पांच वर्ष पहले जहां कहीं नहीं थी भाजपा अब वहीं बन रही उसकी सरकार
भाजपा ने 2016 में उत्तर-पूर्व में असम से जो अपनी जीत की राह शुरू की थी वह उस पर लगातार आगे बढ़ रही है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 05 Mar 2018 11:15 AM (IST)
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। उत्तर पूर्व के नगालैंड, मेघालय और त्रिपुरा के नतीजे काफी कुछ एक्जिट पोल में दिखाए गए नतीजों के आधार पर आए। कहा जा सकता है कि भाजपा ने 2016 में उत्तर-पूर्व में असम से जो अपनी जीत की राह शुरू की थी वह उस पर लगातार आगे बढ़ रही है। आपको बता दें कि 2016 में पहली बार भाजपा ने असम के रूप में उत्तर-पूर्व के किसी राज्य में अपनी सरकार का गठन किया था। इसके बाद वर्ष 2017 में पहली बार मणिपुर में भाजपा ने अपनी सरकार बनाई। हैरत की बात ये है कि पांच वर्ष पहले तक भाजपा यहां पर अपनी राजनीतिक जमीन नहीं बना पाई थी।
भाजपा को स्पष्ट बहुमत
त्रिपुरा में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है। बहरहाल इन सभी से ज्यादा दिलचस्प बात ये है कि आखिर भाजपा की उत्तर पूर्व में कोई राजनीतिक जमीन न होने के बाद भी भाजपा को इतनी बड़ी सफलता कैसे मिल गई। इसके अलावा कभी कांग्रेस लगातार क्यों चूक रही है। त्रिपुरा में जहां भाजपा ने बीते 25 वर्षों की माणिक सरकार को उखाड़ फैंका है वहीं नगालैंड में कांग्रेस कहीं है ही नहीं। हां अलबत्ता मेघालय में कांग्रेस की सरकार जरूर है। लेकिन मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के मद्देनजर भाजपा यहां पर भी सरकार बनाने की संभावनाओं पर विचार कर रही है। मेघालय के इंचार्ज नलिन कोहली और राम माधव के बयान से इस बात की पुष्टि हो गई है। माधव ने इसका श्रेय वहां के कार्यकर्ताओं को दिया है। वहीं उत्तर-पूर्व में मिली जीत से उत्साहित भाजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि शुरुआत में हम कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते थे, लेकिन अब वामपंथ मुक्त भारत भी कहना गलत नहीं होगा। उन्होंने कहा कि पूरा उत्तर-पूर्व आज भाजपा के साथ है।
त्रिपुरा
पूरे उत्तर-पूर्व के राज्यों की सियासी जमीन पर नजर डालने से पहले हम जरा उन राज्यों पर नजर डाल लेते हैं जहां पर विधानसभा चुनाव हुए हैं। सबसे पहले त्रिपुरा की यदि बात करें तो यहां की करीब 35 लाख की आबादी है जिसमें करीब 12-13 लाख लोग नाथ संप्रदाय से जुड़े हैं। यानी यहां की एक तिहाई आबादी नाथ संप्रदाय को मानती है। यहां पर पहले ही माना जा रहा था कि इस बार इस संप्रदाय की भूमिका चुनाव में काफी अहम होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर प्रदेश में योग आदित्यनाथ मौजूदा समय में नाथ संप्रदाय के प्रमुख होने के साथ साथ राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं। यहां के विधानसभा चुनाव में वह स्टार कैंपेनर भी थे। लिहाजा यह कहने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए कि योगी को यूपी में सत्ता सौंपने का फायदा भाजपा को त्रिपुरा में भी हुआ है। यहां पर ये भी जानना बेहद दिलचस्प है कि वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने त्रिपुरा में 50 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 49 की जमानत जब्त हो गई थी। उस वक्त भापजा को यहां केवल 1.87 फ़ीसदी वोट मिले थे और वो एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। वहीं माकपा को 49 सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस को 10 सीटों से संतोष करना पड़ा था। इसका साफ सीधा अर्थ ये है कि बीते कुछ वर्षों में भाजपा ने अपनी स्थिति को पूरे देश में मजबूत किया है।
नगालैंड
अब बात करते हैं नगालैंड की तो यहां पर भाजपा ने नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) से गठबंधन किया था। इसके तहत भाजपा ने 20 और एनडीपीपी ने 40 उम्मीद्वारों को मैदान में उतारा था। वहीं एक दशक से यहां पर सरकार चलाने वाली कांग्रेस को इस बार प्रत्याशियों की भी कमी पड़ गई थी। हालांकि इसके बाद भी कांग्रेस ने सभी सीटों पर अपने उम्मीद्वार उतारे। लेकिन खुद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मीम अफजल ने माना है कि यहां का चुनाव पार्टी के लिए अहमियत नहीं रखता था। उन्होंने यहां तक कहा कि उनकी पार्टी के लिए राज्य में शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाना जरूरी है चुनाव जीतना नहीं। अफजल के इस बयान से यह माना जा सकता है कि पार्टी किस तरह से यहां पर नकारात्मक सोच के साथ मैदान में उतरी थी।
असम उत्तर-पूर्व के राज्य असम में भाजपा ने 2016 में जीत दर्ज कर उत्तर-पूर्व में पहली बार सरकार बनाई थी। उस वक्त भाजपा ने वहां 15 वर्षों से मौजूद तरूण गोगोई के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार को धूल चटाई थी। जीत के बाद भाजपा नेतृत्व ने यहां की कमान तत्कालीन खेल एवं युवा मामलों के मंत्री एवं असम के लखीमपुर से सांसद सर्बानंद सोनोवाल को सौंपी थी। असम में भाजपा की जीत इसलिए भी ज्यादा सराहनीय थी क्योंकि कांग्रेस के तरुण गोगोई के सामने मुकाबले के लिए भाजपा के पास कोई बड़ा नाम नहीं था। गोगोई गोगोई ने पार्टी को पिछले तीन चुनाव में जीत दिलाई थी।
मेघालय
मेघालय की जहां तक बात करें तो यहां पर इस बार 84 फीसद मतदान हुआ था। यहां पर सत्तारूढ़ कांग्रेस का मुकाबला भाजपा के अलावा नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और नवगठित पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट से था। वर्ष 2013 के चुनाव में भाजपा ने त्रिपुरा की तर्ज पर ही यहां पर भी अपने करीब 13 उम्मीद्वार चुनावी मैदान में उतारे थे। लेकिन इनमें से कोई जीत दर्ज नहीं कर सका था। वहीं एनपीपी को महज दो सीटें ही मिली थीं। लेकिन इस बार आंकड़ों में बदलाव होता साफतौर पर देखा जा सकता है। यह भी हो सकता है कि भाजपा यहां पर भी सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच जाए। यहां आए नतीजों के बाद भाजपा नेता और मेघालय के इंचार्ज नलिन कोहली ने कहा कि यहां पर जनता ने कांग्रेस के शासन के खिलाफ मत दिया है। उन्होंने यह भी माना है कि राज्य में जो मौजूदा राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं उनमें सरकार बनाने की संभावनाओं पर भी विचार जरूर किया जाएगा। वहीं इसी बात को राम माधव ने भी दोहराया है।तीन दशक बाद भी नगालैंड विधानसभा महिला विधायक से रहेगी महरूमअसम उत्तर-पूर्व के राज्य असम में भाजपा ने 2016 में जीत दर्ज कर उत्तर-पूर्व में पहली बार सरकार बनाई थी। उस वक्त भाजपा ने वहां 15 वर्षों से मौजूद तरूण गोगोई के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार को धूल चटाई थी। जीत के बाद भाजपा नेतृत्व ने यहां की कमान तत्कालीन खेल एवं युवा मामलों के मंत्री एवं असम के लखीमपुर से सांसद सर्बानंद सोनोवाल को सौंपी थी। असम में भाजपा की जीत इसलिए भी ज्यादा सराहनीय थी क्योंकि कांग्रेस के तरुण गोगोई के सामने मुकाबले के लिए भाजपा के पास कोई बड़ा नाम नहीं था। गोगोई गोगोई ने पार्टी को पिछले तीन चुनाव में जीत दिलाई थी।
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में कभी कांग्रेस की सरकार थी लेकिन वहां के मुख्यमंत्री पेमा खांडू पार्टी तोड़कर खुद अपने करीब 43 विधायक पार्टी तोड़कर स्थानीय पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (पीपीए) में शामिल हो गए थे। वह यहां पर भी नहीं रुके और दिसंबर 2016 में 33 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। इसके बाद भाजपा वहां पर बहुमत में आ गई थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उन्हें नबाम तुकी की जगह राज्य की कमान सौंपी गई थी। यहां की साठ सीटों वाली विधानसभा में भाजपा के ग्यारह विधायक हैं।मिजोरम
मिजोरम की जहां तक बात की जाए तो वहां पर कांग्रेस की सरकार है और वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां पूर्ण बहुमत हासिल किया था। इतना ही नहीं यहां पर ललथनहवला पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनकर पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु की बराबरी भी की है। बसु वर्ष 1977 से 2000 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे थे। ललथनहवला 1978 के बाद से रिकार्ड नौवीं बार विधानसभा के लिए चुने गए हैं। 2008 में हुए विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2013 में कांग्रेस को यहां एक सीट का इजाफा भी हुआ है।मणिपुर
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मणिपुर में कांग्रेस ने लगातार चौथी बार सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। करीब डेढ़ दशक तक राज्य की सत्ता चलाने वाली कांग्रेस इस बार इससे चूक गई। आपको जानकर हैरत होगी कि 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां पर एक भी सीट नहीं मिली थी, वहीं 2017 में वह 21 सीट पाकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। इस बार कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी यहां पर सरकार बनाने से चूक गई और भाजपा इसमें आगे निकल गई। यहां पर बीरेन सिंह के नेतृत्व में भाजपा पहली बार सरकार बनाने में सफल हुई है। आपको बता दें कि मणिपुर में कुल 60 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से बीजेपी का दावा है कि उसके पास 32 विधायक हैं। इन चुनावी नतीजों में बीजेपी को 21 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन पार्टी का दावा है कि उसके पास नैशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) और नगा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) के चार-चार विधायकों का समर्थन है। इसके अलावा भाजपा को एक एलजेपी विधायक और दो अन्य विधायकों का समर्थन हासिल है।