जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव महमूद मदनी ने कहा विवादित ढांचा मस्जिद नहीं
मदनी ने कहा जबरदस्ती किसी का घर या मंदिर छीनकर अल्लाह का घर नहीं बनाया जा सकता। अयोध्या श्रीरामचंद्र जी की जन्मभूमि है हिंदू आस्था का बड़ा प्रतीक है।
By Ravindra Pratap SingEdited By: Updated: Sun, 24 Mar 2019 12:47 AM (IST)
राज्य ब्यूरो, अहमदाबाद। देश में आम चुनावों की गहमागहमी के बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव महमूद मदनी ने विवादित बाबरी ढांचे को मस्जिद मानने से ही इन्कार कर दिया। मदनी ने कहा कि किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई जगह इबादतगाह नहीं बन सकती। मदनी ने कहा है कि भगवान श्री रामचंद्र देश के बहुसंख्यक हिंदू धर्म के लोगों की आस्था के प्रतीक हैं। मुस्लिमों को भगवान श्रीराम के अनादर की इजाजत नहीं है।
अहमदाबाद में बीबीसी गुजराती के एक कार्यक्रम में मदनी ने देश में राम मंदिर व बाबरी ढांचे को लेकर चल रहे विवाद पर बड़ी साफगाई के साथ कहा कि अगर किसी धार्मिक स्थल को तोड़कर अल्लाह की इबादतगाह बनाई गई तो उसे मस्जिद नहीं माना जा सकता। मदनी ने कहा जबरदस्ती किसी का घर या मंदिर छीनकर अल्लाह का घर नहीं बनाया जा सकता। अयोध्या श्रीरामचंद्र जी की जन्मभूमि है, हिंदू आस्था का बड़ा प्रतीक है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि किसी को सेकुलर किसी को कम्यूनल बता देना ठीक नहीं। हर पक्ष का अपना एक नजरिया होता है। हिंदुत्व के नाम पर किसी की गुंडागर्दी सहन नहीं की जा सकती। असली हिंदुओं को ही ऐसे लोगों को जवाब देना होगा।
उन्होंने कहा कि राममंदिर विवाद आपसी बातचीत से हल हो तो बेहतर होगा चूंकि इससे किसी पक्ष की हार नहीं होगी अन्यथा कोर्ट का फैसला तो स्वीकार्य होगा ही। मदनी ने कहा कि देश के बहुसंख्यक हिंदुओं के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम आस्था के प्रतीक हैं इसलिए मुसलमान को भगवान श्री राम के अनादर की इजाजत नहीं है। मदनी ने कहा इंडोनेशिया के बाद दुनिया में सबसे अधिक मुसलमान भारत में रहते हैं, धर्म का राजनीतिक उपयोग नहीं होना चाहिए लेकिन जिंदगी के लिए जरुरी है, दैनिक जीवन में धर्म अध्यात्म सिखाता है।
मदनी ने यह भी कि किसी ऑपरेशन के तहत किसी वर्ग को टारगेट करके किसी मसले का हल नहीं निकाला जा सकता है। मंदिर मस्जिद विवाद को मिल बैठकर आपसी बातचीत से हल किया जाए आखिर हम एक सभ्य समाज के लोग हैं। मदनी को इस बात का भी मलाल है कि अदालती फैसले में एक पक्ष की हार होगी व दूसरे की जीत इसलिए आपसी बातचीत से मसले का हल हो तो अधिक बेहतर होगा।
अर्थशास्त्री इंदिरा हरवे का मानना है कि राममंदिर व गोरक्षा के बजाए सरकार को युवाओं की रोजगारी, किसान व मजदूरों के आर्थिक उत्थान पर विचार करना चाहिए। देश में युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है उसकी तुलना में रोजगारी घट रही है। देश के लोगों को पहले रोटी, रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य की जरूरत है लेकिन सरकार जनता को गुमराह करने के लिए दूसरे मुद्दों को हवा दे रही है। वहीं पद्मश्री पत्रकार विष्णु पंड्या ने कहा कि मंदिर भी जरूरी है और मस्जिद भी। उन्होंने स्वामी विवेकानंद की शिष्या निवेदिता की कही बात का उल्लेख करते हुए कहा कि अतीत की पगडंडी पर ही भविष्य की नींव रखी जा सकती है।