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...तो चुनाव में रेवड़ी भी जरूरी, महाराष्ट्र में 6 महीने में BJP ने कैसे बदला सियासी गणित; कांग्रेस के सामने क्या चुनौती?

Maharashtra Election Result 2024 महाराष्ट्र की जनता ने स्पष्ट जनादेश दिया है। भाजपा नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने 235 सीटों पर कब्जा जमाया है। महा विकास अघाड़ी गठबंधन को 49 सीटों पर जीत मिली है। लोकसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था। मगर छह महीने बाद गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस हार जीत के अपने सियासी मायने हैं।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Sat, 23 Nov 2024 09:24 PM (IST)
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Maharashtra Election Result 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में महायुति (राजग) की आंधी आई तो झारखंड में झामुमो के असर के सामने राजग की सारी रणनीति धुल गई। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक एक की बराबरी पर सिमट गया। अच्छी बात रही कि जनता ने जिसे भी चुना स्पष्ट बहुमत दिया ताकि सरकार स्थायी हो। मगर हरियाणा की अचंभित जीत के एक-डेढ़ महीने के अंदर ही महाराष्ट्र जैसे बड़े और राष्ट्रीय प्रभाव डालने वाले राज्य में चौंधियाने वाली जीत को क्या माना जाए।

यूपी में भी भाजपा का जलवा

महाराष्ट्र की जीत का पुख्ता संकेत मिलने के तत्काल बाद महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री व संभवत: भावी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट किया- ''एक हैं तो सेफ हैं, मोदी है तो मुमकिन है।'' यानी 2019 के उस नारे की भी वापसी हो गई जिसने पूरे देश में लहर को पैदा किया था। उत्तर प्रदेश में नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने जिस तरह सपा की जीती हुई सीटों पर कब्जा किया है वह बताता है कि लोकसभा के नतीजे से भाजपा बाहर आ चुकी है।

बिहार और दिल्ली में परीक्षा

बहरहाल, इसकी परीक्षा होनी बाकी है कि राजग की लहर कितनी बड़ी है क्योंकि बहुत जल्द ही दिल्ली में चुनाव होने वाले हैं और फिर राजनीतिक रूप से अहम बिहार में। वैसे एक बात चुनाव दर चुनाव साबित हो रही है कि रेवड़ी मीठी होती है।

झारखंड में क्यों हारी भाजपा?

झारखंड में हेमंत सोरेन की वापसी ने फिर से यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य में आदिवासियों के वही एक मान्य नेता हैं। लगातार दूसरी बार भाजपा की हार के कई और भी कारण हो सकते हैं जिसके कारण घुसपैठिया, धर्म परिवर्तन जैसा मुद्दा भी नहीं चल पाया। मगर एक और मुद्दे पर भाजपा को विशेष तौर पर विचार करना पड़ेगा कि विधानसभा चुनावों में बाहर से आए नेताओं को पर्दे के पीछे रखना है कि आगे।

कांग्रेस को करनी पड़ेगी क्षेत्रीय दलों की सवारी

महाराष्ट्र में भी भाजपा ने कई बड़े केंद्रीय नेताओं को जिम्मेदारी दी थी लेकिन वह सभी पर्दे के पीछे से रणनीति का जिम्मा संभालते रहे। झारखंड में स्थिति थोड़ी अलग थी जिसे झामुमो ने स्थानीय बनाम बाहरी की कसौटी पर भुनाया।

दूसरी बार वापसी हेमंत सोरेन के लिए बहुत बड़ी जीत है लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि महाराष्ट्र की आंधी और उत्तर प्रदेश उपचुनाव के नैरेटिव में राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के लिए झारखंड राहत की सांस भर है। जबकि कांग्रेस के लिए फिर से एक संदेश कि फिलहाल कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों के कंधों पर ही सवारी करनी है।

छह महीने में भाजपा ने कैसे पलटी बाजी?

यह सवाल लाजिमी है कि लोकसभा चुनाव के बाद तीन चार महीनों में क्या बदल गया। खासतौर से महाराष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में यह बहुत प्रासंगिक है। पहली बात लोकसभा चुनाव इस नैरेटिव पर था कि संविधान बदल जाएगा, उस वक्त का चुनाव इस संवेदना पर था कि भाजपा ने शिवसेना और एनसीपी तोड़ दी। तीन चार महीनों में राजनीतिक माहौल उस नैरेटिव से हटकर लाड़ली बहना योजना, मुंबई में टोल फ्री एंट्री, आवास जैसी योजनाओं पर आ गया।

तो चुनाव में रेवड़ी अच्छी हैं

पिछले साल हुए मध्य प्रदेश चुनाव के बाद से ही यह तो स्थापित हो ही गया है कि रेवड़ी अब चुनावी राजनीति का स्थायी हिस्सा है। यह आलोचना का नहीं गौरव का विषय है। तभी तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी अब रेवड़ी सभाएं करने लगी है। महाराष्ट्र में महिलाओं के जोश का अंदाजा आंकड़ों से मिल जाता है। लोकसभा चुनाव में 59 फीसद महिलाओं ने वोट डाला था और 63फीसद पुरुषों ने। विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी लगभग साढ़े 65 फीसद थी। वोट कहां गया इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

चाचा से चार गुना आगे भतीजा

बहरहाल, अब सवाल यह है कि इन चुनावों का राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर दिखेगा और कहां तक। लोकसभा चुनाव में जिन लोगों ने शरद पवार और उद्धव ठाकरे से सहानुभूति जताई थी, विधानसभा में उन्हीं मतदाताओं ने स्पष्ट कर दिया कि असली शिवसेना और असली एनसीपी वह किसे मानते हैं। भाजपा तो दूर अकेले शिंदे शिवसेना अघाड़ी के सभी दलों के संयुत्त नंबर से आगे थी तो भतीजा अजित पवार अपने चाचा से चारगुना बेहतर दिखे।

कांग्रेस नेताओं में उत्साह नहीं

उद्धव और पवार के लिए प्रदेश की राजनीति फिलहाल दुरूह हो ही गई है। यही कारण है कि झारखंड की जीत के बावजूद कांग्रेस नेताओं में उत्साह नहीं दिखा। दरअसल, महाराष्ट्र में पड़ोसी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस सरकार की वादाखिलाफी का भी मुद्दा भी उठा था। इसे अब दूर-दूर तक पहुंचाने की कोशिश होगी।

कांग्रेस के लिए खुद को विपक्ष के नेतृत्व करने वाले दल के रूप में स्थापित करना अब और मुश्किल हो गया है। जबकि भाजपा ने खुद एक सफल और नेतृत्व करने वाले सहयोगी के रूप में और मजबूती से स्थापित किया। एक ऐसे सहयोगी के रूप में भी स्थापित किया जो सबको साथ लेकर चल सके।

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