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खरगे ने अपनी ही सरकार पर उठाई उंगली, तो कठघरे में घिरी कांग्रेस; क्या चुनाव में बंद होंगे मुफ्त के वादे

खरगे ने कहा कि मैंने सुना है कि फ्री बस सेवा समाप्त किया जा रहा है। इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और वित्त मंत्री डी शिवकुमार ने तत्काल दुरुस्त किया और कहा कि समाप्त नहीं समीक्षा करने की बात कही गई है। इस बात पर राजनीति फिर से गरम हो गई। कांग्रेस कठघरे में घिर गई। भाजपा लगातार कांग्रेस पर हमलावर है।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Wed, 06 Nov 2024 01:00 AM (IST)
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खरगे ने अपनी ही सरकार पर उठाई उंगली, तो कठघरे में घिरी कांग्रेस
 आशुतोष झा, नई दिल्ली। मुफ्त की रेवड़ी के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर के बारे में जो बात लगातार भाजपा की ओर से कही जा रही थी, कुछ दिन पहले वह बात कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कही और राजनीति फिर से गरम हो गई। कांग्रेस कठघरे में घिर गई। पर राजनीति और खासतौर से कर्नाटक में बहस इस पर तेज है कि आखिर खरगे ने सार्वजनिक तौर पर ऐसी बात कही क्यों। महिलाओं के लिए फ्री सेवा खत्म करने या समीक्षा करने की बात जो सिर्फ कर्नाटक में रह जाती उसकी गूंज पूरे देश में फैलाना क्या कोई चूक थी या इसके पीछे कोई सोच थी।

केंद्रीय नेतृत्व के अंदर छटपटाहट

खरगे सिर्फ कर्नाटक के कांग्रेस नेताओं को संदेश देना चाहते थे या फिर राष्ट्रीय स्तर पर। माना जा रहा है कि अनुभवी खरगे ने एक साथ सबको संदेश दिया है और खुद को एक स्तर पर अलग भी खड़ा किया है। परोक्ष रूप से उन्होंने यह संदेश दे दिया है कि पार्टी के अंदर कई बातों से वह खुद सहमत नहीं हैं। पहले छत्तीसगढ़ व राजस्थान और फिर हरियाणा की हार के बाद कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के अंदर इस बात की छटपटाहट दिखी है कि पार्टी के ही बड़े नेता संगठन से खुद को बड़ा समझते रहे हैं।

राष्ट्रीय नेतृत्व उनपर लगाम लगाने में असमर्थ रहा है। जिस तरह उन्होंने बजट को ध्यान में रखते हुए ही चुनावी घोषणाओं की बात कही, उससे यह भी संदेश जाता है कि लोकसभा चुनाव के दौरान किए गए बड़े और खर्चीले वादों को लेकर भी वह पूरी तरह सहमत नहीं थे। पर रोचक तथ्य यह है कि यह बोलने के लिए उन्होंने बंद दरवाजे के अंदर की मीटिंग नहीं बल्कि ऐसा मंच ढूंढा जहां पूरे प्रदेश की मीडिया मौजूद थी।

कर्नाटक कांग्रेस को लेकर खरगे ने कही थी ये बात

उन्होंने कहा- ''मैंने सुना है कि फ्री बस सेवा समाप्त किया जा रहा है।'' उन्हें मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और वित्त मंत्री डी शिवकुमार ने तत्काल दुरुस्त किया और कहा कि समाप्त नहीं समीक्षा करने की बात कही गई है। सच्चाई क्या है यह तो खुद खरगे ही बता सकते हैं लेकिन इस घटना के पहले की कुछ घटनाएं बताती हैं कि कर्नाटक कांग्रेस और सरकार के अंदर बहुत कुछ उथलपुथल चल रहा है और खरगे इससे नाखुश हैं।

खरगे ने 31 अक्टूबर को उक्त वक्तव्य दिया था। उससे पहले 25 अक्टूबर को शिवकुमार के भाई डीके सुरेश ने उपचुनाव मे जा रहे चन्नपट्टना सीट से सीपी योगेश्वर की उम्मीदवारी पर असंतोष जताया था। दरअसल लोकसभा चुनाव मे सुरेश की हार के लिए योगेश्वर की भूमिका पर उंगली उठाई जाती है।

योगेश्वर की जीत सिद्धरमैया को मजबूत करेगी

प्रदेश में मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवकुमार की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है और यह भी सच है कि योगेश्वर की जीत सिद्धरमैया को मजबूत करेगी। कुछ दिन पहले ही जमीन आवंटन को लेकर सिद्धरमैया घेरे में थे और उसी बीच खरगे के परिवार के ट्रस्ट को लेकर जमीन आवंटन का मामला भी तूल पकड़ गया था।

प्रदेश में भाजपा इस मुद्दे को लेकर आक्रामक है। दूसरी तरफ एक महीने पहले तक राजग के लिए कमजोर माने जा रहे महाराष्ट्र में लड़ाई अब बराबरी पर है और कुछ मायनों मे विपक्षी घटक अघाड़ी के अंदर ही प्रतिस्पर्धा इतनी तेज है कि आत्मघाती भी हो सकती है।

यूपी में कांग्रेस को राज्य के उपचुनाव में एक भी सीट लड़ने को नहीं मिली

हरियाणा की हार के बाद सहयोगी दलों ने कांग्रेस पर इस कदर दबाव बढ़ा दिया है कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के उपचुनाव में एक भी सीट लड़ने को नहीं मिली। जाहिर तौर पर बतौर अध्यक्ष खरगे सार्वजनिक मंच से ही प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के नेताओं को संदेश भी देना चाहते थे और खुद के लिए स्पेस भी बनाना चाहते थे। वह उन्होंने कर दिया। यह देखना रोचक होगा कि बजट को ध्यान में रखते हुए चुनावी घोषणाओं की उनकी सलाह पर कांग्रेस कितना अमल करती है।