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ममता से 'सुलूक' के मुद्दे पर एकजुट विपक्ष, सरकार को घेरने की तैयारी शुरू; संसद में भी हंगामे के आसार

नीति आयोग की बैठक में कथित तौर पर ममता बनर्जी को बोलने से रोकने का मामला अब तूल पकड़ता दिख रहा है। मुद्दे को लेकर टीएमसी ने अन्य विपक्षी दलों से भी संपर्क साधा है और उसे समर्थन मिलता भी दिख रहा है। राज्यों से भेदभाव को लेकर केंद्र पर पहले ही कई आरोप लगा चुका विपक्ष अब संसद में भी इसे उठाने की तैयारी में है।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Sun, 28 Jul 2024 09:00 PM (IST)
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विपक्ष ने मुद्दे पर एक बार फिर सियासत गरमाने के संकेत दिए हैं। (File Image)
संजय मिश्र, नई दिल्ली। विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए के लिए बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सियासी कदमों की अनिश्चितता चाहे हमेशा चुनौती रही हो, मगर नीति आयोग की बैठक में बोलने से रोकने के उनके दावे को विपक्ष का पूरा समर्थन मिलता दिख रहा है।

कांग्रेस, द्रमुक, सपा, शिवसेना (यूबीटी) से लेकर राकांपा (शरद पवार) जैसे आईएनडीआईए के तमाम घटक दलों ने ममता के प्रति व्यवहार को विपक्ष शासित राज्यों के साथ केंद्र के कथित भेदभाव से जोड़कर इस मामले पर सियासत को एक बार फिर गरम करने का साफ संकेत दिया है।

संसद में मुद्दा उठाने की तैयारी

यानी साफ है कि संसद के चालू बजट सत्र के दौरान विपक्ष शासित राज्यों को आर्थिक मदद देने में भेदभाव के आरोपों पर दोनों सदनों में चर्चा के लिए दबाव डाला जाएगा। तृणमूल कांग्रेस समेत विपक्षी खेमे की ओर से नीति आयोग की बैठक में ममता को बोलने से रोकने का मुद्दा सोमवार को संसद में उठाने की तैयारी है।

टीएमसी ने अन्य दलों से साधा संपर्क

संसद में मुद्दे को गरमाने की पहल तृणमूल ने शनिवार को ममता के केंद्र पर लगाए गए आरोपों के बाद से ही शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार तृणमूल के संसदीय रणनीतिकारों ने इस बारे में कांग्रेस से भी संपर्क किया है। कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने विपक्ष शासित राज्यों से भेदभाव पर रविवार को बयान जारी कर इस पर पार्टी के समर्थन का संकेत दिया।

तूणमूल ने शिवसेना (यूबीटी), द्रमुक, सपा, आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी गठबंधन के सहयोगी दलों से भी गैर भाजपा और गैर राजग शासित राज्यों तथा उनके मुख्यमंत्रियों को अपमानित करने का मुद्दा दोनों सदनों में उठाकर केंद्र पर सियासी दबाव बनाने के लिए चर्चा की है।

ममता ने लगाया बैठक में न बोलने देने का आरोप

नीति आयोग की शनिवार को हुई बैठक बीच में ही छोड़कर बाहर आईं ममता ने दावा किया था कि पांच मिनट बोलने के बाद ही उन्हें रोक दिया गया। केंद्र की ओर से ममता के दावे को नकार दिया गया। विपक्षी दल शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार किया था और अकेले ममता बनर्जी इसमें शामिल हुईं।

हालांकि इसके बावजूद तमाम विपक्षी दलों ने ममता के दावे पर उनका समर्थन करते हुए केंद्र पर हमला बोला। द्रमुक प्रमुख और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने सवाल किया कि एक मुख्यमंत्री को बोलने से रोकने क्या सहकारी संघवाद है। उन्होंने कहा कि केंद्र को समझना होगा कि विपक्ष की पार्टियों के द्वारा शासित राज्य हमारे लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा हैं और शत्रुतापूर्ण सलूक कर उन्हें चुप नहीं कराया जाना चाहिए।

कांग्रेस ने भी साधा निशाना

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने रविवार को विपक्ष शासित राज्यों से भेदभाव पर केंद्र को आड़े हाथों लेते हुए दावा किया कि स्वयंभू नान-बॉयोलाजिकल प्रधानमंत्री ने नीति आयोग की बैठक में कहा कि विकसित राज्य ही विकसित भारत बनाएंगे। मगर काश, वह करदाताओं का पैसा वहीं खर्च करते, जहां उसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।

जयराम रमेश ने कहा कि 2023 की विनाशकारी बाढ़ के बाद हिमाचल प्रदेश ने बार-बार बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की मगर वित्त मंत्री ने इसे खारिज किया, लेकिन वित्तमंत्री के बजट भाषण में सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के लिए बिहार, असम, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल के लिए फंड आवंटित करने की घोषणा दोहरे मानदंड का उदाहरण है।

हिमाचल के साथ भेदभाव का लगाया आरोप

उनका कहना है कि हिमाचल को छोड़ बाकी सभी राज्यों को इसके लिए सहायता अनुदान के रूप में देने की घोषणा की गई है। मगर हिमाचल की मदद की व्यवस्था बहुपक्षीय विकास सहायता के माध्यम से करने की बात कही गई है, जिसका अर्थ है कि राज्य पर केंद्र की ओर से कर्ज का बोझ डाला जाएगा।