Move to Jagran APP

महाराष्ट्र में आ गया दूसरा चुनाव, नही हो पाया शिवसेना व NCP गुटों की सदस्यता पर फैसला

महाराष्ट्र में जून 2022 को भूचाल आया था जब एकनाथ शिंदे ने अलग गुट बनाया और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। इसके बाद अजीत पवार गुट भी राकांपा के शरद पवार गुट से अलग हो गया और उसने शिंदे की सरकार को समर्थन दे दिया था। शिवसेना उद्धव गुट और राकांपा के शरद पवार गुट ने अलग गुट बनाने वाले बागियों की अयोग्यता की मांग की है।

By Mala Dixit Edited By: Narender Sanwariya Updated: Sun, 03 Nov 2024 09:13 PM (IST)
Hero Image
अजीत पवार और शरद पवार (Photo Jagran)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाएगा कि महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो गया लेकिन शिवसेना व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) से टूट कर अलग गुट बनाने वाले विधायकों की अयोग्यता पर कोर्ट का फैसला नहीं आया। विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो चुका है।

लाभ बागी विधायकों को मिला

20 नवंबर को चुनाव हैं और नवंबर के अंत तक नई सरकार का भी गठन हो जाएगा ऐसे में सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाएं महत्वहीन हो जाएंगी। इस केस में एक बार फिर सदस्यों की अयोग्यता पर स्पीकर के निर्णय देने की टाइम लाइन तय न होने का लाभ बागी विधायकों को मिला है।

सदस्यों की अयोग्यता का मसला

यह मामला संविधान के इस ग्रे एरिया को स्पष्ट करने और स्पीकर के अयोग्यता शिकायतों का निपटारा करने की समय सीमा तय करने की जरूरत बताता है।यह दूसरा राउंड है जबकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। पहले राउंड में कोर्ट ने विस्तृत आदेश दिया था लेकिन सदस्यों की अयोग्यता का मसला पहले स्तर पर निपटाने के लिए विधानसभा स्पीकर पर छोड़ दिया था।

विधिवत सुनवाई का नंबर नहीं आया

हालांकि, स्पीकर से अयोग्यता पर जल्दी फैसला करने को कहा था। लेकिन स्पीकर ने मामला लटकाए रखा और सुप्रीम कोर्ट की डांट फटकार और बार बार आदेश के बाद 10 जनवरी 2024 को फैसला दिया जिसमें एकनाथ शिंदे गुट को ही असली शिवसेना माना। दूसरे राउंड में स्पीकर के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और सुप्रीम कोर्ट में तारीखें लगती रहीं लेकिन विधिवत सुनवाई का नंबर नहीं आया।

केस को लंबा लटकाया

अब विधानसभा का ही कार्यकाल समाप्त हो चुका है ऐसे में अगर भविष्य में इस पर सुनवाई होकर कोई फैसला आता है तो वह एकेडेमिक एक्सरसाइज ही होगी। उसमें भविष्य के लिए व्यवस्था तय होगी क्योंकि नयी सरकार बनने के बाद मौजूदा विवाद तय होने का कोई महत्व नहीं रह जाएगा। महाराष्ट्र का मामला पहला मामला नहीं है जिसमें राजनैतिक दल से संबंधित विधानसभा स्पीकर ने राजनैतिक स्थिति को देखते हुए केस को लंबा लटकाया हो।

समय सीमा निर्धारित नहीं

झारखंड स्पीकर इंदरसिंह नामधारी ने भी एक मामले को पूरे कार्यकाल तक लटकाए रखा था। दरअसल संविधान में स्पीकर के अयोग्यता याचिकाएं निपटाने के लिए समय सीमा निर्धारित नहीं है जिसके चलते विधायकों की अयोग्यता का मामला स्पीकर के सामने पहुंचता है तो वे अपनी सुविधा और राजनैतिक स्थिति के मुताबिक कार्यवाही करते हैं। इससे पूरी संवैधानिक व्यवस्था सवालों में आ जाती है।

तय समय में अयोग्यता निपटाने का निर्देश

तेलंगाना हाईकोर्ट ने गत नौ सितंबर को ही विधानसभा स्पीकर को नसीहत देते हुए चार सप्ताह में अयोग्यता याचिका निपटारे का शिढ्यूल तय करने को कहा था। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के जनवरी 2020 के मणिपुर मामले में दिये गए केशम मेघचंद्र सिंह के फैसले को आधार बनाया था जिसमें स्पीकर को तय समय में अयोग्यता निपटाने का निर्देश देने की बात है।