Lok Sabha Election 2024: मतदाता हो या पार्टी, सभी चाहते हैं मुफ्त की रेविड़यों की संस्कृति; आईना दिखाती एसबीआइ की रिपोर्ट
मुफ्त की रेवड़ियों की भरमार के साथ पांच राज्यों के चुनाव हो गए और अब लोकसभा चुनाव में भी घोषणा-पत्रों में इस तरह की खूब घोषणाएं होंगी। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी थी कि सभी दल मुफ्त की रेवड़ियां चाहते हैं क्योंकि ज्यादातर दल मुफ्त की रेवड़ियों पर कोर्ट की सुनवाई का विरोध कर रहे हैं और कुछ ने चुप्पी साध रखी है।
माला दीक्षित, नई दिल्ल। किसी भी तरह चुनाव जीतने की जुगत में लगे राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त की रेवड़ियों की घोषणा करते हैं, जबकि मतदाता से लेकर राजनीतिक दलों और सरकार, सभी को पता है कि इससे अर्थव्यवस्था चौपट होती है। इस पर विमर्श खूब हुआ।
न्यायालय ने भी चिंता जताई, लेकिन रोक के लिए न तो सरकार कानून लाई और न कोर्ट ने आदेश दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई बार इस पर चिंता जता चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे अर्थव्यवस्था के लिए घातक और गंभीर मुद्दा बताते हुए संसद में चर्चा का सुझाव दिया था। सर्वदलीय बैठक बुलाने से लेकर विशेषज्ञ समिति गठित करने तक की बात उठी, लेकिन सब बातों तक ही सीमित रह गया।
सभी दल मुफ्त की रेवड़ियां चाहते हैं: सुप्रीम कोर्ट
इस बीच मुफ्त की रेवड़ियों की भरमार के साथ पांच राज्यों के चुनाव हो गए और अब लोकसभा चुनाव में भी घोषणा-पत्रों में इस तरह की खूब घोषणाएं होंगी। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी थी कि सभी दल मुफ्त की रेवड़ियां चाहते हैं, क्योंकि ज्यादातर दल मुफ्त की रेवड़ियों पर कोर्ट की सुनवाई का विरोध कर रहे हैं और कुछ ने चुप्पी साध रखी है।आम आदमी पार्टी, डीएमके और वाईएसआरसीपी ने तो बकायदा अर्जी दाखिल कर सुनवाई का विरोध किया है। केंद्र सरकार ने जरूर कोर्ट से इस पर आदेश देने या विचार के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध किया था।सर्वदलीय बैठक में विमर्श के सुझाव पर सरकार का कहना था कि जब ज्यादातर दल कोर्ट में सुनवाई का विरोध कर रहे हैं तो सर्वदलीय बैठक में हल कैसे निकलेगा। मुफ्त की रेवड़ियों में नकद पैसा देने से लेकर हर तरह के उपहार, बिजली, पानी बिल माफ करने और यहां तक कि कर्ज माफी तक का प्रलोभन शामिल है।
पहले भी उठती रही है मांग
यह पहला मौका नहीं है कि जब कोर्ट से मुफ्त की रेवड़ियों को चुनाव में भ्रष्ट आचरण घोषित करने की मांग हो रही हो। करीब 11 वर्ष पूर्व पांच जुलाई, 2013 को सुप्रीम कोर्ट ऐसी ही मांग ठुकरा चुका है। कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक दलों द्वारा घोषणा-पत्र में किए गए मुफ्त उपहारों के वादे, जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में नहीं आएंगे, क्योंकि जनप्रतिनिधित्व कानून उम्मीदवारों की बात करता है, न कि राजनीतिक दलों की। यह फैसला दो जजों की पीठ ने दिया था।