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सोनिया गांधी पर बयान को लेकर जगदीप धनखड़ बोले- टिप्पणी न की होती तो अपनी शपथ से नहीं होता न्याय

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कहा कि वह न्यायपालिका को अमान्य करने की प्रणाली का हिस्सा होने के आरोप का सामना कर रहे हैं। सभापति को विभाजनकारी दृष्टांतों में घसीटने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

By Jagran NewsEdited By: Piyush KumarUpdated: Fri, 23 Dec 2022 06:11 PM (IST)
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राज्यसभा के सभापति और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की फाइल फोटो।
नई दिल्ली, जेएनएन। राज्यसभा के सभापति और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के अमान्य न्यायपालिका के बयान पर की अपनी टिप्पणी का बचाव करते हुए कहा कि अगर उन्होंने इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की होती तो अपनी शपथ से न्याय नहीं किया होता और अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धताओं के प्रति विफल रहते।

धनखड़ ने शुक्रवार को कहा कि वह न्यायपालिका को अमान्य करने की प्रणाली का हिस्सा होने के आरोप का सामना कर रहे हैं। सभापति को विभाजनकारी दृष्टांतों में घसीटने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। राज्यसभा के सभापति ने यह भी कहा कि उन्होंने गहन अध्ययन के बाद उच्च सदन में सोनिया गांधी की टिप्पणी का बहुत कम तीखा जवाब दिया था। इतने उच्च स्तर पर इसका इससे संयमित और परिलक्षित जवाब नहीं हो सकता था।

सोनिया गांधी की टिप्पणी पर मल्लिकार्जुन खरगे ने दी सफाई

धनखड़ के बयान को लेकर राज्यसभा में हंगामे के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने इस मुद्दे को उठाया और उनके वरिष्ठ सहयोगी और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि अगर एक लोकसभा सदस्य (सोनिया गांधी) बाहर बात करती हैं, उस पर राज्यसभा में चर्चा नहीं होनी चाहिए। अगर सभापति उस पर टिप्पणी करते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है और ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।

जानें सोनिया गांधी ने न्यायपालिका को लेकर क्या कहा था

उल्लेखनीय है कि विगत 21 दिसंबर को सोनिया गांधी ने केंद्र पर न्यायपालिका को अमान्य करने के सधे प्रयास करने का आरोप लगाया था। उन्होंने केंद्र सरकार के कामकाज को परेशानी खड़ी करने वाला नया विकास कहा था। उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार जनता की नजरों में न्यायपालिका के रुख को कमतर करने का प्रयास कर रही है।

इसके जवाब में 22 दिसंबर को उप राष्ट्रपति धनखड़ ने सोनिया गांधी के इस बयान को अनुपयुक्त करार देते हुए कहा था कि राजनीतिक दलों के नेताओं को उच्च संवैधानिक संस्थाओं को विभाजनकारी नजरिये से नहीं लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि गांधी का बयान इसलिए भी सच्चाई से दूर है क्योंकि न्यायपालिका को अमान्य करना उनके कार्यक्षेत्र से बाहर है। 

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