Congress: राज्यों में पार्टी की गुटबाजी थामना खरगे के लिए बड़ी चुनौती
कांग्रेस पार्टी के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि राजस्थान से लेकर केरल ओर तमिलनाडु से लेकर तेलंगाना तक राज्यों के नेताओं के बीच वर्चस्व की जंग अगले चुनावों में पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा सकती है।
By Jagran NewsEdited By: Shashank MishraUpdated: Sat, 26 Nov 2022 09:26 PM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कांग्रेस की राजनीतिक वापसी के लिए संगठनात्मक ढांचे को दुरूस्त करने के लक्ष्य में पार्टी के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के लिए राज्य कांग्रेस इकाईयों में जारी आंतरिक गुटबाजी बड़ी चुनौती बनती दिख रही है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में हुए बदलाव के बाद भी राजस्थान से लेकर केरल और तमिलनाडु से लेकर तेलंगाना जैसे राज्यों में कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान न केवल खुलकर सामने आ रही है बल्कि नए नेतृत्व की सिरदर्दी में इजाफा कर रही है। राज्यों में नेताओं की आपसी उठापटक पार्टी की चुनावी संभावनाओं के लिए दोहरे नुकसान का सबब बन सकती है।
खासकर यह देखते हुए कि जिन राज्यों में पार्टी नेताओं के बीच वर्चस्व की जंग चल रही है उसमें कुछ राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए भी अब डेढ साल का वक्त ही रह गया है और कांग्रेस के नए नेतृत्व के साथ ही पार्टी के राजनीतिक अस्तित्व के लिए दोनों चुनाव अहम हैं।
शीर्ष नेतृत्व में बदलाव के बाद पार्टी में अंदरूनी खींचतान पर विराम लगने की कांग्रेस में उम्मीद की जा रही है। मल्लिकार्जुन खरगे के अध्यक्ष चुने जाने के साथ ही कांग्रेस के असंतुष्ट जी-23 समूह का स्वरुप जिस तरह खत्म हुआ है वह इस उम्मीद को और बल देता है। लेकिन फिलहाल खरगे के सामने राज्यों में इस उम्मीद पर खरा उतरने की राह आसान नहीं नजर आ रही। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की अंदरूनी लड़ाई अब खुले मैदान की ललकार के रुप में सामने आ गई है। पार्टी नेतृत्व ने दोनों के बीच संतुलन बनाने के फार्मूले के साथ इस जंग का हल नहीं निकाला तो राज्य विधानसभा ही नहीं अगले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
पार्टी के लिए इसमें अब भी बहुत देर इसीलिए नहीं हुई है कि राजस्थान भाजपा में भी भारी अंदरूनी कलह है मगर कांग्रेस नेतृत्व के पास भी गहलोत-पायलट विवाद का स्थाई हल निकालने का कोई ठोस फार्मूला नजर नहीं आ रहा है। केरल में कांग्रेस को अंदरूनी गुटबाजी के चलते ही पिछले विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार एलडीएफ से मात खाना पड़ा था। सूबे के नेताओं के बीच रस्साकशी में शशि थरूर की सियासी सक्रियता ने अब एक नया अध्याय जोड़ दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के बाद थरूर का राजनीतिक ग्राफ बढ़ा हे और जाहिर तौर पर वे पार्टी में वे अपनी बढ़ी भूमिका तलाश रहे हैं।
हाल में प्रदेश कांग्रेस के विरोध के बावजूद थरूर ने केरल के मालाबार इलाके के पांच दिनों का दौरा कर अपने सियासी प्रभाव की हलचल दिखाई। इसी तरह तेलंगाना में कांग्रेस ने चाहे रेवंत रेडडी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर सूबे में एक प्रभावी चेहरा दिया है मगर पुराने कांग्रेसी दिग्गज उनके खिलाफ खुला मोर्चा खोलने से बाज नहीं आ रहे। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने इसी वजह से इस्तीफा भी दिया है जिसमें ताजा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री एम चेन्ना रेडी के बेटे शशिधर रेडडी का है जिन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया है।
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तमिलनाडु में कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी तो पिछले हफ्ते प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी दिनेश गुंडू राव की मौजूदगी में हो रही बैठक में मारपीट के रुप में सामने आ गई। प्रदेश नेतृत्व के समर्थक नेताओं से संघर्ष के बाद राज्य के एक वरिष्ठ नेता और विधायक रूबी मनोहर को निलंबित कर दिया गया। लेकिन एआइसीसी प्रभारी ने इस निलंबन पर रोक लगा दी। बहरहाल कांग्रेस के लिए राहत की बात यह रही कि मामला जब खरगे के पास पहुंचा तो शनिवार को दोनों गुटों के बीच सुलह पर सहमति बन गई।
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