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देश में मतदाता सूची से जुड़ी व्यवस्था पर डालते हैं एक नजर

मतदाता सूचियों के एकीकरण के लिए दो रास्ते हैं। पहला रास्ता है कि केंद्र सरकार राज्य चुनाव आयोगों को अलग मतदाता सूची बनाने का अधिकार देने वाले संवैधानिक प्रविधान में बदलाव करे। इसके लिए अनुच्छेद 243के और 243जेडए में संशोधन की जरूरत होगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 27 Dec 2021 12:14 PM (IST)
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चुनाव आयोग की मतदाता सूची का ही प्रयोग करने का प्रविधान करें।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। केंद्र में सत्तासीन भाजपा लोकसभा, विधानसभा, पंचायत और निकाय चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची के पक्ष में रही है। यह भाजपा के चुनावी वादे का भी हिस्सा रहा है। विधि आयोग ने 2015 में अपनी 255वीं रिपोर्ट में मतदाता सूचियों के एकीकरण की सिफारिश की थी। इससे पहले 1999 और 2004 में चुनाव आयोग भी एकल मतदाता सूची का पक्ष ले चुका है। फिलहाल आधार और मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने की दिशा में बढ़ते कदमों को देखते हुए इस लंबित चुनाव सुधार के मामले में भी प्रगति की उम्मीद है। हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से चर्चा में एकल मतदाता सूची को लेकर लंबित सुधार पर चर्चा भी की है।

देश में मतदाता सूची से जुड़ी व्यवस्था पर डालते हैं एक नजर:

इसलिए है अलग-अलग सूची: देश में चुनावों की जिम्मेदारी संवैधानिक संस्थाओं चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोगों पर है। चुनाव आयोग संसदीय चुनाव और राज्य विधानसभा व विधान परिषद के चुनावों की जिम्मेदारी संभालता है। वहीं राज्य चुनाव आयोग संबंधित राज्य में पंचायत और निकाय चुनावों की व्यवस्था देखते हैं। राज्य चुनाव आयोगों को स्वतंत्र रूप से इन स्थानीय चुनावों के लिए अपनी मतदाता सूची तैयार करने का अधिकार है।

सभी राज्यों में अलग नहीं है सूची: राज्य चुनाव आयोगों को संबंधित राज्यों में वहां के कानून के अनुसार अधिकार मिले हुए हैं। कुछ सरकारों ने अपने यहां राज्य चुनाव आयोगों को चुनाव आयोग की मतदाता सूची से ही स्थानीय निकायों के चुनाव कराने की अनुमति दी है। वहीं अन्य राज्यों में चुनाव आयोग की सूची को आधार बनाते हुए राज्य चुनाव आयोग अपनी सूची तैयार करते हैं। फिलहाल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, असम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर के अलावा अन्य राज्यों में चुनाव आयोग की मतदाता सूची के आधार पर ही स्थानीय निकायों के चुनाव होते हैं।

इसलिए है एकीकरण की जरूरत: देश में अलग-अलग स्तर पर सालभर कोई न कोई चुनाव होता रहता है। इससे बहुत ज्यादा अपव्यय होता है। इसे देखते हुए कई बार इस तरह की मांग उठी है कि सभी चुनाव एक साथ ही करा दिए जाएं। इससे श्रम और संसाधन की बचत होगी। मतदाता सूची का एकीकरण इस दिशा में अहम कदम है। मतदाता सूची के एकीकरण से एक ही काम के लिए दो बार संसाधनों का प्रयोग नहीं करना पड़ेगा। इसके अलावा एक साथ चुनाव कराने में भी इससे सहायता मिलेगी।

दो रास्तों से हो सकता है एकीकरण: मतदाता सूचियों के एकीकरण के लिए दो रास्ते हैं। पहला रास्ता है कि केंद्र सरकार राज्य चुनाव आयोगों को अलग मतदाता सूची बनाने का अधिकार देने वाले संवैधानिक प्रविधान में बदलाव करे। इसके लिए अनुच्छेद 243के और 243जेडए में संशोधन की जरूरत होगी। इनमें पंचायत एवं निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव आयोगों को अधिकार दिए गए हैं। दूसरा रास्ता है कि केंद्र सरकार राज्यों को निर्देश दे कि वे अपने संबंधित कानून में बदलाव करते हुए राज्य चुनाव आयोगों को पंचायत एवं निकाय चुनावों के लिए चुनाव आयोग की मतदाता सूची का ही प्रयोग करने का प्रविधान करें।