Lok Sabha Speaker Election: लोकसभा अध्यक्ष चुनाव भी तय करेगा आगे की राजनीति, आज सुबह 11 बजे होगी वोटिंग
बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष का ही चुनाव होना है। यह देखना रोचक होगा कि किसके पाले में कितने वोट आते हैं। क्या राजग के उम्मीदवार ओम बिरला राजग के औपचारिक नंबर से ज्यादा वोट ले पाएंगे। विपक्षी खेमे के उम्मीदवार के सुरेश के नाम पर सहमति न बनाए जाने से नाराज टीएमसी को अगर न मनाया जा सका तो सत्तापक्ष और विपक्ष का अंतर थोड़ा और बड़ा दिख सकता है।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। लोकतंत्र में तो सबकुछ बहुमत से ही तय होता है फिर लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को लेकर चुनाव हो रहा है तो ऐसा कुछ नहीं जिससे असहज हुआ जाए। खासकर आज के समय में तो इसे बहुत ही सरलता से लिया जाना चाहिए क्योंकि चुनाव नतीजों के बाद सत्तापक्ष ही नहीं विपक्ष भी इसे अपनी जीत ही मान रहा है।
इतना ही नहीं विपक्ष के बड़े नेताओं की ओर से यह दावा भी किया जा रहा है कि राजग के कई सदस्य व दल उनके संपर्क में हैं। ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव मे ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस खेमे के लोग किधर हैं।
टीएमसी में क्यों है नाराजगी?
यह देखना बहुत रोचक होगा कि किसके पाले में कितने वोट आते हैं। क्या राजग के उम्मीदवार ओम बिरला राजग के औपचारिक नंबर से ज्यादा वोट ले पाएंगे। विपक्षी खेमे के उम्मीदवार के सुरेश के नाम पर सहमति न बनाए जाने से नाराज तृणमूल कांग्रेस को अगर न मनाया जा सका तो सत्तापक्ष और विपक्ष का अंतर थोड़ा और बड़ा दिख सकता है।
वैसे कांग्रेस नेतृत्व इस कोशिश में जुट गया है कि विपक्ष इस पहली अग्निपरीक्षा में तो एकजुट दिखे। यूं तो पहली लोकसभा में ही और उसके बाद भी एक दो बार ऐसी स्थिति बनी थी कि लोकसभा उम्मीदवार पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई थी। बाद के दिनों में सर्वसम्मति बनी तो इसका आधार यह भी था कि उपाध्यक्ष का पद विपक्ष के खाते में दिया जाए। लेकिन यह संवैधानिक बाध्यता नहीं है।
उपाध्यक्ष पद को लेकर क्या है स्थिति?
बताया तो यह जा रहा है कि विपक्ष की ओर से सर्वसम्मति के लिए यह शर्त रखी गई थी कि उपाध्यक्ष का पद विपक्ष के खाते में दिया जाए। आज के दिन सत्तापक्ष और विपक्ष के जो तेवर हैं उसमें इस तरह की कोई शर्त मानना संभव ही नहीं था क्योंकि विपक्ष की ओर से इसे फिर से एक जीत के रूप में प्रदर्शित किया जाता।
राजग के अंदर भी यह संदेश जाने का खतरा है कि भाजपा नैतिक रूप से कमजोर महसूस कर रही है। जहां तर परंपरा की बात है तो खासतौर से पिछले एक दशक में कई परंपराएं टूटी हैं। कुछ सत्तापक्ष की ओर से तो कई सारे विपक्ष की ओर से। जहां तक याद है तो नए सदस्यों के शपथ ग्रहण के वक्त आज तक ऐसा नहीं हुआ था कि शपथ लेने के दौरान सदस्यों पर टिप्पणी की जाए और नारेबाजी हो।भारत के संसद में शपथ ग्रहण के दौरान फलस्तीन जिंदाबाद के नारे लगाए जाएं। वैसे पिछले कुछ वर्षों में ही यह भी हुआ कि विपक्षी दल राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करें। नए संसद भवन परिसर के उदघाटन समारोह का भी बहिष्कार किया गया था।
सत्तापक्ष की ओर से तो पिछली लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव ही नहीं हुआ था। वैसे उपाध्यक्ष पद की बात की जाए तो ऐसे कई राज्य है, जहां विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों सत्तापक्ष के खाते मे ही है। बड़ी संख्या में इसमें कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन शासित राज्य भी हैं और भाजपा व राजग शासित भी। उपाध्यक्ष चुनाव तो खैर अभी एजेंडा में नहीं है।