'कंधार कांड' में हुई एक गलती का खामियाजा आज तक उठा रहा है भारत
कंघार का नाम सुनते ही आज भी हम लोग सिहर जाते हैं। भारत की एविएशन हिस्ट्री का यह एक बेहद दर्दनाक चैप्टर है जिसको कंधार कांड के नाम से जाना जाता है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। कंघार का नाम सुनते ही आज भी हम लोग सिहर जाते हैं। भारत की एविएशन हिस्ट्री का यह एक बेहद दर्दनाक चैप्टर है जिसको कंधार कांड के नाम से जाना जाता है। जिन लोगों ने इसको करीब से देखा उनके दर्द को शब्दों में बयां करना लगभग नामुमकिन है। 24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस का विमान IC 814 काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से नई दिल्ली की उड़ान पर था, को हरकत उल मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने हाईजैक कर लिया था। हाईजैक की इस खबर ने भारत सरकार की नींद उड़ा कर रख दी थी। इस विमान में 176 पैसेंजर समेत क्रू के कुल 15 सदस्य भी थे। सभी की जान खतरे में थी। इस विमान को हाईजैक ऐसे समय में किया गया था जब पूरी दुनिया नए साल के आने का जश्न मनाने के लिए तैयार हो रही थी। भारत में भी ऐसा ही माहौल था, लेकिन हाईजैक की खबर ने सभी की खुशियों पर पानी फेर दिया था। हर कोई सभी लोगों की सकुशल वापसी के लिए दुआएं कर रहा था और भारत सरकार की तरफ बड़ी उम्मीद भरी नजर से देख रहा था।
अमृतसर, लाहौर, दुबई के रास्ते कंधार पहुंचा था विमान
आतंकियों ने IC-814 विमान को शाम करीब 17.30 बजे हाईजैक किया था। इसके बाद इस विमान को पहले अमृतसर फिर लाहौर फिर दुबई और अंत में अफगानिस्तान के कंधार में उतारा गया था। इस दौरान आतंकियों ने 176 यात्रियों में से 27 को दुबई में छोड़ दिया, लेकिन रूपिन कात्याल नाम के एक यात्री को चाकू से बुरी तरह गोदकर मार डाला था जबकि कई अन्य को घायल कर दिया था। आतंकी अपने तीन खूंखार साथियों मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुस्ताक अहमद जर्गर की रिहाई की मांग कर रहे थे। कंधार कांड को लेकर तत्कालीन भारत सरकार पर भी सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। कई जगहों पर इसको लेकर यहां तक कहा गया कि भारत सरकार यदि समय रहते सही डिसीजन ले पाती तो इसके सारे यात्री सकुशल रिहा किए जा सकते थे। भारत को इसकी बड़ी कीमत अदा करनी पड़ी थी, जिसे भारत आज भी आतंकी की रिहाई के रूप में चुका रहा है।
विमान चालक दल ने दिखाई सूझबूझ
हालांकि उस वक्त इस विमान को चलाने वाले चालक दल के सदस्यों ने काफी सूझबूझ दिखाते हुए विमान में तत्काल इसके हाईजैक होने की घोषणा कर दी थी। इतना ही नहीं उन्होंने आतंकियों की बात मानने के लिए भी यात्रियों से अपील की थी। इसके अलावा उन्होंने विमान की गति को भी काफी कर दिया था ताकि भारत सरकार कोई सही फैसला ले सके। विमान चालक आतंकियों को इस बात को मनाने में भी सफल हो गए थे कि इस विमान में ईंधन काफी कम है और वह केवल दिल्ली या अमृतसर ही जा सकता है। लेकिन उस वक्त सरकार की एक चूक ने सारा मामला खराब कर दिया था। इसका खुलासा पूर्व रॉ चीन ने अपनी एक किताब में भी किया है। इसमें उन्होंने यह भी लिखा है कि जब इंडियन एयरलाइंस का विमान दुबई में था तब भारत ने कमांडो कार्रवाई का फैसला किया था। लेकिन इसके लिए दुबई के प्रशासन ने मदद करने से इंकार कर दिया। भारत ने इसके लिए अमेरिका से भी सहयोग मांगा लेकिन इस निर्णय पर भारत अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पड़ गया।
पूर्व रॉ चीफ का खुलासा
इस पूरे ऑपरेशन की कमान संभालने वाले पूर्व रॉ चीफ एएस दुलत ने अपनी एक किताब में 'कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स' में कंधार कांड का विस्तार से जिक्र किया है। उन्होंने अपनी किताब में कई तथ्यों का खुलासा किया है। इस किताब में दुलत ने यह माना कि क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप (सीएमजी) ने आतंकियों से निपटने के अभियान में गड़बड़ियां की थीं। उन्होंने लिखा है कि 24 दिसंबर, 1999 को जब जहाज अमृतसर में उतरा तो न केंद्र सरकार और न ही पंजाब सरकार कुछ फैसला कर पाई। नतीजा यह हुआ कि पांच घंटों तक सीएमजी की मीटिंग होती रही और प्लेन अमृतसर से उड़ गया और इस तरह आतंकियों पर काबू पाने का मौका देश ने गंवा दिया। बाद में सभी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे। उन्होंने यहां तक कहा कि अमृतसर में जहाज की मौजूदगी के दौरान ऑपरेशन को हेड कर रहे पंजाब पुलिस प्रमुख सरबजीत सिंह ने कहा कि दिल्ली (केंद्र सरकार) ने उन्हें कभी भी नहीं कहा कि IC-814 को उड़ान नहीं भरने देना है।
आतंकियों को छोड़ने के पक्ष में नहीं थे फारुक
इस किताब में उन्होंने 1989 की उस घटना का भी जिक्र किया है, जब मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया को आतंकियों ने अगवा कर लिया था और बदले में पांच आतंकियों को छोड़ना पड़ा था। उस वक्त वह आईबी चीफ थे। वह अपनी किताब में लिखते हैं कि कंधार कांड के वक्त जब वह फारूक अब्दुल्लाह के पास पहले जैसा ही प्रपोजल लेकर पहुंचे थे तब फारुक बुरी तरह से झल्ला उठे थे। वह किसी भी सूरत से आतंकियों को छोड़ना नहीं चाहते थे। फारुक ने उस वक्त सीधेतौर पर दिल्ली सरकार और दुलत को झाड़ लगाते हुए कहा था कि वह जो कर रहे हैं उसका समर्थन वह कभी नहीं करेंगे। इतना ही नहीं उन्होंने आतंकियों को छोड़ने के फैसले पर तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह को भी फोन कर जमकर खरीखोटी सुनाई थी। उनके मुताबिक फारुक उस वक्त इस कदर नाराज थे कि उन्होंने अपनी इस्तीफे तक की बात कह डाली थी। लेकिन परिस्थितियों के आगे उन्हें भी समझौता करना पड़ा था।
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