Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

बिहार में इतिहास हुआ लालू का 'हरा गमछा', क्या है RJD में तेजस्वी की पॉलिटिक्स का प्लान

तेजस्वी यादव ने बिहार की राजनीति में आरजेडी के लिए अब प्लान चेंज कर लिया है। कई बार वह इसका संकेत भी दे चुके हैं। लालू की गमछा संस्कृति से पीछा छुड़ाने को तेजस्वी की कोशिशों की एक और कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। लालू ने करीब तीन साल पहले पार्टी में गमछे का चलन शुरू किया था।

By Jagran News Edited By: Manish Negi Updated: Fri, 06 Sep 2024 09:08 PM (IST)
Hero Image
बिहार की राजनीति में आरजेडी के लिए नया दौर (फाइल फोटो)

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। राजनीति के नए दौर की जरूरत के हिसाब से तेजस्वी यादव बार-बार लालू प्रसाद के अखाड़े से बाहर निकलने के प्रयास में हैं। किंतु राजद का घटनाक्रम बता रहा कि लालू उन्हें अपने दायरे से बाहर जाने देने के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं। लालू की गमछा संस्कृति से पीछा छुड़ाने को तेजस्वी की कोशिशों की एक और कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।

तेजस्वी ने पीछे छोड़ा लालू का MY समीकरण

इसके पहले लालू के MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को पीछे छोड़कर तेजस्वी ने लोकसभा चुनाव के दौरान बाप (बहुजन, अगड़ा, महिला, गरीब) के नारे को उछाला था। यहां तक कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने लालू के बैनर-पोस्टर से भी पीछा छुड़ा लिया था। संकेत साफ है कि परंपरागत पहचान को बदलकर तेजस्वी राजद को नए परिधान में सजाना चाह रहे हैं, लेकिन अब भी कई मोर्चे पर लालू दीवार बनकर खड़े दिखते हैं। खासकर प्रत्याशी चयन के दौरान राजद लालू की पटरी पर ही चलता नजर आता है।

हरा गमछा बना इतिहास

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की लाल टोपी से प्रभावित होकर लालू ने राजद में हरे गमछे का चलन तीन वर्ष पहले शुरू किया था, जो अब इतिहास बन गया। लालू के गमछे को खारिज करने में तेजस्वी को सर्वे का सहारा लेना पड़ा। तेजस्वी की यात्रा की तैयारियों के लिए चार सितंबर को पटना के राजद कार्यालय में बुलाई गई बैठक लीक से हटने की छटपटाहट का ताजा उदाहरण है। लालू ने आने की तैयारी कर रखी थी। संदेश पहुंच गया था। मंच पर कुर्सी भी लगा दी गई थी, लेकिन तेजस्वी इसके लिए तैयार नहीं थे। डर था कि लालू के आने से बैठक का उद्देश्य प्रभावित हो जाएगा। अंतत: तेजस्वी कामयाब हुए। लालू नहीं आए। मंच पर यादव नेताओं की संख्या को भी सीमित कर दिया गया।

राजद में सवर्ण की भागीदारी अच्छी

तेजस्वी के सामाजिक परिवर्तन के प्रयासों को राजद के जिला प्रभारियों के चश्मे से भी देखा जा रहा है। पहली बार सवर्ण की अच्छी भागीदारी होने जा रही है। जिला प्रभारियों में आठ सवर्ण हैं। सबसे ज्यादा चार भूमिहार समेत दो-दो राजपूत एवं ब्राह्मण हैं, जबकि अपने दौर में लालू ने भूरा बाल (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला) साफ करो का नारा उछाला था, जिसकी देशव्यापी प्रतिक्रिया हुई थी। किंतु लोकसभा चुनाव के बाद राजद की ओर से कराए गए सर्वे का निष्कर्ष निकला कि कई सीटों पर सवर्णों (खासकर भूमिहारों) ने राजद के पक्ष में वोट किया है। इससे राजद की धारणा बदल गई। कार्यकर्ताओं को खास हिदायत दी जा रही है कि आगे से सवर्णों के दरवाजे भी वोट मांगने जाना है।

उत्तेजित करने वाले भोजपुरी गानों से भी किनारा

चुनावी सभाओं एवं कार्यक्रमों में राजद ने गमछा लहराकर अपने समर्थकों को उत्तेजित करने का परिणाम लोकसभा चुनाव में देख लिया है। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव के लिए हर कदम को फूंक-फूंक कर रखा जा रहा है। लालू परिवार के सूत्र ने बताया कि गमछा पर प्रतिबंध के बाद वैसे भोजपुरी गानों से भी परहेज करने की तैयारी है, जिसमें लालू के “प्रताप'' का बखान कर अन्य समुदायों में आतंक पैदा करने की कोशिश की जाएगी।