Lok Sabha Election: छोटे दलों संग भाजपा की बड़ी रणनीति, साधे पूरब से पश्चिम तक समीकरण, विपक्षी दलों की बढ़ी चुनौती
लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजग के लिए अबकी बार 400 पार का नारा सिर्फ कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए नहीं किया बल्कि सरकार के कामकाज की ताकत के साथ-साथ भाजपा संगठन की ठोस रणनीति के आधार पर दिया है। इस बड़े लक्ष्य के लिए भाजपा की प्रदेश इकाइयां किस तरह माइक्रो मैनेजमेंट कर रही हैं उसकी बानगी उत्तर प्रदेश में साफ दिखाई देती है।
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजग के लिए 'अबकी बार 400 पार' का नारा सिर्फ कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए नहीं किया, बल्कि सरकार के कामकाज की ताकत के साथ-साथ भाजपा संगठन की ठोस रणनीति के आधार पर दिया है। इस बड़े लक्ष्य के लिए भाजपा की प्रदेश इकाइयां किस तरह 'माइक्रो मैनेजमेंट' कर रही हैं, उसकी बानगी उत्तर प्रदेश में साफ दिखाई देती है।
सूबे की सभी 80 सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ भाजपा छोटे दलों संग बड़ी रणनीति पर काम कर रही है। ब्रज, अवध और बुंदेलखंड पहले से मजबूत थे। कुछ दलों को साथ लेकर सपा के प्रभाव वाले पूर्वांचल को साधा और अब राष्ट्रीय लोकदल के सहारे चुनौतीपूर्ण माने जा रहे पश्चिमी उत्तर प्रदेश का संतुलन बनाने की भी तैयारी पूरी कर ली है।
उत्तर प्रदेश में अंचलवार क्षेत्रीय दलों का जातीय प्रभाव
सर्वाधिक संसदीय सीटों वाले उत्तर प्रदेश में अंचलवार क्षेत्रीय दलों का जातीय प्रभाव है। पिछले दो लोकसभा चुनावों के परिणाम बताते हैं कि अवध, ब्रज और बुंदेलखड अंचल में भाजपा के लिए कोई खास चुनौती नहीं है, लेकिन पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश चुनौतीपूर्ण जरूर था। यहां दलितों और पिछड़ों की आबादी अच्छी संख्या में है।पूर्वांचल-पश्चिमी यूपी में सात-सात सीटों पर मिली पराजय
उसी की वजह से 2019 में सपा, बसपा और रालोद ने प्रदेश में गठबंधन कर चुनाव लड़ा तो सपा के गढ़ मैनपुरी और कांग्रेस की पारंपरिक सीट रायबरेली सहित भाजपा को पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सात-सात सीटों पर पराजय मिली। लिहाजा, इस बार इन दोनों अंचलों में भाजपा सभी जातीय समीकरणों को पूरी तरह दुरुस्त कर लेना चाहती है।