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Lok Sabha Speaker Election result: ओम बिरला के खिलाफ कांग्रेस ने प्रत्याशी खड़ा किया पर क्यों नहीं की Voting की मांग? जानें वजह

Lok sabha speaker लोकसभा स्पीकर पद के चुनाव में ओम बिरला ध्वनिमत से अध्यक्ष बन गए। लेकिन पर्याप्त संख्याबल न होने के बावजूद कांग्रेस ने प्रत्याशी खड़ा करके क्या संदेश ​देना चाहा? प्रत्याशी खड़ा करने पर टीएमसी और कांग्रेस का मतभेद भी सामने आया। स्पीकर पद के लिए मतदान क्यों नहीं हुआ और यदि मतदान हो जाता तो क्या होता? यहां जानिए सबकुछ।

By Deepak Vyas Edited By: Deepak Vyas Updated: Thu, 27 Jun 2024 02:18 PM (IST)
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Lok sabha speaker: लोकसभा स्पीकर पद के लिए नहीं बन पाई सर्वसम्मति, ध्वनिमत से ओम बिरला बने अध्यक्ष।
दीपक व्यास, डिजिटल डेस्क। Lok Sabha Speaker Chunav Result 2024 तमाम कयासों और सर्वसम्मति के प्रयासों के बीच ध्वनिमत से ओम बिरला लोकसभा अध्यक्ष चुन लिए गए। लोकसभा में स्पीकर पद पर आम सहमति की कोशिश को लेकर एनडीए की ओर से राजनाथ सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित अन्य विपक्षी दलों के नेताओं से चर्चा की थी, लेकिन बात नहीं बनी। विपक्ष ने मांग रखी ​कि स्पीकर पद पर सर्वसम्मति के लिए हम तैयार हैं, लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष से ही होना चाहिए। एनडीए से इस सवाल का जवाब न मिलने पर कांग्रेस ने के. सुरेश को ओम बिरला के विरुद्ध चुनाव में उतार दिया। लेकिन, सवाल यह उठता है कि स्पीकर पद के लिए जब कांग्रेस ने उम्मीदवार उतार दिया तो फिर मत विभाजन की मांग क्यों नहीं की।

कांग्रेस ने क्यों नहीं कराया मत विभाजन?

ओम बिरला लगातार दूसरी बार लोकसभा के स्पीकर बन गए। 18वीं लोकसभा में इस पद के लिए सर्वसम्मति नहीं बन पाई। बिना वोटिंग के ही ध्वनिमत से ओम बिरला का चयन हो गया। आखिरकार कांग्रेस ने मत विभाजन क्यों नहीं कराया। सवाल यह भी कि जब मत विभाजन यानी वोटिंग नहीं कराना था तो फिर प्रत्याशी ही क्यों खड़ा किया। वैसे इससे पहले तीन बार लोकसभा स्पीकर पद के लिए वोटिंग हो चुकी है। सबसे पहले 1952, फिर 1967 और इसके बाद 1976 में ऐसा हो चुका है।

प्रत्याशी उतारना क्या विपक्ष की डिप्लोमेसी का था हिस्सा?

लोकसभा सपीकर पद के चुनाव में प्रत्याशी को खड़ा करना क्या विपक्ष की डिप्लोमेसी का हिस्सा था? प्रत्याशी खड़ा करके आखिर विपक्ष ने एनडीए सरकार को क्या संदेश देने की कोशिश की है? इस बारे में आईएनडीआईए के सहयोगी दल जनता दल युनाइटेड के नेता और मंत्री ललन सिंह ने जब लोकसभा अध्यक्ष पद के चुनाव में मतदान की बात का जिक्र किया, तो संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कह दिया कि विपक्ष की ओर से मत विभाजन को लेकर कोई मांग ही नहीं रखी गई।

कांग्रेस ने वोटिंग न कराने पर क्या रखा पक्ष?

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर इस बात का खुलासा किया कि उन्होंने प्रत्याशी उतारने के बाद भी मत विभाजन की मांग क्यों नहीं की। रमेश ने कहा कि पार्टी ने अपने डेमोक्रेटिक राइट का उपयोग करते हुए के. सुरेश के रूप में प्रत्याशी उतारा। कांग्रेस चाहती तो वोटिंग की मांग कर सकती थी, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। रमेश ने कहा कि मत विभाजन की मांग इसलिए नहीं की गई कि आम सहमति का माहौल बने। यह हमारी ओर से रचनात्मक कदम था। रमेश ने स्पष्ट किया कि आईएनडीआईए की पार्टियां सर्वसम्मति और सहयोग की उस भावना को मजबूत करना चा​हती थी, जो पीएम और एनडीए के कामों में परिलक्षित नहीं होती है।

यही बात कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने भी दोहराई। उन्होंने स्पष्ट किया कि हमने प्रत्याशी उतारा, लेकिन हमारा विरोधर सांकेतिक था, डेमोक्रेटिक था, क्योंकि जैसी की परंपरा है कि डिप्टी स्पीकर विपक्ष की ओर से होता है, इस पर एनडीए तैयार नहीं हो रही थी। हमने प्रत्याशी खड़ा करके साफ कर दिया कि संविधान नहीं बदलने देंगे। परंपरा के खिलाफ एनडीए को नहीं जाने देंगे।

टीएमसी और कांग्रेस की अलग अलग राय से क्या गया संदेश?

जहां कांग्रेस ने ओम बिरला के विरुद्ध कोडिकुन्निल सुरेश के रूप में प्रत्याशी खड़ा ​कर दिया, वहीं ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने इसका विरोध कर दिया। टीएमसी ने कहा कि हमसे पूछे या सलाह लिए बिना ही कांग्रेस ने प्रत्याशी खड़ा कर दिया। टीएमसी ने कांग्रेस पर ही निशाना साध दिया और कहा कि जब टीएमसी आईएनडीआईए का हिस्सा है तो हमें प्रत्याशी उतारने से पहले विश्वास में लेना चाहिए था। दरअसल, टीएमसी ने चुनाव से ऐन वक्त पहले तक अपने पत्ते नहीं खोले थे। इसलिए असमंजस की स्थिति बनी रही कि स्पीकर पद पर टीएमसी का रुख क्या रहेगा।

कांग्रेस और टीएमसी के बयानों में कैसे दिखा विरोधाभास?

लोकसभा स्पीकर के रूप में ध्वनिमत से ओम बिरला के चयन पर कांग्रेस और टीएमसी के बयानों में विरोधाभास दिखाई दिया। जहां कांग्रेस नेताओं ने कहा कि हमने मत विभाजन की मांग नहीं की। वहीं टीएमसी ने तो इस चुनाव को ही 'अनैतिक' बता डाला। टीएमसी ने प्रोटेम स्पीकर भृर्तहरि महताब पर सवाल उठा दिया कि उन्होंने मत विभाजन की अनुमति नहीं दी। टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी और कल्याण मुखर्जी ने मीडिया से कहा कि कई सदस्यों ने मत विभाजन की मांग की थी, लेकिन प्रोटेम स्पीकर ने यह अनुमति इसलिए नहीं दी, क्योंकि एनडीए के पास यह चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त संख्याबल का अभाव था।

मत विभाजन के सवाल पर क्या बोले एनडीए के मंत्री?

लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए मत विभाजन न हो पाने को लेकर संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया कि जब भी मत विभाजन होता है उसके पहले एक प्रस्ताव लाया जाता है। प्रस्ताव लाने वाले मेंबर को अधिकृत यानी आफिशियली वोटिंग के लिए बताना होता है। रिजिजू ने कहा कि 'हम तो वोटिंग के लिए तैयार थे, लेकिन विपक्ष की ओर से औपचारिक रूप से ऐसी कोई मांग ही नहीं की गई। रिजिजू ने कहा कि विपक्ष के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं था, इसलिए वोटिंग की मांग नहीं रखी।

यदि मत विभाजन हो जाता तो क्या होता?

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ये जरूर कहा कि 'लोकसभा स्पीकर पद के लिए प्रत्याशी खड़ा करके हम एनडीए को एक संदेश देना चाहते थे।' लेकिन सवाल यह भी है कि ​यदि मत विभाजन हो जाता, तो एनडीए के पास 293 यानी पर्याप्त संख्याबल था। वहीं आईएनडीआईए के 234 का संख्याबल है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यदि मत विभाजन हो जाता तो एनडीए को 300 से भी ज्यादा वोट मिल सकते थे। ऐसे में कांग्रेस और पूरे इंडी गठबंधन के लिए ये पूरे पांच साल के लिए शर्मनाक बात होती।

जब ओम बिरला के साथ पीएम मोदी और राहुल ने भी मिलाया हाथ

इससे पहले लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ध्वनिमत से चुनाव जीतने पर ओम बिरला को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी बधाई देते हुए आसन तक ले गए। इस दौरान नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने भी आपस में हाथ मिलाकर अभिवादन किया। हालांकि इन सबके बीच आपातकाल पर जब संसद में चर्चा चली तो माहौल बदल गया। खुद ओम बिरला ने आपातकाल पर प्रस्ताव पढ़ा तो विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया। बिरला ने प्रस्ताव पढ़ते हुए आपातकाल को एक काला धब्बा करार दिया।