Lok Sabha Speaker Election: लोकसभा स्पीकर पद पर कहां फंसा पेच?, पढ़ें Inside Story
लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आम सहमति से होता रहा है लेकिन इस बार विपक्ष की घोषणा के बाद पांच दशक में पहली बार इस पद के लिए चुनाव होगा। एनडीए उम्मीदवार ओम बिरला और आईएनडीआईए के कोडिकुन्निल सुरेश ने मंगलवार को 18वीं लोकसभा के अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाखिल किया। लेकिन क्यों उठी चुनाव की मांग जानिए Inside Story
नीलू रंजन, नई दिल्ली। पांच दशक में पहली बार लोकसभा अध्यक्ष के लिए मतदान होगा। अंतिम समय तक सहमति बनाने की कोशिशों के विफल होने के बाद सत्तापक्ष की ओर से ओम बिरला और विपक्ष की ओर से के सुरेश के नामांकन दाखिल किये गए। विपक्ष की ओर से अध्यक्ष पद के लिए बिरला के समर्थन के एवज में उपाध्यक्ष पद विपक्ष को देने की शर्त रखी गई थी, जिसे सत्तापक्ष ने मानने से इनकार कर दिया।
सत्तापक्ष की ओर से सहमति की कोशिश की गई
अब बुधवार को नए लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव होगा। इसके पहले 1976 में लोकसभा अध्यक्ष के लिए मतदान हुआ था। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार सत्तापक्ष की ओर से लोकसभा अध्यक्ष के लिए सहमति बनाने की भरसक कोशिश की गई।राजनाथ सिंह ने तीन बार खरगे से बात की
ओम बिरला के नाम पर राजग के सहयोगी दलों में सहमति बनाने के बाद राजनाथ सिंह ने दो दिनों में तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से बात की। मंगलवार की सुबह भी राजनाथ सिंह ने खरगे को फोन किया था, लेकिन व्यस्तता के कारण उन्होंने कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल को बातचीत की जिम्मेदारी सौंपी।
उपाध्यक्ष का पद पर अड़ा विपक्ष
- विपक्ष की ओर से डीएमके के नेता टीआर बालू और केसी वेणुगोपाल बातचीत के लिए राजनाथ सिंह के कमरे में पहुंचे।
- राजनाथ सिंह के अलावा अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी बालू और वेणुगोपाल को ओम बिरला के नाम पर मनाने की कोशिश की।
- विपक्षी नेताओं ने साफ कर दिया कि उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को देने की परंपरा रही है।
- लोकसभा अध्यक्ष के लिए समर्थन के एवज में सत्तापक्ष में उपाध्यक्ष पद विपक्ष को देने की गारंटी दे।
- सत्तापक्ष की ओर से ऐसी गारंटी नहीं मिलने के बाद विपक्ष ने आठ बार के सांसद के सुरेश को मैदान में उतारने का फैसला किया।
पीयूष गोयल और जदयू के ललन सिंह ने आरोप लगाया कि सहमति बनाने की आड़ में शर्तें थोपने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने साफ किया कि लोकतंत्र और संसद शर्तों के साथ नहीं चलता है।
ललन सिंह के अनुसार सत्तापक्ष की ओर से फिलहाल लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए सहमति बनाने का प्रस्ताव रखा गया और उपाध्यक्ष पद पर बाद में बातचीत का आश्वासन दिया गया।वहीं केसी वेणुगोपाल ने सत्तापक्ष की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि संसदीय परंपरा का उल्लंघन करते हुए 16वीं और 17वीं लोकसभा में विपक्ष को उपाध्यक्ष का पद नहीं दिया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि कांग्रेस के पास आधिकारिक रूप से विपक्ष होने के लिए जरूरी 54 सीटें नहीं हैं।