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खामोशी की तन्हाई में गुजरा इतिहास का अजीम लम्हा, सौ साल हुई देश की संसद

1927 में यह इमारत बनकर तैयार हुई। तब इसका नाम काउंसिल हाउस रखा गया। बाद में 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र होने पर यह इमारत संसद भवन कहलाई। स्वतंत्र भारत के लगभग सभी प्रमुख फैसले यहां पर लिए गए।

By Bhupendra SinghEdited By: Updated: Fri, 12 Feb 2021 09:14 PM (IST)
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ब्रिटिश हुकूमत ने 26 साल पहले भांप ली थी भविष्य की चाल।
नई दिल्ली, प्रेट्र। शुक्रवार को राष्ट्रीय प्रतीक से जुड़ा एक ऐतिहासिक लम्हा गुजर गया, लेकिन हममें से बहुतों के जेहन में उसे लेकर कोई हरकत पैदा नहीं हुई। मौका देश की संसद की इमारत के सौ साल पूरे होने का था। 12 फरवरी, 1921 को मौजूदा संसद भवन की आधारशिला रखते हुए ब्रिटेन के ड्यूक ऑफ कनाट ने शायद भविष्य को देख लिया था..और बनने वाली इमारत को भारत के पुनर्जन्म का प्रतीक बता दिया था। उन्होंने यह टिप्पणी भारत की आजादी से 26 साल पहले की थी।

अतीत से जुड़े खास लम्हे को भुला दिया गया

उस दिन के 100 साल बाद आज शुक्रवार को संसद का सत्र चल रहा था। लोकसभा और राज्यसभा में शिद्दत के साथ काम हो रहा था, लेकिन अतीत से जुड़े खास लम्हे को भुला दिया गया। यह मौका इसलिए भी खास था क्योंकि थोड़ी ही दूर पर भविष्य की संसद का बनना शुरू हो गया है और कुछ वर्षो के बाद मौजूदा इमारत इतिहास का अवशेष बन जाएगी।

संसद भवन का नक्शा बेकर ने लुटियंस के साथ मिलकर तैयार किया था

मौजूदा संसद भवन का नक्शा प्रख्यात डिजायनर सर हरबर्ट बेकर ने सर एडविन लुटियंस के साथ मिलकर तैयार किया था। ..वही सर लुटियंस जिन्होंने रायसीना हिल के आसपास की नई दिल्ली की बसावट का खाका खींचा था। वही दिल्ली अंग्रेजी हुकूमत की राजधानी बनी। आजादी के बाद भी राजधानी का वह स्वरूप बरकरार रहा।

संसद भवन की आधारशिला ड्यूक ऑफ कनाट ने रखी थी

भारत के संसदीय लोकतंत्र का केंद्र बनी इस इमारत की आधारशिला रखने वाले ड्यूक ऑफ कनाट प्रिंस आर्थर के पदनाम पर ही नजदीक का कनाट प्लेस मार्केट बना। यह बाजार भी नई दिल्ली के हिस्से के रूप में बनाया गया था। प्रिंस आर्थर ब्रिटिश साम्राज्य के किंग जॉर्ज पंचम के चाचा थे। भारत के महत्व को समझते हुए ही उन्होंने कहा था- भारत की राजधानी को रोम की राजधानी एथेंस जैसा ही महत्व मिलना चाहिए। यह पूर्व के महत्वपूर्ण शहरों में शुमार होना चाहिए, जो अपनी परंपरा और संस्कृति के लिए जाना जाए। भारत खुद बहुमूल्य परंपराओं वाला देश है। इसलिए इसकी राजधानी में सम्राट अशोक से जुड़ी कुछ चीजें समाहित की जानी चाहिए, कुछ समानताएं मुगलकालीन शासन वाली भी होनी चाहिए।

पत्थर बनते हैं इतिहास की निशानी

प्राचीन अभिलेख बताते हैं कि संसद भवन की आधारशिला रखे जाने के समय भव्य समारोह आयोजित हुआ था। उस समय के वायसरॉय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने उसमें ब्रिटिश शासन को मान्यता देने वाली रियासतों के प्रमुखों को भी आमंत्रित किया था। ड्यूक ऑफ कनाट ने समारोह के लिए खासतौर पर भाषण तैयार किया था। उन्होंने कहा था- सभी महान शासक, सभी बड़े लोग और सभी प्रमुख सभ्यताएं अपनी पहचान पत्थरों, संगरमरमर और धातुओं पर छोड़कर जाते हैं। बाद में वही सब इतिहास बनता है।

निर्माण सामग्री लाने को बिछी थी रेललाइन, काउंसिल हाउस से संसद भवन तक का सफर

संसद भवन के निर्माण के लिए पत्थर और अन्य सामग्री लाने के वास्ते नजदीक में रेललाइन बिछाई गई थी। उसी पर लाखों टन पत्थर, चूना इत्यादि लाकर इस्तेमाल किया गया। छह साल बाद 1927 में यह इमारत बनकर तैयार हुई। तब इसका नाम काउंसिल हाउस रखा गया। बाद में 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र होने पर यह इमारत संसद भवन कहलाई। स्वतंत्र भारत के लगभग सभी प्रमुख फैसले यहां पर लिए गए। 144 स्तंभों वाली यह इमारत दुनिया के सबसे भव्य संसद भवनों में शामिल है।