शिवसेना -एनडीए की राह हुई अलग, क्या उद्धव के पास नहीं था कोई विकल्प
शिवसेना ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ये फैसला किया है कि वो 2019 में आम चुनाव और महाराष्ट्र में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । बाला साहेब ठाकरे की जयंती पर शिवसेना पूरी तरह से भाजपा पर हमलावर रही। ये पहली बार नहीं है जब शिवसेना के नेताओं ने भाजपा के खिलाफ बयान दिया हो। लेकिन इस दफा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी ने कुछ फैसले भी किए। पार्टी ने साफ कर दिया कि अब हालात ऐसे बन चुके हैं कि आगे के लिए भाजपा के साथ कदमताल मिलाकर चलना मुश्किल होगा। शिवसेना 2019 के आम चुनाव और विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। लेकिन इसके साथ ये भी कहा कि अभी राज्य और केंद्र में शिवसेना का हिस्सा बनी रहेगी। एक समान विचार धारा की धरातल पर जब भाजपा और शिवसेना एक साथ थे,तो ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि शिवसेना ने इतना बड़ा ऐलान किया। इसे समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और दूसरे नेताओं ने क्या कुछ कहा।
एनडीए से शिवसेना ने तोड़ा नाताशिवसेना कार्यकारिणी की बैठक में वरिष्ठ संजय राउत ने एनडीए से नाता तोड़ने का प्रस्ताव रखा था जिसे सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। संजय राउत ने इस प्रस्ताव में कहा कि भाजपा से गठबंधन बनाए रखने के लिए हमेशा समझौता किया गया, लेकिन भाजपा ने शिवसेना को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शिवसेना अब गरिमा के साथ चल सकेगी। शिवसेना, केंद्र की मोदी सरकार यहां तक कि राज्य की फडणवीस सरकार की आलोचक रही है।
नोटबंदी, जीएसटी जैसे केंद्र सरकार के फैसले से लेकर हर उस मुद्दे पर शिवसेना अपने सहयोगी पर हमलावर रही, जिसके जरिए विरोधी पार्टियों ने भाजपा को घेरने की कोशिश की। इसके अलावा शिवसेना, फणनवीस सरकार पर निशाना साधती रही है। हाल ही में मुंबई में कमला मिल्स कंपाउंड में लगी आग पर शिवसेना के नेताओं ने भाजपा सरकार को घेरा लेकिन अपनी भूमिका पर चुप्पी साध ली। कांग्रेस के खिलाफ जहर उगलने वाले शिवसेना नेता खास तौर से उद्धव ठाकरे राहुल गांधी की प्रशंसा करते नजर आए। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे द्वारा केजरीवाल सरकार की तारीफ के कई मामले सामने आए थे। ये सब ऐसे प्रसंग हैं जिसकी वजह से भाजपा हमेशा असहज महसूस करती रही है।
उद्धव ठाकरे ने कहा कि हिंदू वोट में फूट ना पड़े इसलिए पार्टी कभी महाराष्ट्र से बाहर नहीं निकली लेकिन अब शिवसेना हर राज्य में हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी। पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि चुनाव आते ही उन्हें कश्मीर की याद आती है। उन्होंने कहा कि आपकी छाती कितने इंच की है ये मायने नहीं रखता है कि उस छाती में कितना शौर्य है ये बताने की जरूरत है। मोदी, नेतन्याहू को गुजरात क्यों लेकर गए अगर आप मजबूत हैं तो उन्हें लेकर लाल चौक पर तिरंगा क्यों नहीं फहराया ?
नौसेना को लेकर नितिन गडकरी के बयान पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि गडकरी सेना का अपमान कर रहे हैं। वह कहते हैं नौसेना सरहद पर क्यों नहीं जाती। मैं पूछना चाहता हूं कि आप सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय क्यों लेते हो, आप लोग सरहद पर जाते हो क्या? उद्धव ठाकरे ने ये भी कहा कि जैसे गौ हत्या पाप है, उसी तरह बात फेंकना भी पाप है। अगर लोगों से झूठ बोलकर सत्ता में आने वाले ऐसे लोगों को जेल में डाला जाने लगा तो ना जाने कौन-कौन लोग जेल जाएंगे।
आदित्य ठाकरे में पार्टी में नंबर 2 की पोजिशन दिए जाने को लेकर उद्धव ठाकरे ने कहा कि आप चाहें तो इसे वंशवाद कहें लेकिन हमें फर्क नहीं पडता है। न जाने हमारी कितनी पीढियां समाज के लिए बलिदान करते रहे हैं। आदित्य भी इसे आगे ले जाएंगे। भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी रही शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कुछ दिन पहले एनडीए से अलग होने की चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि अगर जरूरत हुई, तो उनकी पार्टी एनडीए से अलग होने में परहेज नहीं करेगी।
जानकार की राय
दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर राजीव सचान ने बताया कि शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जो फैसला हुआ वो हताशा और धमकी दोनों को दिखाता है। मसलन शिवसेना ने ये कहा कि 2019 का चुनाव अलग लड़ेंगे। लेकिन केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर सरकार में बने रहेंगे। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि 2014 के विधानसभा चुनाव में जो नतीजे आए वो शिवसेना के लिए खिसियाहट भरे रहे। शिवसेना के पास सरकार में जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। राज्य और केंद्र सरकार में जिस तरह से उनके कोटे के विधायकों और सांसद को मंत्रालय मिला उससे वो खुश नहीं थी। उसका असर आप मोदी सरकार के छोटे से छोटे फैसले में शिवसेना का विरोध देख सकते हैं। इसके अलावा जिस तरह से भाजपा की विजय रथ निर्बाध गति से आगे बढ़ रही है, वैसे में शिवसेना को अपने अस्तित्व पर खतरा मंडराता नजर आ रहा है। बृहन्न मुंबई नगरपलिका का चुनाव के नतीजे भी उदाहरण के तौर पर सामने थे। शिवसेना को लगता है कि जितना नुकसान उससे भाजपा के साथ रहकर हो रहा है उससे ज्यादा फायदा अलग होने में होगा। लेकिन इसका फैसला तो मतदाता ही करेंगे।