Shiv Sena: असली शिवसेना की लड़ाई में आखिर कैसे शिंदे गुट ने मारी बाजी, चुनाव आयोग ने ऐसे लिया फैसला
Shiv Sena शिंदे गुट बनाम उद्धव गुट की लड़ाई में चुनाव आयोग का आदेश केवल बहुमत के परीक्षण पर निर्भर था। चुनाव आयोग ने अपने आदेश में 1969 में इंदिरा गांधी के कांग्रेस में विभाजन के बाद सादिक अली मामले का हवाला दिया।
By Mohd FaisalEdited By: Mohd FaisalUpdated: Wed, 22 Feb 2023 02:41 PM (IST)
नई दिल्ली, एजेंसी। चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे के गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दे दी है। जिसे लेकर महाराष्ट्र से दिल्ली तक सियासत गर्म है। चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ उद्धव ठाकरे गुट ने शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को असली शिवसेना की मान्यता और चुनाव चिह्न ‘धनुष और तीर’ आवंटित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम के बीच एक सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर चुनाव आयोग ने यह फैसला कैसे किया कि असली शिवसेना कौन है।
बहुमत परीक्षण के आधार पर दिया फैसला
शिंदे गुट बनाम उद्धव गुट की लड़ाई में चुनाव आयोग का आदेश केवल बहुमत के परीक्षण पर निर्भर था। यानी चुनाव आयोग ने यह आकलन किया कि शिवसेना के नाम के साथ ही 'धनुष और तीर' के प्रतीक का दावा करने के लिए किस गुट के पास अधिक सांसद और विधायक हैं। इसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला गुट विजयी हुआ।
सादिक अली मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला
चुनाव आयोग ने अपने आदेश में 1969 में इंदिरा गांधी के कांग्रेस में विभाजन के बाद सादिक अली मामले का हवाला दिया। कांग्रेस (ओ) बनाम कांग्रेस (जे) की लड़ाई तय करने के लिए चुनाव आयोग ने अंततः 'बहुमत परीक्षण' का इस्तेमाल किया था। यह सिद्धांत 1968 के सिंबल ऑर्डर में पेश किया गया था। इस मामले को ‘सादिक अली मामले’ के नाम से जाना जाता है और सर्वोच्च न्यायालय में जाने के बाद कोर्ट ने 1971 में चुनाव आयोग के फैसले को बरकरार रखा था।