Maharashtra में सत्ता का द्वार बनेगा 'विदर्भ', फडणवीस और नाना पटोले भी इसी क्षेत्र से लड़ेंगे चुनाव; पढ़ें क्या है कारण
Maharashtra Election 2024 दो विपरीत विचारधाराओं वाले क्षेत्र विदर्भ में अभी तक तो समान लड़ाई देखने को मिल रही है। 62 में से 35 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में आमने-सामने की टक्कर हो रही है। जबकि छह सीटों पर शिवसेना एवं शिवसेना (यूबीटी) तथा सात सीटों पर राकांपा और राकांपा (शरदचंद्र पवार) के बीच सीधा मुकाबला हो रहा है।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र के दोनों राजनीतिक गठबंधनों के प्रमुख नेताओं ने मंगलवार को अपने चुनाव अभियान की शुरुआत भले पश्चिम महाराष्ट्र के कोल्हापुर से की हो, लेकिन महाराष्ट्र की सत्ता का द्वार तो 62 सीटों वाला विदर्भ ही खोलेगा।
दो विपरीत विचारधाराओं वाले इस क्षेत्र में अभी तक तो समान लड़ाई देखने को मिल रही है। 62 में से 35 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में आमने-सामने की टक्कर हो रही है। जबकि छह सीटों पर शिवसेना एवं शिवसेना (यूबीटी) तथा सात सीटों पर राकांपा और राकांपा (शरदचंद्र पवार) के बीच सीधा मुकाबला हो रहा है।
फडणवीस और नाना पटोले भी मैदान में
उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले सहित कई राजनीतिक दिग्गजों की किस्मत का फैसला इस क्षेत्र से होना है। इन्हीं नेताओं में से कोई मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी हो सकता है। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक विवेक भावसार कहते हैं कि विदर्भ का प्रदर्शन ही यह तय करेगा कि अगली सरकार कौन बनाता है। यह युद्ध का ऐसा मैदान है जो फैसले को निर्णायक बना सकता है।जमीनी स्तर पर राजनीतिक स्थिति में बदलाव
लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक जमीनी स्तर पर राजनीतिक स्थिति में बदलाव भी देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव भाजपा और महायुति के लिए झटका साबित हुए थे। जबकि विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और उसके साथी दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर उभरी कड़वाहट से स्थितियां बदली दिख रही हैं।
कांग्रेस का जनाधार मजबूत
विदर्भ की ही कई सीटें कांग्रेस अपने साथी दलों शिवसेना (यूबीटी) और राकांपा (शरदचंद्र पवार) को देने से कतरा रही थी। क्योंकि इस क्षेत्र में कांग्रेस का ही जनाधार मजबूत माना जाता है। इसके बावजूद एक दर्जन से अधिक सीटें उसे इन दलों को देनी पड़ी हैं। भाजपा के नागपुर जिला कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल भी मानते हैं कि इनमें से कई सीटें यदि कांग्रेस ने अपने पास रखी होतीं, तो भाजपा को ज्यादा मुश्किल हो सकती थी।