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Maharashtra में सत्ता का द्वार बनेगा 'विदर्भ', फडणवीस और नाना पटोले भी इसी क्षेत्र से लड़ेंगे चुनाव; पढ़ें क्या है कारण

Maharashtra Election 2024 दो विपरीत विचारधाराओं वाले क्षेत्र विदर्भ में अभी तक तो समान लड़ाई देखने को मिल रही है। 62 में से 35 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में आमने-सामने की टक्कर हो रही है। जबकि छह सीटों पर शिवसेना एवं शिवसेना (यूबीटी) तथा सात सीटों पर राकांपा और राकांपा (शरदचंद्र पवार) के बीच सीधा मुकाबला हो रहा है।

By Jagran News Edited By: Mahen Khanna Updated: Wed, 06 Nov 2024 05:06 PM (IST)
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Maharashtra Election 2024 विदर्भ में होगी कांटे की टक्कर।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र के दोनों राजनीतिक गठबंधनों के प्रमुख नेताओं ने मंगलवार को अपने चुनाव अभियान की शुरुआत भले पश्चिम महाराष्ट्र के कोल्हापुर से की हो, लेकिन महाराष्ट्र की सत्ता का द्वार तो 62 सीटों वाला विदर्भ ही खोलेगा।

दो विपरीत विचारधाराओं वाले इस क्षेत्र में अभी तक तो समान लड़ाई देखने को मिल रही है। 62 में से 35 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में आमने-सामने की टक्कर हो रही है। जबकि छह सीटों पर शिवसेना एवं शिवसेना (यूबीटी) तथा सात सीटों पर राकांपा और राकांपा (शरदचंद्र पवार) के बीच सीधा मुकाबला हो रहा है।

फडणवीस और नाना पटोले भी मैदान में

उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले सहित कई राजनीतिक दिग्गजों की किस्मत का फैसला इस क्षेत्र से होना है। इन्हीं नेताओं में से कोई मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी हो सकता है। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक विवेक भावसार कहते हैं कि विदर्भ का प्रदर्शन ही यह तय करेगा कि अगली सरकार कौन बनाता है। यह युद्ध का ऐसा मैदान है जो फैसले को निर्णायक बना सकता है।

जमीनी स्तर पर राजनीतिक स्थिति में बदलाव 

लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक जमीनी स्तर पर राजनीतिक स्थिति में बदलाव भी देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव भाजपा और महायुति के लिए झटका साबित हुए थे। जबकि विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और उसके साथी दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर उभरी कड़वाहट से स्थितियां बदली दिख रही हैं।

कांग्रेस का जनाधार मजबूत 

विदर्भ की ही कई सीटें कांग्रेस अपने साथी दलों शिवसेना (यूबीटी) और राकांपा (शरदचंद्र पवार) को देने से कतरा रही थी। क्योंकि इस क्षेत्र में कांग्रेस का ही जनाधार मजबूत माना जाता है। इसके बावजूद एक दर्जन से अधिक सीटें उसे इन दलों को देनी पड़ी हैं। भाजपा के नागपुर जिला कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल भी मानते हैं कि इनमें से कई सीटें यदि कांग्रेस ने अपने पास रखी होतीं, तो भाजपा को ज्यादा मुश्किल हो सकती थी।

कुनबी और तेली समुदाय का दबदबा

विदर्भ में दो प्रमुख समुदाय कुनबी और तेली हैं, जो मुख्य रूप से क्रमशः कांग्रेस और भाजपा के साथ हैं। विदर्भ के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि कांग्रेस डीएमके (दलित-मुस्लिम-कुनबी) के अपने परंपरागत फार्मूले पर भरोसा कर रही है। जबकि भाजपा ने ओबीसी, माइक्रो ओबीसी और बंजारा समुदाय को एकजुट किया है।

नागपुर में रहने वाले राज्य भाजपा प्रवक्ता अजय पाठक कहते हैं कि पिछले तीन महीनों में हमने जमीनी स्तर पर बहुत सारे बदलाव देखे हैं। जो ओबीसी हमसे दूर हो गए थे, वे अब हमें समर्थन दे रहे हैं। उनके अनुसार इस बार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले को पुनः विधानसभा का टिकट दिए जाने का असर भी विदर्भ में अच्छी आबादी वाले तेली समाज पर दिखाई दे रहा है। इसका हमें फायदा मिलेगा।

2014 में भाजपा में मिला था बंपर समर्थन

विदर्भ इस लिए भी राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि 2014 में इस क्षेत्र की 62 में से 41 सीटें जीतकर भाजपा अकेले 122 सीटों के अब तक के उच्चांक तक पहुंच सकी थी। जिसके कारण उसे पहली बार राज्य में अपना मुख्यमंत्री बनाने का मौका मिला, वह भी नागपुर के ही देवेंद्र फडणवीस को। लेकिन 2019 में जब विदर्भ में भाजपा की सीटें घटकर 29 हो गईं, तो भाजपा सत्ता से दूर हो गई।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय नागपुर में है, और यह वर्ष संघ का शताब्दी वर्ष भी है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिले झटके ने संघ को भी सचेत कर दिया है। इस चुनाव में संघ न सिर्फ स्वयं सक्रिय है, बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरक की भूमिका भी निभा रहा है।

इसका असर दिखाई दे रहा है। चंद्रशेखर बावनकुले के चुनाव क्षेत्र कामठी में भाजपा के पूर्व पार्षद प्रमोद यादव कहते हैं कि संघ इस बार प्रत्येक बूथ के एक-एक मतदाता का हिसाब रख रहा है, और इन मतदाताओं को बूथ तक लाने की रणनीति भी तैयार कर रहा है। ये सांगठनिक ढांचा भाजपा के लिए मददगार साबित हो सकता है।