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Lok Sabha Elections: लंबे समय तक राजनीति की दिशा तय करेगा नया साल, अगर BJP सरकार बनी तो एक देश एक चुनाव पर बढ़ेंगे कदम

नए साल की शुरूआत लोगों के लिए सामान्यतया एक वर्ष की योजना तक सीमित होती है लेकिन भारतीय राजनीति के लिए 2024 ऐसा साल होने वाला है जहां से यह तय होगा कि देश हर दूसरे तीसरे महीने चुनाव से गुजरेगा या फिर पांच साल में एक बार। आईएनडीआईए के सहयोगी उद्धव ठाकरे ने एक सम्मेलन में कहा कि डगमग सरकार अच्छी होती है जिसपर दबाव बनाया जा सके।

By Jagran News Edited By: Anurag GuptaUpdated: Sun, 31 Dec 2023 06:58 PM (IST)
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क्या तीसरी बार केंद्र में आएगी मोदी सरकार? (फाइल फोटो)
आशुतोष झा, नई दिल्ली। नए साल की शुरूआत लोगों के लिए सामान्यतया एक वर्ष की योजना तक सीमित होती है, लेकिन भारतीय राजनीति के लिए 2024 ऐसा साल होने वाला है जहां से यह तय होगा कि देश हर दूसरे तीसरे महीने चुनाव से गुजरेगा या फिर पांच साल में एक बार। समान नागरिक संहिता को लेकर लोगों की सोच स्थापित होगी और यह भी तय होगा कि जनता की पसंद ईज ऑफ लिविंग है या फिर रेवड़ी। सबसे बड़ी बात यह तय होगी कि जनता नेतृत्व को ज्यादा अहमियत देती है या राजनीतिक दल को। राजनीतिक दलों की सफलता के लिए नेतृत्व जरूरी है या नेतृत्व के लिए दल।

एक महीने पहले पांच राज्यों के चुनाव के साथ ही चर्चा 2024 के लोकसभा चुनाव पर केंद्रित हो गई है। यूं तो तीन दशक के इतिहास को पलटकर 2014 से लगातार दो बार केंद्र में एक पार्टी की बहुमत की सरकार बन चुकी है, लेकिन 2024 इसलिए खास है, क्योंकि विपक्ष अपने अंतरविरोधों के बावजूद लामबंद होकर भाजपा के सामने खड़ा होने की तैयारी कर रहा है। एक तरह से इसे 1977 के चुनाव का रंग देने की कोशिश हो रही है। यानी यह तय हो चुका है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने अपने लिए वह स्थान बना लिया है जहां कोई एक दल चुनौती देने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। एकजुट होकर अंतिम लड़ाई की आजमाइश हो रही है।

2024 में खींची जाएगी बदलाव की लकीर

एक तरफ विपक्ष भाजपा के विरासत की राजनीति को सांप्रदायिक करार दे रहा है और दूसरी तरफ भाजपा विरासत के वैभव से आर्थिक विकास का ऐसा ढांचा खड़ा करने की कोशिश हो रही है जिसमें मन भी तृप्त हो और जेब भी। ऐसे में 2024 ऐसा काल होगा जहां बदलाव की लकीर पत्थर पर खींची जाएगी। तीसरी बार फिर से बहुमत के साथ मोदी सरकार बनती है तो व न सिर्फ लोककल्याणकारी योजनाओं की जमीन तक पहुंच का सबूत और विकसित भारत के सपनों के लिए होगा, बल्कि अनुच्छेद 370 को रद किए जाने, तीन तलाक को अवैध करार दिए जाने की तरह ही समान नागरिक संहिता पर ठोस कदम, एक देश एक चुनाव जैसे बड़े सुधार के लिए भी अनुमोदन होगा।

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गौरतलब है कि सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह व अन्य की एक कमेटी बनाई है, जो एक देश एक चुनाव पर विमर्श कर रही है, जबकि समान नागरिक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से ही बार-बार याद दिलाया जा रहा है। सरकार की ओर से फिलहाल चुप्पी है। हालांकि, शादी व तलाक जैसे मुद्दों पर कुछ सुधार पहले ही हो चुके हैं।

कर्नाटक के आगे भाजपा का नहीं हो पाया विस्तार

भाजपा पिछले कुछ वर्षों में पूरे उत्तर और उत्तर पूर्व में अपना पैर जमा चुकी है, लेकिन दक्षिण में कर्नाटक के आगे विस्तार नहीं हो पाया है। द्रुमक के एक सांसद की ओर से इसे उत्तर और दक्षिण के विभाजन की तरह भी पेश किया गया था, बल्कि एक समय तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड और अमेठी की कुछ ऐसी ही तुलना की थी। 2024 इसका भी उत्तर देगा। अगर भाजपा सुदूर दक्षिण में इस बार भी अपना विस्तार नहीं कर पाती है उत्तर दक्षिण के चुनाव का यह विभाजन स्थापित हो जाएगा।

भाजपा की ओर से लगातार बहुमत की सरकार के फायदे गिनाए जा रहे है। बड़े फैसले इसीलिए लिए जा सके हैं कि भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है। खुद प्रधानमंत्री मोदी विदेशों में भारत की बढ़ी अहमियत का कारण मजबूत सरकार को बताते रहे हैं। दूसरी तरफ गठबंधन सरकार के लिए मशक्कत हो रही है।

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उद्धव ठाकरे ने क्या कुछ कहा?

आईएनडीआईए के सहयोगी उद्धव ठाकरे ने एक सम्मेलन में यहां तक कहा कि डगमग सरकार अच्छी होती है जिसपर दबाव बनाया जा सके। 2024 में जनता इसे तय करेगी। भाजपा जिस तरह मोदी को केंद्र में रखकर सफलता हासिल कर रही है उससे यही साबित हुआ है कि राजनीतिक दलों की सफलता नेतृत्व के कारण होती है।

  • एक तरह से मोदी की छवि भाजपा से आगे निकल गई है। यह संदेश स्थापित हो गया है कि भाजपा चाहे राज्यों में ही क्यों न हो, वह करेगी जिसकी गारंटी मोदी देंगे। संगठन मे भी यही संदेश है।
  • दूसरी तरफ नेतृत्व की बजाय दलों को आगे कर लड़ा जा रहा है। कोई ऐसा सर्ममान्य नेतृत्व नहीं है जिसकी बात गठबंधन और जनता गारंटी की तरह ले। ऐसे में 2024 राजनीतिक दलों को सक्षम नेतृत्व चुनने के लिए भी मजबूर करेगा।
अगर भाजपा हैट्रिक बनाती है तो अन्य राजनीतिक दलों में ऐसा गुट मुखर हो सकता है, जो विकास और विरासत की राष्ट्रीय सोच रखता हो। अगर पासा पलटा तो केंद्रीय राजनीति में एक बार फिर से क्षेत्रीय दलों का रुतबा निखरेगा।