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'तो क्या मैं वहां जाकर खाना नहीं खाऊंगा, क्योंकि उसे मुस्लिम ने छुआ है?' नेम प्लेट विवाद पर सिंघवी की जोरदार बहस

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भोजनालयों से संबंधित कांवड़ यात्रा निर्देशों पर अंतरिम रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने भोजनालयों को उनके मालिकों कर्मचारियों और अन्य विवरणों के नाम प्रदर्शित करने के लिए दिए गए निर्देशों पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और जस्टिस भट्टी के बीच तीखी बहस हुई।

By mala mala Edited By: Narender Sanwariya Updated: Wed, 24 Jul 2024 01:42 AM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भोजनालयों से संबंधित कांवड़ यात्रा निर्देशों पर अंतरिम रोक लगाई। (File Photo)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा मार्ग में पड़ने वाली खानपान की दुकानों पर मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के प्रशासनिक निर्देशों पर सुप्रीन कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। सोमवार को इस मामले में सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि रेस्टोरेंट, ढाबा, या खानपान का सामान बेचने वालों को यह बताना चाहिए कि वे कांवडि़यों को किस तरह का भोजन परोस रहे हैं।

ये आदेश सोमवार को न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय और एसवीएन भट्टी ने खानपान की दुकानों के मालिकों व कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिये। कोर्ट ने याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर शुक्रवार 26 जुलाई तक जवाब मांगा है।

कोर्ट सुनवाई के दौरान इस बात से सहमत था कि खानपान के मामले में फूड सेफ्टी और स्टैंडर्ड महत्वपूर्ण होता है। कोर्ट ने फूड सेफ्टी और स्टैंडर्ड एक्ट और अन्य कानूनों के प्रविधानों पर भी गौर किया।

मौलिक अधिकार का उल्लंघन

इससे पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीयू सिंह और अभिषेक मनु सिंघवी ने दुकानदारों और कर्मचारियों का नाम प्रदर्शित करने के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि इससे संविधान की प्रस्तावना में कही गई बंधुत्व की बात का उल्लंघन होता है साथ ही ये आदेश अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (धर्म, जाति, वर्ण या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं), 19(1)(जी) (रोजगार की आजादी) और अनुच्छेद 17 (छुआछूत की मनाही) के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

अल्पसंख्यकों के बहिष्कार की आशंका

वरिष्ठ वकीलों ने कहा आदेश पुलिस ने जारी किया है और बहुत होशियारी से उसमें स्वेच्छा से नाम प्रदर्शित करने की बात कही गई है जबकि आदेश का पालन न करने पर दंडित होने की आशंका है। अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि आदेश धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है और इससे अनुसूचित जाति व अल्पसंख्यकों के बहिष्कार की आशंका होगी। इसके चलते समुदाय विशेष के बहुत से लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी है।

कोई तार्किक या कानूनी आधार नहीं

उनका कहना था कि खानपान के मामले में यह तो आदेश हो सकता है कि शाकाहार या मांसाहार की बात प्रदर्शित की जाए लेकिन दुकान के मालिक का नाम प्रदर्शित करने का कोई तार्किक या कानूनी आधार नहीं है। इन दलीलों पर पीठ में शामिल न्यायाधीश एसवीएन भट्टी ने कहा कि जमीनी हकीकत देखें तो इस मामले में तीन पहलू हैं सुरक्षा, मानक और धर्मनिरपेक्षता।

सभी कांवड़ियों की मदद करते हैं

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्रा दशकों से होती आ रही है कभी ऐसे आदेश नहीं हुए। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध सभी कांवड़ियों की मदद करते हैं। स्वच्छता, शाकाहार, मांसाहार तक की बात सही है और लोग उसे प्रदर्शित भी करते हैं। लेकिन अगर किसी हिन्दू के शाकाहारी रेस्टोरेंट में मुस्लिम कर्मचारी है तो क्या मैं वहां जाकर खाना नहीं खाऊंगा क्योंकि उसे मुस्लिम ने छुआ है। खाद्य सुरक्षा और मानक कानून 2006 में लेबल में सिर्फ भोजन की कैलोरी और प्रकृति जैसे शाकाहार या मांसाहार प्रदर्शित करने की बात कही गई है।

सरकारी आदेश स्वेच्छा की बात करता है

तभी जस्टिस भट्टी ने कहा कि मांसाहारी लोगों में भी कुछ हलाल मांस पर जोर नहीं देते? जस्टिस राय ने कहा कि कांवड़ यात्रियों की क्या अपेक्षाएं हैं। वे शिव भक्त हैं। वे शाकाहारी भोजन चाहते हैं। कई लोग तो लहसुन प्याज भी नहीं खाते। लेकिन क्या उनकी ये भी अपेक्षा होती है कि एक निश्चित समुदाय के लोग ही भोजन बनाएं, परोसें। या फिर एक निश्चित समुदाय के लोग ही अन्न उगाएं। सरकारी आदेश स्वेच्छा की बात करता है लेकिन याचिकाकर्ता पेनल्टी की बात भी कह रहे हैं।

कांवड़ियों के लिए साफ-सफाई

जस्टिस राय ने कहा विमान में भी हिन्दू मील मिलता है यह पसंद की बात है। पीठ ने कहा कि अथॉरिटीज कांवड़ियों की पसंद के मुताबिक साफ सफाई के मानकों के साथ शाकाहारी भोजन मिलना सुनिश्चित कर सकती हैं। इसके लिए फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट और स्ट्रीट वेंडर एक्ट के तहत आदेश जारी किये जा सकते हैं लेकिन सक्षम अथॉरिटी को प्राप्त शक्ति कानूनी आधार के बगैर पुलिस नहीं ले सकती।

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