Move to Jagran APP

ओम बिरला ने दिलाई इमरजेंसी की याद तो कांग्रेस को नहीं आया रास, विपक्ष के भारी हंगामे के बावजूद नहीं रुके स्पीकर

आपातकाल के मुद्दे पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने आज खुलकर बात की। विपक्ष के बार-बार हंगामा करने के बावजूद ओम बिरला अपनी बात करने से बिल्कुल रूके नहीं। उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास में 25 जून 1975 का दिन काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा। हम उनकी सराहना करते हैं जिन्होंने इमरजेंसी के विरुद्ध संघर्ष किया और लोकतंत्र की रक्षा की।

By Jagran News Edited By: Nidhi Avinash Updated: Wed, 26 Jun 2024 11:45 PM (IST)
Hero Image
आपातकाल के मुद्दे पर सदन में टकराव का आगाज (Image: ANI)
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। लोकसभा में ओम बिरला के दोबारा अध्यक्ष चुने जाने के तुरंत बाद आपातकाल के मुद्दे पर सदन में बुधवार को तनातनी की स्थिति उत्पन्न हो गई। स्पीकर ने अपनी तरफ से प्रस्ताव लाकर विपक्ष को आपातकाल की याद दिलाते हुए कांग्रेस की तत्कालीन सरकार की तीखे शब्दों में भ‌र्त्सना की, जो कांग्रेस को रास नहीं आया। बिरला के पहले ही संबोधन में सख्त रुख से हतप्रभ विपक्षी खेमे से भी प्रतिक्रिया आने लगी और हंगामा शुरू हो गया।

दो मिनट का मौन रखने का आग्रह

संबोधन के आखिर में स्पीकर ने आपातकाल के योद्धाओं की स्मृति में सदन में सदस्यों से दो मिनट का मौन रखने का आग्रह किया, जिसे कई विपक्षी सदस्यों ने अनसुना कर दिया और अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर नारेबाजी करते रहे। हालांकि जब अध्यक्ष अपना संबोधन पढ़ रहे थे तो कांग्रेस के सदस्य विरोध स्वरूप खड़े थे जबकि बाकी विपक्षी दलों के सदस्य बैठे थे।

लोकसभा में स्पीकर बिरला ने क्या कहा?

देश में आपातकाल लागू होने के 50वें वर्ष में प्रवेश के मौके पर लोकसभा में स्पीकर बिरला ने कहा कि भारत के इतिहास में 25 जून 1975 का दिन काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा। हम उनकी सराहना करते हैं, जिन्होंने इमरजेंसी के विरुद्ध संघर्ष किया और लोकतंत्र की रक्षा की। युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के इस काले सच के बारे में जानने की जरूरत है।

कांग्रेस पर बिरला का हमला

कांग्रेस पर सीधा हमला बोलते हुए बिरला ने कहा कि भारत को दुनिया में 'लोकतंत्र की जननी' कहा जाता है, लेकिन इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर बाबा साहब आंबेडकर के संविधान पर प्रहार किया। लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचलकर तानाशाही थोप दी। मीडिया पर प्रतिबंध लगाकर अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट दिया। आसन से स्पीकर के संबोधन में विपक्ष के उस रवैये का भी जवाब छुपा था, जिसमें लोकसभा चुनाव में संविधान के खतरे में होने के नारे लगाए जा रहे थे और सदन में भी राहुल गांधी समेत विपक्ष के कई सदस्यों ने संविधान की प्रति के साथ लोकसभा सदस्यता की शपथ लेते देखे गए थे।

विपक्ष के भारी हंगामे के बावजूद बिरला नहीं रुके

विपक्ष के भारी हंगामे के बावजूद बिरला नहीं रुके। उन्होंने उस दौर में इंदिरा गांधी सरकार के कई निर्णयों को भी गलत ठहराया और कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया। बिरला के संबोधन में संविधान का उल्लेख भी कई बार आया। आरोप लगाया कि इंदिरा ने कई ऐसे निर्णय लिए जिससे संविधान की भावनाएं आहत हुईं। दावा किया कि संविधान में पांच-पांच संशोधन किए गए। मकसद एक ही व्यक्ति में सारी शक्तियों को निहित करना था। इंदिरा गांधी नौकरशाही एवं न्यायपालिका को भी अपने प्रति उत्तरदायी बनाना चाहती थीं।

गिरफ्तार लोगों को अदालतों से न्याय नहीं मिल पाए

मेंटेनेंस आफ इंटरनल सेक्योरिटी एक्ट (मीसा) लगाकर इंदिरा गांधी ने सुनिश्चित किया कि मीसा के तहत गिरफ्तार लोगों को अदालतों से न्याय नहीं मिल पाए। एक्ट लाकर मीडिया को सच लिखने से रोका गया।दरअसल बिरला का यह संबोधन एजेंडा में नहीं था। लिहाजा विपक्ष में कोई रणनीति तैयार नहीं थी। कांग्रेस की ओर से विरोध तो स्वाभाविक था लेकिन दूसरे सहयोगी दल असमंजस में दिखे। इसीलिए कभी कभार दूसरे विपक्षी दलों के कुछ सदस्य भी खड़े हो जाते फिर बैठ जाते।

संबोधन के अंत में स्पीकर ने सदस्यों से आपातकाल के दौरान जान गंवाने वाले नागरिकों की स्मृति में दो मिनट का मौन रखने का आग्रह किया। इस पर प्रधानमंत्री समेत सत्ता पक्ष के तमाम सदस्य खड़े हो गए। विपक्षी सहयोगी दल के कुछ सांसद भी खड़े दिऐ हालांकि बाद में उनका कहना था कि वह तो सदन से बाहर जाने के लिए खड़े हुए थे।

यह भी पढ़ें: Emergency: आपातकाल के दौरान क्या कर रहे थे नरेंद्र मोदी? 49 साल बाद खुला राज

यह भी पढ़ें: Emergency Row: गिरिराज सिंह ने याद दिलाया मुलायम का किस्सा तो कांग्रेस ने भाजपा के इन फैसलों को बताया काला इतिहास