देश में विपक्षी एकता की राह बहुत मुश्किल, कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक; इन 14 राज्यों में दिखती है भाजपा की ताकत
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों ने कमर कस ली है। लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दल एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन पुराने आंकड़े कुछ और कहानी बयां करती है। आइए जानते हैं कि विपक्षी दलों के आगे क्या-क्या चुनौतियां खड़ी है।
By Jagran NewsEdited By: Piyush KumarUpdated: Fri, 09 Jun 2023 08:26 PM (IST)
नीलू रंजन, नई दिल्ली। अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने चुनौती पेश करने के लिए विपक्षी दल भले ही एकजुट होने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन पुराने आंकड़े उन्हें परेशान करेंगे। 14 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को पिछले लोकसभा चुनाव में 50 फीसद या उससे अधिक वोट मिले थे।
इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में लोकसभा की 330 सीटें हैं, जिनमें भाजपा और सहयोगी दल 298 सीटें जीतने में सफल रही थी और अकेले भाजपा ने 255 सीटें जीती थीं। ध्यान देने की बात है कि 543 सीटों वाले लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है।
साल 2019 में भाजपा को मिले थे जमकर वोट
2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देंखे तो छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा को अकेले 50 फीसद वोट मिले थे। वहीं बिहार और महाराष्ट्र में जदयू और शिवसेना जैसे सहयोगी दलों के साथ भाजपा 50 फीसद मत हासिल किया था।भाजपा की इस सफलता के पीछे नए सामाजिक व जातीय समीकरण के बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता की अहम भूमिका थी। दिल्ली, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान और झारखंड के विधानसभा चुनावों में हारने के बावजूद लोकसभा चुनावों में भाजपा का यह प्रदर्शन प्रधानमंत्री की लोकप्रियता के असर को दर्शाता है।विधानसभा चुनाव हारने के छह महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा छत्तीसगढ़ में 51.4 फीसद वोट के साथ 11 में से नौ सीटें, राजस्थान में 59.1 फीसद वोट के साथ 25 में से 24 सीटें (एक सीट सहयोगी दल को) और मध्यप्रदेश में 58.5 फीसद वोट के साथ 29 में से 28 सीटें जीतने में सफल रही थी। वहीं, विधानसभा चुनाव में भाजपा को छत्तीसगढ़ में महज 33.6 फीसद, राजस्थान में 39.3 और मध्यप्रदेश में 41.6 फीसद वोट मिले थे।
साल 2018 में कर्नाटक में भाजपा ने मारी थी बाजी
यही नहीं, कर्नाटक में भी 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 36.2 फीसद वोट के साथ बहुमत से दूर रह गई थी, लेकिन एक साल बाद लोकसभा चुनाव में 51.7 फीसद वोट के साथ 28 में से 25 सीटें जीतने में सफल रही और एक सीट भाजपा समर्थित निर्दलीय ने जीता था।
ध्यान देने की बात है कि चाहे लोकसभा का चुनाव हो या फिर विधानसभा का, भाजपा एक बार हासिल वोट फीसद हासिल करती है तो उसे बरकरार रखती है। पिछले महीने हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी देखा जा सकता है, जहां 65 सीटों पर सिमटने के बावजूद भाजपा का लगभग 36 फीसद वोट हासिल किया।हिमाचल प्रदेश, दिल्ली विधानसभा और एमसीडी चुनाव में भी यह रिकॉर्ड दिखा था। बात सिर्फ इन 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक सीमित नहीं है। 25 सीटों वाले आंध्रप्रदेश और 21 सीटों वाले ओडिशा में एकता की तलाश में जुटे विपक्षी दलों का जनाधार नहीं है।