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आखिर क्‍या है अनुच्छेद-239 और 239AA जिस पर मचा है दिल्‍ली में सियासी बवाल

उच्चतम न्यायालय की पीठ ने दिल्ली सरकार एवं उप राज्यपाल के संवैधानिक अधिकारों के संदर्भ जो फैसला दिया है उसे आम आदमी पार्टी पूर तरह अपने पक्ष में बता रही है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 07 Jul 2018 08:49 AM (IST)
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आखिर क्‍या है अनुच्छेद-239 और 239AA जिस पर मचा है दिल्‍ली में सियासी बवाल
[अवधेश कुमार] उच्चतम न्यायालय की पीठ ने दिल्ली सरकार एवं उप राज्यपाल के संवैधानिक अधिकारों के संदर्भ जो फैसला दिया है उसे आम आदमी पार्टी पूर तरह अपने पक्ष में बता रही है। दिल्ली सरकार के लिए कुछ राहत की बात इसमें अवश्य है, लेकिन वह जिस तरह इसकी अतिवादी व्याख्या कर रही है उससे यह आशंका पैदा होती है कि आगे भी उप राज्यपाल तथा सरकार के बीच टकराव होता रहेगा। आरंभ भी हो गया। दिल्ली सरकार द्वारा अधिकारियों के स्थानांतरण के प्रयास का अधिकारियों ने यह कहकर विरोध किया है कि यह संविधान के खिलाफ है। केंद्र का कहना है कि संविधान ने सेवा उसकी सूची में रखा है।

इस विषय पर संविधान पीठ ने कुछ कहा ही नहीं है। कई मामले उच्चतम न्यायालय की दो सदस्ययीय पीठ में लंबित है वहां इसकी सुनवाई होगी। मुख्य टकराव की शुरुआत अधिकारियों की नियुक्तियों और तबादलों पर आरंभ हुआ था। वह जस का तस है। संविधान के अनुच्छेद 239 और 239AA  की व्याख्या को लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच मतभेद था। 239 केंद्र शासित प्रदेशों के लिए है जिनमें उनके अधिकार एवं सीमाएं वर्णित हैं। दिल्ली के लिए विशेष तौर पर 239AA जोड़ा गया।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद-239 और 239AA को साथ-साथ देखने और बिजनस ट्रांजैक्शन ऑफ एनसीटी दिल्ली 1993 के तहत दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है, लेकिन 69वें संविधान संशोधन में इसमें विशेष प्रावधान किया गया है। इसका मतलब है कि अनुच्छेद-239AA आने के बाद भी अनुच्छेद 239 हल्का नहीं होता है। अनुच्छेद-239AA को इस तरह से परिभाषित नहीं किया जा सकता कि उसका मुख्य मकसद ही बेकार हो जाए।

उच्चतम न्यायालय ने इस पर मत तो व्यक्त किया है, पर यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। उसने कहा है कि अनुच्छेद-239AA आखिर एक लोकतांत्रिक प्रयोग था। इसकी व्याख्या से ही तय होगा कि ये सफल रहा या नहीं। तो इसकी व्याख्या क्या है? इसमें दिल्ली को अन्य केंद्रशासित राज्यों से अलग दर्जा मिला है। इसमें यह भी लिखा है कि इसके तहत दिल्ली में चुनी हुई सरकार होगी जो जनता के लिए जवाबदेह होगी। उच्चतम न्यायालय ने इनको रेखांकित कर दिया है। फैसले में कहा गया है कि उपराज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 239AA के प्रावधानों को छोड़कर अन्य मुद्दों पर निर्वाचित सरकार की सलाह पर काम करें।

इसका मतलब हुआ कि 239AA के प्रावधानों की व्याख्या उपराज्यपाल अपनी समझ के अनुसार करेंगे और केजरीवाल सरकार अपने अुनसार। कहने का तात्पर्य यह कि केजरीवाल सरकार के खुश होने के पहलू उतने नहीं हैं जितना वे बता रहे हैं। यह मान लेना गलत होगा कि दिल्ली सरकार एवं उपराज्यपाल के बीच टकराव खत्म हो जाएगा। केजरीवाल और उनके साथी अपने अधिकारों की व्याख्या अपने तरीके से करते रहे हैं। गहराई से देखा जाए तो उच्चतम न्यायालय ने फैसला देते समय वैधानिक तकनीकों से परे लोकतांत्रिक मूल्यों और मान्यताओं का ज्यादा ध्यान रखा है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जस्टिस दीपक मिश्र ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोच्च हैं।

संविधान पीठ के अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्र तब विफल हो जाता है, जब देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं बंद हो जाती हैं। हमारे समाज में अलग विचारों के साथ चलना जरूरी है। मतभेदों के बीच भी राजनेताओं और अधिकारियों को मिलजुल कर काम करना चाहिए। तो मूल बात यहां आकर टिक जाती है कि आपकी सोच और आपका आचरण कितना लोकतांत्रिक है। अगर सोच लोकतांत्रिक हो तो समस्या पैदा हो नहीं सकती। लोकतांत्रिक सोच का अर्थ है कि विरोधी विचारधाराओं के नेता एक दूसरे का सम्मान करें तथा कोई निर्णय करने के पहले यह सोचें कि इसमें जनता का हित निहित है या नहीं। किंतु ऐसा करते समय आप संविधान एवं परंपराओं की अनदेखी नहीं कर सकते। इनकी अनदेखी करना भी अलोकतांत्रिक व्यवहार ही है। उच्चतम न्यायालय ने इस पहलू को स्पष्ट करके दोनों पक्षों को सीख देने की कोशिश की है। 

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