भाजपा के विकास में करिश्मा और संगठन का समन्वय – भूपेन्द्र यादव
दैनिक जागरण का अपनी भाषा हिंदी को समृद्ध करने के उपक्रम है हिंदी हैं हम। इसके अंतर्गत जागरण वार्तालाप में केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव और अर्थशास्त्री इला पटनायक से उनकी नई पुस्तक द राइज आफ द बीजेपी पर चर्चा हुई।
By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Updated: Fri, 21 Jan 2022 05:55 PM (IST)
दैनिक जागरण का अपनी भाषा हिंदी को समृद्ध करने के उपक्रम है हिंदी हैं हम। इसके अंतर्गत जागरण वार्तालाप में केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव और अर्थशास्त्री इला पटनायक से उनकी नई पुस्तक द राइज आफ द बीजेपी पर चर्चा हुई। उल्लेखनीय है कि जागरण वार्तालाप में अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषा की पुस्तकों के लेखकों से हिंदी में बातचीत की जाती है।
प्रश्न- आप मंत्री बनने के पहले 25 संसदीय समितियों में थे, संगठन के काम से लगातार प्रवास पर रहते थे, फिर आपको पुस्तक लिखने का समय कब मिलाभूपेन्द्र यादव- 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद इला जी से चर्चा हुई कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत को केंद्र में रखकर लिखा जाना चाहिए। राजनीति पर मैं लिख सकता हूं अर्थशास्त्र पर आप लिखें। उन्होंने मेरे प्रस्ताव को स्वीकार किया। फिर एक ड्राफ्ट बना। उसको देखकर लगा कि पुस्तक 2019 के चुनाव पर नहीं बल्कि भाजपा और जनसंघ की पूरी यात्रा पर होना चाहिए, ताकि लोगों की समझ में आए कि जो पार्टी पिछले सात साल से लगातार केंद्र में शासन कर रही है वो किन परिस्थितियों से, राजनीतिक विचारों से, आंदोलनों से, कारणों से, कार्यक्रमों से निकली है। कोरोना महामारी के दौरान खूब समय मिला तो उसका उपयोग लिखने में किया।
प्रश्न- इला जी, आपका बैकग्राउंड साम्यवादी है, जेएनयू में रहीं, भूपेन्द्र जी की पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयसंवक संघ की है। आप कैसे इस विचारधारा की ओर आकृष्ट हुईंइला- 1988 में जेएनयू में थी तो उस वक्त एआईएसएफ में थी, उसके बाद मैं लेफ्ट से जुड़ी हुई नहीं थी। उसके अधिक महत्वपूर्ण बात है कि हमारे परिवार में अलग अलग पॉलिटिकल व्यूज के लोग हैं । अपने माता पिता से मैंने यही सीखा कि जिसको जानना समझना है उसके नजदीक जाइए। आपको अगर किसी चीज के बारे में लिखना है तो उसको गहराई में समझना होगा। जो मैंने जेएनयू में सीखा या जो फैमिली से सीखा ये उसका ही परिणाम है।
प्रश्न– क्या आप दोनों के बीच ऐसी चर्चा हुई कि भाजपा अर्थिक रूप में भारत को कैसे आगे ले जाएगा। एक अर्थशास्त्री होने के बाद भी आपकी रुचि एक राजनीतिक दल में कैसे हुई।इला- जो भी इकोनामिक पालिसी के फैसले होते हैं वो राजनीतिक होते हैं। जिसको आप पॉलिटिकल इकोनामी कहते हैं। कोई भी दल जब पावर में आती है तो वो अपनी विचारधारा के आधार पर नीतियां लाती है। 2014 के मोदी जी के आने के बाद सरकार में बहुत एनर्जी आई। ऐसी नीतियां आने लगी जिससे लोगों का जीवन स्तर सुधरे। ये जनसंघ से लेकर भाजपा तक के सभी दस्तावेजों में भी दिखता है। 2014 के मई में जब नई सरकार आई तो दो महीने के अंदर जनधन अकाउंट खोलने का अभियान शुरु हुआ। इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश पर बहुत फोकस किया गया। जब आप इंकम बढ़ाएंगे तभी आप बांट पाएंगे। इस वजह से मेरी रुचि बनी कि सरकार क्या नीति ला रही है जिसके माध्यम से लक्ष्य हासिल कर पा रही है।
प्रश्न- उत्तर प्रदेश चुनाव की वजह से राम मंदिर का प्रश्न प्रासंगिक है। ये माना जाता रहा है कि दो सिपाहियों की वजह से चंद्रशेखर की सरकार गिरी थी लेकिन आपने राम मंदिर विवाद को इसकी वजह माना है।भूपेन्द्र यादव - इस समय के राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, चंद्रशेखर जी के बहुत करीब थे। उन्होंने चंद्रशेखर जी की जीवनी में लिखा है कि जैसे ही कांग्रेस को लगा कि चंद्रशेखर जी रामजन्म भूमि विषय को सुलझाने के करीब जाने लगे हैं तो कांग्रेस ने उनकी सरकार गिरा दी। कांग्रेस चाहती रही है कि कोई भी राजनीतिक दल उसका विकल्प नहीं बन पाए। उन समस्याओं का समाधान न करवा पाए जो कांग्रेस नहीं चाहती थी। कांग्रेस ने पूरे देश को बंद दरवाजे में रखने की कोशिश की और समाधान के विषयों पर हमेशा लोगो को धोखा देने का काम किया।
प्रश्न- आप अपनी इस पुस्तक में विवादित प्रश्नों से बचकर निकलते रहे हैं। आडवाणी जी अटल जी से लेकर नरेन्द्र मोदी को 2013 में पार्टी का चेहरा बनाने तक पर आपने कम लिखा। क्या नेता मन लेखक मन पर हावी हो गया।भूपेन्द्र यादव- नहीं ऐसा नहीं है। जिस भी विषय पर पार्टी में विमर्श हुआ सबको हमने अपनी पुस्तक में लिया है। चाहे आरएसएस- जनसंघ का विमर्श हो, कम्युनिस्टों के साथ सरकार बनाने का मसला हो, मधोक जी का निष्कासन हो, जनता पार्टी के साथ रहना चाहिए या विचारधारा के आधार पर अपनी पार्टी बनानी चाहिए ,सब लिखा। बंगारू जी वाले प्रकरण पर भी लिखा, आडवाणी जी के जिन्ना की मजार जाने और उसके बाद के विवाद पर भी लिखा। सभी विमर्श पर लिखा उसको छिपाने की जरूरत नहीं। ये नेताओं के विमर्श पर किताब नहीं है भारतीय जनता पार्टी की यात्रा पर किताब है।
प्रश्न- गोवा में भाजपा के दो अधिवेशन हुए, दोनों के केंद्र में नरेन्द्र मोदी थे। एक पर गोधरा कांड के बाद की स्थितियों की छाया थी और दूसरे में 2014 के चुनाव में पार्टी का चेहरा बनाने पर मंथन।भूपेन्द्र यादव- 2002 के अधिवेशन में विमर्श हुआ था और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने इस्तीफे की पेशकश की थी। पार्टी ने इसके खिलाफ प्रस्ताव पास किया। जो प्रस्ताव पास हुआ अटल जी और आडवाणी जी उसके अंग थे। उस विमर्श के बाद जो प्रस्ताव निकला उसको मैंने अपनी इस पुस्तक में रखा है। 2013 में कशमकश थी कि 2014 के चुनाव में पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा। पूरी पार्टी में इसको लेकर मंथन था। राजनाथ जी ने अध्यक्ष के नाते निर्णय किया और मोदी जी पार्टी का चेहरा बने। उसके बाद भी पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक दिल्ली में हुई। जिसमें आडवाणी जी भी आए। पार्लियामेंट्री बोर्ड में सर्वसम्मिति से निर्णय हुआ। ये सब लिखा है। पार्टी हमेशा इस प्रकार के विमर्श से निकलते हुए जो निर्णय लेती रही है. उसको बताया है।
प्रश्न- इला जी, नोटबंदी को लेकर आपकी राय कैसे बदली, क्या पहले आपको समझने में भूल हुई थी और अब सुधार किया है।इला- मेरा डर ये था कि डीमोनेटाइजेशन से जीडीपी ग्रोथ पर बहुत असर पडेगा, क्योंकि देश की 85 प्रतिशत करंसी चार घंटे में बंद हो रही थी। लोगों के पास ट्रांजेक्ट करने के लिए पैसे नहीं होंगे। लोगों को दिक्कतें भी हुईं। लेकिन सरकार इसको लेकर बहुत फ्लैक्सिबल थी। रोज रोज नियम बदले, उस वजह से शायद कम असर पड़ा। दूसरा मुद्दा था ब्लैक मनी का। मैं मानती हूं कि टैक्स रिजीम को आसान करने से ब्लैक मनी कम होती है। तीसरी चीज है डिजीटल पेमेंट। मैं नहीं कहती कि नोटबंदी के बाद ये नहीं बढ़ा लेकिन शुरुआती दिक्कतें थीं। कोविड की वजह से ये बहुत बढ़ गया। तब किसे पता था कि कोविड आएगा और बहुत सारे बिजनेस को डिजीटल पेमेंट ही बचा लेगा। किसी भी इकोनामिक पालिसी का जिस दिन एलान होता है, उस दिन के हिसाब से प्रतिक्रिया दी जाती है। दो साल बाद जब काफी कुछ बदल चुका है तो उस समय की प्रतिक्रिया को देखना उचित नहीं होगा। उस समय का मेरा आकलन उस समय की पालिसी पर आधारित था।
प्रश्न -क्या पुस्तक लिखते समय कभी आपको लगा कि भाजपा का जो विस्तार हुआ वो व्यक्ति का करिश्मा है या फिर व्यवस्थित तरीके से काम के आधार पर ऐसा हुआ।भूपेन्द्र यादव- पार्टी का जो स्ट्रकचर बना उसमें पर्सनैलिटीज ने पार्टी की यात्रा को आगे बढाया। जब पार्टी की स्थापना हुई तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की पर्सनैलिटी ने पार्टी को आगे बढाया। उसके बाद जब जनसंघ की यात्रा आरंभ हुई तो पहले कोई बड़ा नाम नहीं मिलता था लेकिन बाद में आचार्य रघुवीर जैसे लोगों को साथ लेकर आगे बढ़ाया। आप 1980 के बाद की स्थितियों को देखें। 1984 में हम दो सीटों पर आ गए थे और 1992 में एकदम से देश के मुख्य विपक्षी पार्टी बने। 1996 में हमने केंद्र में एक तरह से नेतृत्व वाली सरकार बनाई। उसमें आडवाणी जी की यात्रा,उनकी पर्सनैलिटी और अटल जी की पर्सनैलिटी ने भी बड़ा योगदान दिया। उसके बाद पार्टी ने अपने आपको एक इंस्टीट्यूशन के रूप में भी डेवलप किया। 2004 की हार के बाद पार्टी को झटका लगा था। अटल जी जैसे नेता स्वास्थ्य कारणों से निष्क्रिय हो गए थे। तब पार्टी ने अपना एक सांस्थानिक स्वरूप विकसित किया। ये हमने अपनी इस पुस्तक में लिखा है। 2014 और 2019 और उसके बाद के कालखंड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने पार्लियामेंट्री बोर्ड की हर बैठक में शामिल होने के लिए पार्टी कार्यालय आए। ये इस बात को दर्शाता है कि प्रधानमंत्री एक बड़ा राजनैतिक कद होते हुए भी पार्टी के इंस्टीट्यूशन को कितना महत्व देते थे। बीजेपी के ग्रोथ में निश्चित रूप से व्यक्तित्व का योगदान है लेकिन पर्सनैलिटी ने पार्टी को बनाया।
प्रश्न- भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसंवक संघ के संबंध कैसे लगे आपकोइला- ये सवाल बार बार मैंने भूपेन्द्र जी से भी पूछा। किताब लिखने के दौरान कई ऐसे मसले आए जहां मैंने ये समझने की कोशिश की कि भारतीय जनता पार्टी की लाइन क्या है और आरएसएस की क्या पोजीशन है। लोग कहते हैं कि भाजपा और आरएसएस की एक ही पोजीशन होती है। हमने किताब में कई उदाहरण दिए हैं कई ऐसी स्थितियां बताई हैं जब दोनों के विचार अलग-अलग हैं। खासकर के आर्थिक मसलों पर। जब भाजपा सरकार में थी, उस समय सरकार कुछ करती थी तो स्वदेशी जागरण मंच विरोध करता था। वो हमने इसको समझने की कोशिश की और उसको किताब में लिखा।प्रश्न- एक नैरेटिव चलता है और कई क्षेत्रीय दल भी इस नैरेटिव आगे बढ़ाते हैं कि भाजपा का विस्तार तुष्टीकरण और हिंदू वोट की एकजुटता से हुआ है। इसका लाभ भाजपा को मिलता है, इस किताब में आपलोगों ने इसको किस तरह से देखा है।इला- किसी भी अर्थशास्त्री का किसी पालिसी को देखने का अपना तरीका होता है। वो ये देखते हैं कि किसी नीति से एक कम्युनिटी का क्या फायदा और दूसरे को क्या नुकसान है। हमने कई स्कीम को देखने की कोशिश की। उज्जवला, स्वच्छ भारत, एलपीजी, प्रधानमंत्री आवास योजना, जनधन अकाउंट, मनरेगा आदि। फिर उसको आंकड़ों के आधार पर परपखने की कोशिश की लेकिन कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखा। मेरे हिसाब से अगर कोई पार्टी किसी एक का फायदा या नुकसान करने की कोशिश करती है तो वो नीतियों से निकल कर आएगा। मुझे कुछ ऐसा नहीं मिला।प्रश्न- 1991 में आर्थिक सुधार के लिए अपनी किताब में आपने मनमोहन सिंह का शायद नाम भी नहीं लिया है। पूरा श्रेय नरसिंह राव को दिया है। क्या मनमोहन सिंह का कोई योगदान नहीं था।भूपेन्द्र यादव- उस समय नेतृत्व नरसिंह राव जी का था तो जो परिवर्तन हुआ वो उनकी वजह से हुआ। जब मनमोहन सिंह का नेतृत्व आया तो पालिसी पैरालिसिस हुई। जिनका नेतृत्व था उसको लिखा, मनमोहन सिंह के नेतृत्व में जो पालिसी पैरालिसस हुई उसको भी लिखा है । दूसरी बात जो ध्यान रखनी चाहिए कि मुझको तो भाजपा का इतिहास लिखना था।प्रश्न- इला जी आपने दबाव नहीं बनाया कि मनमोहन सिंह को थोड़ा श्रेय देना चाहिएइला- आज भी जब आज की सरकार की नीतियों की चर्चा होती है तो कितनी बार मंत्री का नाम लेते हैं। जो राजनीतिक नेतृत्व होता है उसका ही फैसला भी होता है और वही अपने निर्णयों को आगे बढ़ाने के लिए जोर भी डालता है। उस वक्त जो हुआ उसके लिए हमने पालिटिकल लीडरशिप को यानि प्रधानमंत्री को क्रेडिट दिया।प्रश्न- इस किताब में आपने लिखा है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी का रिवाइवल प्लान 2014 में शुरु हो गया था। इसके बारे में बताइएभूपेन्द्र यादव- मैं उस समय मैं उत्तर प्रदेश में मीडिया का काम देखता था। जब राष्ट्रीय महामंत्री के नाते अमित शाह जी के पास उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी आई थी तो अमित शाह जी ने उत्तर प्रदेश के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने का बहुत गहराई से अध्ययन किया। भिन्न प्रकार के समीकरणोंकी आवश्यकता को रेखांकित करते हुए एक आक्रामक नीति और एक स्पष्ट सोच देने का काम किया। उत्तर प्रदैश की राजनीति को व्यक्तिवाद से विकासवाद की ओर ले गए। इस वजह से 2014 के चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली। 2017 और 2019 में भी शानदार सफलता मिली।