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BJP की इस रणनीति से पलटा हरियाणा का गेम, कांग्रेस के मुंह से छीनी जीत; दूर तक जाएगा असर

Election Results हरियाणा का यह चुनाव एक तरह से लोकसभा चुनाव की तर्ज पर ही लड़ा जा रहा था लेकिन जो नतीजा आया उसने हर किसी को चौंका दिया। नतीजे ने फिर से साबित कर दिया कि जनता तो सब जानती है लेकिन जनता को जानना समझना आसान नहीं है। जानिए कांग्रेस की आक्रामक रणनीति के बीच भाजपा ने कैसे राज्य में ऐतिहासिक जीत अपने नाम की।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Wed, 09 Oct 2024 02:00 AM (IST)
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हरियाणा में भाजपा ने कार्यकर्ताओं को समेटते हुए जमीन पर काम किया। (File Image)

आशुतोष झा, नई दिल्ली। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के नतीजे ने फिर से साबित कर दिया कि जनता तो सब जानती है, लेकिन जनता को जानना समझना आसान नहीं है। राजनीतिक दल चाहे लाख मुद्दे रख दें, जनता अपना मुद्दा खुद चुनती है।

लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने हरियाणा में किसान(एमएसपी), जवान(अग्निवीर) और पहलवान(प्रदर्शन) को मुद्दा बनाकर पेश किया था। यह चुनाव एक तरह से लोकसभा चुनाव की तर्ज पर ही लड़ा जा रहा था, लेकिन जो नतीजा आया उसने हर किसी को चौंका दिया।

तीनों मुद्दे फेल

किसान आंदोलन का बड़ा चेहरा रहे गुरनाम सिंह चढ़ूनी हरियाणा विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ हजार वोट ला पाए। नतीजों ने यह भी बता दिया कि अग्निपथ योजना को लेकर युवा वर्ग अब केवल विपक्ष के नैरेटिव से आकर्षित नहीं हो रहा है। वह खुद इसकी समीक्षा करना चाहता है और उस पर भरोसा करना चाहता है जो सरकार और सेना की ओर से कही जा रही है।

इधर, पहलवान आंदोलन का सबसे मुखर चेहरा बनीं विनेश फोगाट की जीत पूरे देश की उस कसक को तो दूर गई, जिसके कारण वह ओलंपिक में पदक से चूक गई थीं, लेकिन जीत की छोटी मार्जिन यह भी बता रही है कि पहलवान का मुद्दा भी अखाड़े में चूक ही गया। वस्तुत: जनता ने यह संदेश दे दिया है कि वह आगे बढ़ना चाहती है।

जनार्दन ही बने रहना चाहती है जनता

राजनीतिक दलों की कठपुतली बनने की बजाय जनार्दन की भूमिका में ही रहना चाहती है। जम्मू-कश्मीर का नतीजा स्पष्ट तौर पर वहां की संवेदनाओं और भारतीय लोकतंत्र की विविधताओं को प्रदर्शित करता है। दुखद यह है कि हरियाणा नतीजों के बाद एक बार फिर से चुनाव आयोग और ईवीएम के नैरेटिव को बढ़ाने की कोशिश शुरू हो चुकी है।

इस तरह का विवाद लोकतंत्र के लिए अच्छा नही है। इस नैरेटिव को भी हमेशा के लिए खत्म करने की जरूरत है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर का चुनाव नतीजा राज्य से उठकर राष्ट्रीय संदेश भी देता है और आने वाले दिनों में इसका प्रभाव भी दिखेगा।

भाजपा ने किया जमीन पर काम

लोकसभा चुनाव के चुनाव में हालांकि भाजपा अकेले ही पूरे संयुक्त विपक्ष से अधिक थी, फिर भी कुछ कारणों से माहौल ऐसा बनाया गया था, जैसे भाजपा हारी हुई पार्टी हो। सदन के अंदर और बाहर विपक्ष की ओर से ऐसे मनोबल का प्रदर्शन हो रहा था, जैसे केंद्र सरकार उनकी कृपा पर निर्भर हो। यह सच है कि खुद भाजपा के अंदर कुछ कार्यकर्ताओं में निराशा छाने लगी थी, लेकिन चुनाव का यह चुनाव का यह नियम भी है कि राजनीतिक दल मंथन करें कि कमी कहां रही और उसे दुरुस्त कर मैदान में उतरें।

हरियाणा में यह दिखा। सत्ता खोने की गहरी आशंकाओं के बीच भी भाजपा ने कार्यकर्ताओं को समेटते हुए जमीन पर काम किया। अग्रिवीर और कृषि सुधार व एमएसपी पर लोगों तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की। उनकी आशंकाओं को खत्म किया। एक तरफ जहां कांग्रेस कैंप में जाट समुदाय की आक्रामकता दिखाई दे रही थी तो वहीं भाजपा ने सबको साधने की कवायद की।

दुर तक जाएगा असर

स्थानीय नेताओं के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह जैसे बड़े नेता जहां मैदान में यह आश्वस्त करते दिखे कि फिर सरकार बनी तो विकास उनकी गारंटी है। वहीं चुनाव प्रभारी बनाकर भेजे गए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान एक शब्द बोले बिना सिर्फ रणनीति पर काम करते रहे।

हर चुनाव का कुछ असर बाहर भी पड़ता है, लेकिन हरियाणा और जम्मू-कश्मीर का असर दूर तक जाएगा। विपक्षी दलों के बीच खुद को लीडर बता रही कांग्रेस पर अभी से सहयोगी दलों ने सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया है। शिवसेना ने तो पूछ भी लिया है कि क्या कारण है कि कांग्रेस भाजपा के साथ सीधी लड़ाई में प्रदर्शन नहीं कर पाती है।

सत्ता में वही आएगा, जिसे लोग पसंद करेंगे

महाराष्ट्र हो या झारखंड, इन चुनावों में कांग्रेस को हरियाणा की तपिश का अनुभव होगा। एक संदेश उन लोगों के लिए भी है, जो हिजबुल्लाह जैसे मुद्दों से चुप रहकर या मुखर होकर सहानुभूति जताते हैं। जम्मू-कश्मीर में 370 की समाप्ति के बाद का पहला चुनाव हुआ। सत्ता उस नेशनल कांफ्रेंस के हाथ गई है, जिसने 370 को फिर से लाने की घोषणा की थी। हालांकि अब यह उनके लिए संभव नहीं है।

विकास और सामाजिक न्याय की कई योजनाओं को शुरूआत तभी हुई, जब 370 खत्म हुआ, लेकिन फिर भी घाटी में लोगों उसे ही पसंद कर रहे हैं, जो 370 लाने की बात करता हो। भारतीय लोकतंत्र ने यह दिखाया है कि सत्ता में वही आएगा, जिसे अधिक लोग पसंद करेंगे। ईवीएम यहां गलत व्यवहार नहीं करेगी, जो दूसरी जगह भी नहीं कर सकती है। अपेक्षा सिर्फ इतनी होगी कि घाटी के बल सरकार बनाने जा रही सरकार पार्टी जम्मू के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगी।