झारखंड में महागठबंधन की तकरार! क्या बिहार तक पहुंचेगी आंच? कांग्रेस को भारी पड़ सकती है ये गलती
झारखंड में महागठबंधन के सहयोगी दलों में खुलकर तकरार सामने आई जब झामुमो और कांग्रेस ने राजद से परामर्श लिए बिना ही सीटें आपस में बांट लीं। तीन दिन से रांची में कैंप कर रहे तेजस्वी यादव को सीट बंटवारे की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी नहीं बुलाया गया। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह गलती बिहार में भारी पड़ सकती है जहां राजद बड़े भाई की भूमिका में है।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। झारखंड में राजद की शैली में ही झामुमो और कांग्रेस ने मिलकर आपस में सीटें बांट ली। राजद से परामर्श लेना भी जरूरी नहीं समझा। तेजस्वी यादव अपनी टीम के साथ होटल में बैठे रह गए, जबकि सीट बंटवारे के लिए बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजद को आमंत्रण तक नहीं दिया गया।
बिहार में सीट बंटवारे के मसले में राजद के सामने कांग्रेस अक्सर याचक की भूमिका में ही खड़ी रही है। किसी तरह तालमेल हो भी गया तो चुनाव बाद उसे स्ट्राइक रेट के मुद्दे पर ताने सुनने पड़े हैं। अबकी उसी अंदाज में कांग्रेस-झामुमो ने भी जवाब दिया है, जिसका महागठबंधन में दूरगामी असर हो सकता है।
शुरू होंगी बिहार चुनाव की तैयारियां
झारखंड के परिणाम के बाद बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियां भी शुरू हो जाएंगी। रांची की तल्खियां पटना तक जा सकती हैं। बिहार में चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भी सहयोगी दलों के प्रचार का अंदाज बदल सकता है, क्योंकि कांग्रेस ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) एवं जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ अंत-अंत तक जो सुलूक किया है, वैसा ही झारखंड में भी झामुमो से मिलकर राजद के साथ किया जा रहा है।
ऐसे में दूसरी तरफ की प्रतिक्रिया से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि लालू प्रसाद की आदत चुप रहने की नहीं है। झारखंड का बदला उन्हें बिहार में लेने का मौका मिल सकता है। राजद ने पिछली बार झारखंड में झामुमो-कांग्रेस के साथ मिलकर सात सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। तब बाबूलाल मरांडी का झारखंड विकास मोर्चा भी महागठबंधन का अंग था, जिसका अब भाजपा में विलय हो गया है।
राजद को 12 सीटों की थी अपेक्षा
ऐसे में राजद को इस बार कम से कम 12 सीटों की अपेक्षा थी। इसी उम्मीद में राजद के शीर्ष नेताओं के साथ तेजस्वी तीन दिनों से रांची में कैंप कर रहे थे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ मुलाकात भी हुई, लेकिन बात नहीं बनी। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के नेतृत्व में भाजपा विरोधी दलों की एकता के लिए सक्रिय राजद की उम्मीदों को पहली बार झटका लगा है।
उधर, भाजपा ने राजग में सारी सीटें बांटकर महागठबंधन की चुनौतियां बढ़ा दी हैं। गठबंधन की सहजता के लिए जीती सीटें भी भाजपा ने जदयू को देने में कोताही नहीं बरती। भाजपा ने आजसू को रामगढ़ और ईचागढ़ जैसी सीटें भी दे दीं, जहां वह मजबूत स्थिति में थी। सीट बंटवारे को लेकर अतीत में भी राजद और कांग्रेस के बीच का समन्वय सामान्य नहीं रहा है।
पहले भी रही है राजद-कांग्रेस में तकरार
2009 में लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद ने रामविलास पासवान के साथ मिलकर बिहार की 40 में से 37 सीटें बांट ली थीं। राजद ने 25 और लोजपा ने 12 सीटें ले ली थीं। कांग्रेस के लिए महज तीन सीटें छोड़ी थी। इससे नाराज कांग्रेस ने गठबंधन तोड़कर सारी सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए थे। नतीजा हुआ कि लालू-रामविलास दोनों हार गए।
वर्ष 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के गुस्से में कमी नहीं आई। राजद एवं लोजपा से अलग होकर ही कांग्रेस चुनाव लड़ी। परिणाम किसी के पक्ष में नहीं आया। राजद 22 सीटों पर सिमट गया। लोजपा के खाते में तीन सीट ही आई। लालू ने सबक लेकर कांग्रेस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और बिहार में फिर वापसी की, किंतु किसी न किसी तरह कांग्रेस को बिहार में पनपने से रोक कर ही रखा।