी के आधार पर भाजपा पर निशाना साधते हुए ममता ने कहा कि भाजपा को सात खून माफ हैं। भाजपा के खिलाफ जाने पर सीबीआइ, ईडी और आयकर विभाग को पीछे लगा दिय जाता है, लेकिन भाजपा कुछ भी गलत करती है तो कोई कार्रवाई नहीं की जाती। हमारे पास बहुत से प्रमाण हैं। गौरतलब है कि हेमंत विश्वशर्मा 2001 से 2015 तक असम की जालुकबाड़ी सीट से कांग्रेस विधायक थे। 2015 में वह भाजपा में शामिल हुए और 2016 में पार्टी के टिकट पर जीतकर असम सरकार में मंत्री बने। हेमंत ने कहा- ‘मेरे खिलाफ ममता बनर्जी ने जो आधारहीन आरोप लगाया है, उससे मैं दुखी हूं। मैं कोलकाता पुलिस आयुक्त की तरह भाग्यवान नहीं हूं। मैं सीबीआइ के समक्ष पूछताछ में हाजिर हुआ था और गवाह के तौर पर पूर्ण सहयोग भी किया था। सारधा प्रमुख ने मेरे ऊपर जो आरोप लगाए हैं, वे मेरे भाजपा में शामिल होने से पहले के हैं।’

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