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Maharashtra political crisis: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत के 10 कारण

महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे की सरकार पिछले ढाई साल में कम से कम तीसरी बार गंभीर राजनीतिक संकट का सामना कर रही है। इसकी वजहें कई हैं लेकिन मुख्यरूप से दोषी खुद मुख्यमंत्री हैं। यह देखना होगा कि वे किस तरह से इस संकट से उबरते हैं।

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Updated: Wed, 22 Jun 2022 12:24 PM (IST)
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महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के कुल 55 विधायक
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। Maharashtra political crisis महाराष्ट्र के बागी मंत्री और शिव सेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे अपने 40 विधायकों के साथ गुजरात के सूरत से असम से गुवाहाटी पहुंच गए हैं। राजनीतिक पंडितों से लेकर राजनीति में रुचि रखने वाले आम जन की नजरें आज दिन भर के घटनाक्रम पर टिकी रहेंगी। सबके मन में यही प्रश्न है कि आगे क्या होगा? क्या बागियों की मदद से भाजपा की सरकार बनेगी या राज्य में (President rule in Maharashtra) राष्ट्रपति शासन लगेगा? इन सवालों के मद्देनजर यह जानना भी जरूरी है कि आखिर यह नौबत आई क्यों।

यह तो स्पष्ट है कि एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) का यह कदम महाराष्ट्र सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत है। आइए जानते हैं इसकी मुख्य वजहें क्या हैं

1- राजनीतिक स्पष्टता का अभावः बाल ठाकरे की पहचान देश की राजनीति में हिंदुत्व के प्रखर प्रवक्ता के रूप में होती है। पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को मुंबई में मैच खेलने से रोकने के लिए पिच खोद देने की राजनीति करने वाले ठाकरे के उत्तराधिकारी के रूप में उद्धव ठाकरे पूरी तरह से विफल दिख रहे हैं। गाहे-बगाहे मराठा गौरव की बात कह देने भर से उनके कैडर को यह नहीं समझाया जा सकता है कि उनकी पार्टी उस कांग्रेस और उससे निकली एनसीपी के साथ सरकार चला रही है, जो वीर सावरकर को अंग्रेजों का पिट्ठू कहते हैं।

2-किचन कैबिनेट पर भरोसाः मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे (Udhav Thakre) का अपनी पार्टी एवं गठबंधन के अन्य दलों के विधायकों के साथ सीधा संपर्क नहीं होना। इसके बजाय शिव सेना नेता मिलिंद नार्वेकर और अनिल परब के अलावा चीफ सेक्रेटरी की किचन कैबिनेट के जरिए संवाद करना। इसकी वजह से उनकी छवि अलग-थलग रहने वाले नेता के रूप में बन गई है।

3- चुनौतियों को नजरअंदाज करनाः उद्धव ठाकरे ने राजनीतिक संकेतों को पढ़ने में गलती की या यह कह सकते हैं कि उनकी अवहेलना की। 11 जून को राज्यसभा चुनाव में पर्याप्त सीटें न होने के बावजूद भाजपा उम्मीदवार की जीत के बाद एनसीपी सुप्रीमो और महाराष्ट्र के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार (Sharad Pawar) ने पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस की प्रशंसा करते हुए एक तरह से उद्धव को आगाह किया था, लेकिन उन्होंने अनसुना कर दिया।

4- इंटेलीजेंस की अनदेखीः मुख्यमंत्री के रूप में वे कितने कटे हुए थे इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शिव सेना एवं गठबंधन दलों के विधायकों में नाराजगी और विपक्ष से संपर्क को लेकर राज्य की इंटेलीजेंस विभाग ने भी जानकारी दी थी, लेकिन इसकी भी अनदेखी की गई।

5-सीख न लेनाः उद्धव ठाकरे कोई पहले नेता नहीं हैं जो बिना किसी अनुभव के सीएम बन गए। असम के सीएम रहे प्रफुल कुमार महंत से लेकर ओडिशा के नवीन कुमार पटनायक तक इसके उदाहरण हैं। ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र के सीएम अपनी गलतियों से सीखने की कोशिश नहीं कर रहे हैं।

6- बजट पर पवार प्रभावः राज्य के इस वित्त वर्ष के बजट में विकास कार्यों के लिए आवंटित फंड को लेकर शिव सेना के विधायकों में नाराजगी थी। उन्हें लग रहा था कि बजट में एनसीपी (NCP) के विधानसभा क्षेत्रों को ज्यादा अहमियत दी गई है। लगभग दो दर्जन विधायकों ने बजट सत्र के बायकाट तक की धमकी दी थी। मुख्यमंत्री और उनकी किचन कैबिनेट ने इन संकेतों की गंभीरता को नहीं समझा।

7-आदित्य ठाकरे को प्रमुखताः सीएम द्वारा पुत्र आदित्य ठाकरे को सुनियोजित ढंग से अपने विकल्प के रूप में आगे बढ़ाने के कारण शिव सेना के लिए वर्षों से संघर्ष करते हुए ऊपरी पायदान पर पहुंचे एकनाथ शिंदे जैसे नेताओं को भान हो गया था कि अब पार्टी में सिर्फ परिवार की चलेगी। वंशवाद के इस अभिशाप की काट के रूप में उनके सामने विद्रोह का बिगुल बजाने के अलावा कोई चारा नहीं था।

8- नेताओं में हार का डरः कई विधायकों को लग रहा था कि उनकी सीट अगले चुनाव में एनसीपी या कांग्रेस को दे दी जाएगी। छगन भुजबल को नाशिक का गार्जियन मिनिस्टर के पद से हटाने के लिए नंदगांव के विधायक सुहास कांदे की मुंबई हाईकोर्ट में दायर याचिका सारी कहानी कह देती है। कांदे को लग रहा था कि उनकी सीट एनसीपी के खाते में चली जाएगी। कांदे आज शिंदे के साथ गुवाहाटी में हैं।

9-निर्दलियों में गुस्साः महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की गठबंधन सरकार (MVA Alliance govt Maharashtra) के मुखिया उद्धव ठाकरे के खिलाफ सिर्फ शिव सेना एवं अन्य बड़े दलों के विधायकों में ही असंतोष नहीं था, बल्कि उन्हें समर्थन दे रहे एक-दो विधायकों वाली पार्टियों में भी गुस्सा भरा हुआ था। बहुजन विकास अघाड़ी पार्टी के हितेंद्र ठाकुर ने इसी वजह से राज्यसभा एवं विधान परिषद के चुनाव में शिव सेना के खिलाफ वोट डाला। पवार ने अपनी पार्टी के पक्ष में समर्थन के लिए विधायकों को खुद फोन किया, जबकि उद्धव ठाकरे अपनी किचन कैबिनेट के सहारे बैठे रहे और चिड़िया खेत चुग गई।

10-शौक के अलावा कुछ नहींः अक्सर महाराष्ट्र में इस बात की चर्चा होती है कि उनके राज्य में एक ऐसा मुख्यमंत्री है, जो अपने प्रशासनिक एवं राजनीतिक दायित्यों के निर्वहन को लेकर चर्चा करने के बजाय फोटोग्राफी और वाइल्ड लाइफ पर गपशप ज्यादा पसंद करते हैं।