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NCP झगड़े में अब सभी की निगाहें चुनाव आयोग पर, शरद पवार गुट दिल्ली में हुआ सक्रिय

दिल्ली में सक्रिय हुए शरद पवार गुट ने जहां चुनाव आयोग के सामने अपना पक्ष रखने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल से संपर्क साधा है तो वहीं अजीत गुट ने भी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी सहित दूसरे कानूनविदों से संपर्क किया है। बता दें अजित पवार गुट ने 30 जून को पत्र भेजकर राकांपा पर अपनी दावेदारी जताई थी।

By Jagran NewsEdited By: Shashank MishraUpdated: Sat, 08 Jul 2023 01:13 AM (IST)
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चुनाव आयोग जल्द ही दोनों गुटों को नोटिस जारी कर सकता है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) पर कब्जे को लेकर शरद पवार और अजित पवार गुटों में तेज हुई लड़ाई में अब सभी की निगाहें चुनाव आयोग पर टिक गई हैं। दोनों पक्षों ने इसे लेकर अपने-अपने स्तर पर तैयारी शुरू कर दी है। दिल्ली में सक्रिय हुए शरद पवार गुट ने जहां चुनाव आयोग के सामने अपना पक्ष रखने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल से संपर्क साधा है तो वहीं अजित गुट ने भी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी सहित दूसरे कानूनविदों से संपर्क किया है। माना जा रहा है कि चुनाव आयोग जल्द ही दोनों गुटों को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने और अपने दावों से जुड़े दस्तावेज पेश करने के लिए कह सकता है।

अजित पवार गुट ने राकांपा पर जताई थी अपनी दावेदारी

चुनाव आयोग भी इस मामले को निपटाने की जल्दबाजी में है, क्योंकि अगले कुछ महीनों में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी भी करनी है। यही वजह है कि आयोग दोनों गुटों से मिले दावेदारी के आवेदनों को लेकर कानूनी रायशुमारी शुरू कर दी है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, गुरुवार को दिल्ली आए शरद पवार ने इस मुद्दे पर कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी से फोन पर बात की। दोनों ने ही उन्हें हर स्तर पर मदद का भरोसा दिया है।

गौरतलब है कि चुनाव आयोग के पास अजित पवार गुट ने 30 जून को पत्र भेजकर राकांपा पर अपनी दावेदारी जताई थी। जबकि शरद पवार ने तीन जुलाई को ईमेल के जरिये पार्टी पर अपनी दावेदारी जताई थी। इसके बाद पांच जुलाई को भी अजित गुट ने दस्तावेज के साथ अपनी दावेदारी की थी।

किसकी होगी पार्टी, ऐसे होगा तय

पार्टी का असली मालिक कौन होगा इसका फैसला तीन चीजों पर निर्भर होता है। पहला-सबसे अधिक चुने हुए जनप्रतिनिधि किसके पास हैं। दूसरा-सबसे अधिक निर्वाचित पदाधिकारी किसके पक्ष में हैं। तीसरा-पार्टी से जुड़ी संपत्तियां किस गुट के पास हैं।

हालांकि किस धड़े को पार्टी माना जाएगा, इसका फैसला चुने हुए जनप्रतिनिधियों के बहुमत के आधार पर होता है। यानी जिस धड़े के पास सबसे अधिक सांसद-विधायक होंगे उसकी ही पार्टी होगी। यह इसलिए है, क्योंकि अन्य मानकों को लेकर विवाद की स्थिति रहती है। ज्यादातर पार्टियां अपने यहां लोकतांत्रिक ढंग से पदाधिकारियों की नियुक्ति नहीं करती हैं।

आयोग ने वर्ष 2017 में समाजवादी पार्टी को लेकर इसी आधार पर फैसला दिया था। अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव को हटाकर खुद पार्टी अध्यक्ष बन गए थे। आयोग ने अखिलेश के पक्ष में सिर्फ इस आधार पर फैसला सुनाया था कि उनके पक्ष में सबसे ज्यादा निर्वाचित जनप्रतिनिधि थे। इसी तरह हाल ही में शिवसेना को लेकर भी आयोग ने इसी आधार पर फैसला दिया था। शिंदे गुट को असली शिवसेना मानते हुए उसे पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह दिया।