बिना विवाद सुलझे आखिर कैसे 1 और 1 ग्यारह हो सकते हैं भारत और चीन
आखिर चीन और भारत कैसे एक और एक ग्यारह बनने की भूमिका निभा सकते हैं। वह भी तब जब चीन की तरफ से लगातार भारत के खिलाफ आक्रामक बयानबाजी होती रहती है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। चीन ने भारत के साथ संबंधों में सुधार और एकजुटता पर जोर दिया है। चीन का कहना है कि ड्रैगन और भारतीय हाथी को आपस में लड़ना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें एक साथ नाचना चाहिए। इसके लिए दोनों देशों को संदेह त्यागकर, मतभेदों को दूर कर आगे आकर मिलना चाहिए। चीन के विदेश मंत्री ने अपनी वार्षिक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ये बातें कही हैं। लेकिन चीन के इस कथन में बड़ा सवाल ये उभरकर आता है कि जारी विवादों को सुलझाए बिना आखिर दोनों देश कैसे एक और एक ग्यारह बनने की भूमिका निभा सकते हैं। वह भी तब जब चीन की तरफ से लगातार भारत के खिलाफ आक्रामक बयानबाजी होती रहती है।
विवादित मुद्दों पर गोलमोल जवाब
इस दौरान जब उनसे 2017 में डोकलाम गतिरोध समेत अन्य विवादित मसलों के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि कुछ परीक्षाओं और मुश्किलों के बावजूद भारत और चीन के बीच संबंध बढ़ रहे हैं। वांग यी ने कहा, ‘चीनी और भारतीय नेताओं ने भविष्य के संबंधों को लेकर रणनीतिक सोच विकसित की है। अगर चीन और भारत एकजुट हो जाएं तो एक और एक मिलकर दो की जगह 11 बन जाएंगे।’ उनका कहना था कि इन रिश्तों में आपसी विश्वास का होना बेहद जरूरी है। आपसी विश्वास बढ़ाने की बात कहकर उन्होंने कहीं न कहीं इस बात को माना है कि बीते कुछ समय में इस विश्वास में जरूर कमी आई है।
बीआरआई पर भारत की नाराजगी
वांग ने इस प्रेस कांफ्रेंस में यह भी कहा कि भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया की इंडो-पैसिफिक रणनीति का चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। चारों देशों ने स्पष्ट किया है कि यह रणनीति किसी को निशाना बनाने के लिए नहीं है। उनका यह बयान इसलिए भी बेहद खास हो जाता है क्योंकि भारत लगातार बीआरआई का विरोध करता आ रहा है। आपको बता दें कि भारत और चीन के बीच बीआरआई समेत कई मुद्दे ऐसे हैं जो विवादित हैं। इन मुद्दों की वजह से लगातार दोनों देशों के बीच तनाव कायम रहता आया है।
चीन का है तिब्बत का मसला
इस पूरे मसले पर दैनिक जागरण से बात करते हुए पूर्व राज्य सभा सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और एचडी देवे गौड़ा के राजनीतिक सलाहकार हरी कृष्ण दुआ ने कहा कि तनाव कम करने के बाबत दोनों देशों ने एक कदम आगे बढ़ाया है। उनके मुताबिक तिब्बत का मसला चीन का है जिसको उसे आपसी सहमति से ही सुलझाना होगा। इसको लेकर भारत ने अपना रुख भी स्पष्ट कर दिया है। दुआ का कहना था कि पिछले दिनों भारत की तरफ से यह साफ कर दिया गया है कि तिब्बत के मसले में भारत की कोई भूमिका नहीं है इसको चीन और दलाई लामा के बीच आपसी सहमति से सुलझाया जा सकता है। उनके मुताबिक अरुणाचल प्रदेश पर चीन के रुख से हम सभी वाकिफ हैं लेकिन दबाव की रणनीति के तहत अभी यह मुद्दा बरकरार है।
तिब्बत से चीन का भावनात्मक लगाव
पूर्व सांसद का यह भी कहना था कि भारत और चीन के बीच कई विवादित मुद्दे हैं, लेकिन तिब्बत से चीन का भावनात्मक लगाव है। इसलिए वह इस मु्द्दे को ज्यादा गंभीरता से लेते हैं। भारत के इस बाबत एक कदम आगे बढ़ाने के बाद ही चीन के विदेश मंत्री की तरफ से एक और एक ग्यारह बनने का बयान दिया गया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह सिर्फ एक कदम आगे बढ़ाया गया है लिहाजा इससे पूरी तरह से निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए। ऐसा इसलिए किया गया है जिससे दोनों देश के बीच चल रही बयानबाजी को बंद किया जा सके। उनका कहना था कि दोनों देशों के बीच बयानबाजी और तनाव का सीधा फायदा अमेरिका समेत दूसरे देश उठाते हैं। लिहाजा यह बंद होनी जरूरी है। इसके अलावा विवाद के दूसरे मुद्दों को बातचीत के जरिए हल किया जा सकता है।
डोकलाम का विवादित मुद्दा
डोकलाम का मुद्दा दोनों देशों के बीच काफी समय से कायम है। भारत जहां इस इलाके को विवादित बताता रहा है वहीं चीन इसको अपना हिस्सा बताता आया है। इतना ही नहीं वह यहां पर सैन्य निर्माण भी करवा रहा है। पिछले वर्ष इसकी वजह से करीब 73 दिनों तक दोनों देशों के बीच गतिरोध जारी रहा था। उस वक्त चीन यहां पर सड़क निर्माण कर रहा था जिसका भारत विरोध कर रहा था। इसके अलावा अब फिर से चीन इस इलाके में हैलीपैड बनाकर तनाव को भड़काने का काम कर रहा है। इसके अलावा ने चीन ने यहां पर अपने सैनिकों का जमावड़ा भी बढ़ा दिया है।
सीपैक का विवादित मुद्दा
चीन की यह महत्वाकांक्षी योजना का अहम हिस्सा है जिसका एक छोर पाकिस्तान में तो दूसरा चीन के शिनजियांग में आता है। इस पूरे कॉरिडोर पर चीन करीब 46 बिलियन डॉलर खर्च कर रहा है। यह कॉरिडोर पाकिस्तान में बलूचिस्तान, गिलगिट-बाल्टिस्तान, खैबर पख्तूनख्वां, पंजाब, सिंध से होकर गुजरता है। भारत का इस पर शुरू से विरोध रहा है। इसकी वजह ये है कि गिलगिट-बाल्टिस्तान जम्मू-कश्मीर का ही एक हिस्सा है जिस पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। भारत का कहना है कि यह भारतीय जमीन से होकर गुजरता है जिसकी इजाजत वह नहीं देता है। अमेरिका ने भी इस कॉरिडोर को गलत बताते हुए भारत का साथ दिया है।
यूएन में चीन का रोड़ा
पाकिस्तान में मौजूद आतंकियों को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने के मकसद पर चीन हमेशा से ही रोड़ा अटकाता रहा है। भारत में मुंबई हमले के मास्टर माईंड मसूद अजहर को लेकर चीन की ही वजह से भारत को हर बार मुंह की खानी पड़ी है। भारत बार-बार यूएन में इस बात की मांग करता रहा है कि अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किया जाए लेकिन चीन हर बार इसको वीटो लगाकर खारिज करता आया है। पिछले वर्ष यूएन में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के बाबत अमेरिका ने प्रस्ताव रखा था, लेकिन चीन ने इस पर तकनीकी अड़चन डालते हुए इसकी समय सीमा को आगे बढ़ा दिया था। इससे पहले भी चीन इसी तरह की हरकत करता आया है।
एनएसजी का नहीं बनने दिया सदस्य
भारत के न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप में शामिल न होने की सबसे बड़ी वजह भी चीन ही है। चीन ने दो बार वहां पर भारत के समक्ष परेशानी खड़ी की और दोनों ही बार भारत इसका सदस्य बनने से चूक गया। चीन का कहना था कि क्योंकि भारत ने एनपीटी पर साइन नहीं किए हैं, इसलिए उसको इसका सदस्य नहीं बनाया जा सकता है। यदि ऐसा किया जाता है तो फिर इसके लिए पाकिस्तान भी उचित दावेदार है। चीन ने यह कहते हुए यहां पर हर बार भारत की राह में रोड़ा अटकाया है कि यह संगठन किसी एक देश के लिए अपने नियम और कानून को नहीं बदल सकता है।
अरुणाचल प्रदेश को बताता रहा है अपना
अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन की आक्रामकता बार-बार सामने आती रही है। चीन वर्षों से इस इलाके को अपना बताता आया है। चीन का कहना है कि यह तिब्बत का हिस्सा रहा है और यहां से उसका भावनात्मक रिश्ता है। इतना ही नहीं चीन अरुणाचल प्रदेश में भारतीय प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के जाने तक पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुका है। इसके अलावा वह कई बार इस इलाके में घुसपैठ तक कर चुका है। चीन ने अरुणाचल से लगी सीमा के नजदीक अपने देश का दूसरा सबसे बड़ा एयरपोर्ट भी शुरू किया हुआ है। इसके अलावा इस सीमा पर उसने जेट विमानों को भी तैनात किया हुआ है।
हिमाचल और लद्दाख पर चीन की नजर
चीन की नजर सिर्फ एक अरुणाचल प्रदेश पर ही नहीं लगी हुई है, बल्कि वह लगातार हिमाचल और लद्दाख में अपने खतरनाक इरादों को दिखाता भी रहा है। बाराहोती समेत दूसरे इलाकों में चीन की सेना लगातार घुसपैठ करती रही है। इतना ही हीं वह इन इलाकों में सैन्य निर्माण तक कर चुका है। बीते दो वर्षों में कई बार चीन की सेना ने घुसपैठ की है। भारत बार-बार इस मुद्दे को चीन के समक्ष उठाता रहा है। इसके बाद भी आजतक विवाद कायम है। चीन का कहना है कि भारत और चीन के बीच कई जगहों पर सीमा निर्धारित नहीं है।
हिंद महासागर में चीन
चीन लगातार भारत को घेरने में लगा है। हालांकि वह इसके पीछे हमेशा अपने संबंधों को बताता रहा है। नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान के बाद चीन ने मालद्वीप में भी अपनी पेंठ बना ली है। पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश के बाद अब चीन यहां पर भी बंदरगाह का निर्माण कर रहा है। भारत से बेहद करीब इस देश की मौजूदगी रणनीतिक तौर पर काफी अहम रही है। चीन की आमद से पहले भारत लगातार मालद्वीप को उसकी जरूरत की चीजों की सप्लाई करता रहा है। लेकिन अब मालद्वीप सरकार ने चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर के भारत के सामने बड़ी चुनौती पेश कर दी है। इतना ही नहीं चीन के दबाव में आकर मालद्वीप ने भारत की कई पेशकश भी ठुकरा दी हैं।
दक्षिण चीन सागर पर आक्रामक
वहीं इसके उलट चीन दक्षिण चीन सागर को लेकर काफी आक्रामक है। वह यहां पर किसी अन्य देश की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं करता है। यहां तक की ताईवान के साथ भारत ने जो गैस की खोज के लिए समझौता किया है उसके भी वह सख्त खिलाफ है। इसको लेकर वह अपनी कड़ी नाराजगी भी जता चुका है। इस मुद्दे पर वह अमेरिका तक को चुनौती देने से बाज नहीं आता है। चीन लगातार इस क्षेत्र में सैन्य निर्माण कर रहा है।
यदि सच हो गई उत्तर कोरिया के तानाशाह किम की सोच तो उनकी हो जाएगी पौ-बारह
उत्तर और दक्षिण कोरिया में बन गई बात, अप्रैल में मिलेंगे मून से मिलेंगे किम!
सोवियत रूस का हिस्सा रहा यूक्रेन पहले ही गिरा चुका है लेनिन की हजारों प्रतिमाएं