यरुशलम पर अमेरिका के खिलाफ वोटिंग का क्या पड़ेगा भारत पर प्रभाव, जानें
अमेरिका के खिलाफ वोटिंग करने वाले देशों में भारत भी शामिल हैं। लिहाजा यहां पर एक बड़ा सवाल यह भी है कि अमेरिका के विरोध में वोटिंग का भारत पर क्या असर पड़ेगा।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। यरूशलम के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में अलग-थलग हुए अमेरिका ने साफ कर दिया है कि जिन देशों ने इस मसले पर उसके खिलाफ वोट दिया है उसको इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। आपको बता दें कि अमेरिका के खिलाफ वोटिंग करने वाले देशों में भारत भी शामिल हैं। लिहाजा यहां पर एक बड़ा सवाल यह भी है कि अमेरिका के विरोध में वोटिंग के भारत पर क्या असर होंगे। गौरतलब है कि तुर्की और यमन की ओर से संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव रखा गया था। इसमें अमेरिका से यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के फैसले को वापस लेने को कहा गया था। इस प्रस्ताव के पक्ष में 128 और विरोध में अमेरिका और इजरायल समेत सिर्फ नौ देशों अपना वोट दिया था जबकि 35 देशों ने प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
भारत का स्पष्ट रुख
न्यूयॉर्क स्थित महासभा की बैठक में भारत ने हालांकि इस मसले पर कुछ नहीं कहा था। लेकिन ट्रंप द्वारा यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के बाद भारत ने कहा था कि फलस्तीन पर उसकी स्थिति पहले की तरह और स्वतंत्र है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से इतर गुट निरपेक्ष देशों की मंत्रिस्तरीय बैठक में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि इजरायल-यरुशलम शांति का मार्ग आपसी मान्यता और सुरक्षा प्रबंधों पर आधारित इजरायल और फलस्तीन के बीच जल्द से जल्द बातचीत से ही निकल सकता है।
बढ़ सकती है भारत की परेशानी
भारत की परेशानियों के मद्देनजर दैनिक जागरण से बात करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और एचडी देवेगौड़ा के मीडिया एडवाइजर एचके दुआ ने साफतौर पर कहा कि यदि यह मामला ज्यादा तूल पकड़ेगा तो न सिर्फ भारत की परेशानियां बढ़ सकती है बल्कि इसका असर समूचे विश्व पर दिखाई दे सकता है। इसकी वजह वह सऊदी अरब और ईरान को मानते हैं जो अलग धड़े हैं, जो कभी साथ नहीं आ सकते हैं। हालांकि उनका यह भी कहना था कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहीं न कहीं इन दोनों को साधने की सफल कोशिश की थी। इसके तहत कायरो स्पीच में उन्होंने ईरान को नवरोज के वक्त संदेश भी भेजा था, जिसका काफी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला था।
अमेरिका का बयान
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निकी हेली ने महासभा के प्रस्ताव की आलोचना की। उन्होंने धमकी भरे अंदाज में कहा कि अमेरिका इस दिन को याद रखेगा जब एक संप्रभु देश के तौर पर अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने की वजह से संयुक्त राष्ट्र महासभा में उस पर हमला हुआ। उन्होंने साफ कर दिया है कि प्रस्ताव भले ही उनके खिलाफ पास हुआ हो लेकिन अमेरिका यरुशलम में अपना दूतावास खोलेगा।
इजरायल और फिलिस्तीन के लिए इस प्रस्ताव के मायने
संयुक्त राष्ट्र में पारित प्रस्ताव के मुताबिक इजरायल को यथास्थिति बरकरार रखनी चाहिए। वहीं फिलिस्तीन की यदि बात करें तो मौजूदा प्रस्ताव उसका ही समर्थन करता है। फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रवक्ता ने भी इसको जाहिर किया है। फिलिस्तीन की तरफ से यहां तक कहा गया है अमेरिका को छोड़कर बाकी देश उसके अच्छे सहयोगी हैं। फिलिस्तीन की तरफ से यह भी कहा गया है कि वह यरूशलम में हुए इजरायल के अवैध कब्जे के खिलाफ अपनी मुहिम को जारी रखेगा।
प्रस्ताव का अमेरिका पर कितना असर
यहां पर एक चीज और महत्वपूर्ण है। वो ये है कि भले ही संयुक्त राष्ट्र में यह प्रस्ताव पारित हो गया हो लेकिन हकीकत ये है कि इससे कुछ बदलने वाला नहीं है। इसकी वजह है कि ये प्रस्ताव अमेरिका के रुख को तो खारिज करता है पर उसकी नीति में बदलाव की बात नहीं करता है। लिहाजा यह प्रस्ताव अमेरिका के लिए केवल संकेत भर है।
प्रस्ताव के पक्ष में रहे ये देश
अमेरिका के अलावा ग्वाटेमाला, होंडुरास, इजरायल, मार्शल आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया, पलाउ, टोगो और नोरू शामिल हैं।
इन देशों ने वोटिंग में नहीं लिया हिस्सा
जिन प्रमुख देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया उनमें आस्ट्रेलिया, भूटान, कनाडा, कोलंबिया, हंगरी, मैक्सिको, पनामा, फिलीपींस, पोलैंड और यूगांडा शामिल हैं।
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