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No Confidence Motion: अपने पैर पर विपक्ष ने मारी कुल्हाड़ी, सत्ता पक्ष के हमलों के सामने बेबस दिखा I.N.D.I.A

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर उनकी इच्छा पूरी कर दी। साथ ही तंज भी किया कि विपक्ष तैयारी करके नहीं आता। तीन दिनों में यह सचमुच दिखा भी। सत्तापक्ष ने वर्तमान भी साधा और आगामी चुनाव के लिए अपने नेताओं व गठबंधन में भरोसा भी भर दिया।

By Jagran NewsEdited By: Amit SinghUpdated: Thu, 10 Aug 2023 10:33 PM (IST)
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तीन दिनों की चर्चा में नहीं दिखी विपक्ष की तैयारी

आशुतोष झा, नई दिल्ली: विपक्ष ने यह क्या किया, सब कुछ जानते-समझते हुए पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। यह तो कोई नहीं मान सकता है कि विपक्षी नेताओं को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वाक क्षमता का पता नहीं था। विपक्ष को इसका काफी अनुभव है कि जनता से सीधा संवाद बनाने में माहिर प्रधानमंत्री मोदी को जब भी अवसर मिलता है तो दूसरों की जमीन खाली हो जाती है। फिर भी अविश्वास प्रस्ताव का पूरा मंच सजाकर दे दिया।

कहा गया कि विपक्ष प्रधानमंत्री को सदन में लाना चाहता है और लेकर आ भी गया। अगर इसे जीत माना जा रहा है तो फिर समझ की बलिहारी। हश्र सबके सामने है। लगभग 20 घंटे तक चली बहस में मणिपुर की मशाल लेकर निकला विपक्ष अपने ही हाथ जला बैठा। जबकि भाजपा और सत्तापक्ष ने फिर से वापसी का मंच भी तैयार कर लिया और हर राज्य की संवेदना भी छूने की कोशिश की।

विपक्ष तैयारी करके नहीं आता

प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर उनकी इच्छा पूरी कर दी। साथ ही तंज भी किया कि विपक्ष तैयारी करके नहीं आता। तीन दिनों में यह सचमुच दिखा भी। सत्तापक्ष ने वर्तमान भी साधा और आगामी चुनाव के लिए अपने नेताओं व गठबंधन में भरोसा भी भर दिया।

संसद में तीन दिनों तक मोदी सरकार की नौ वर्षों की उपलब्धियों का बखान होता रहा, सदन के जरिये देश की जनता को वे सारी चीजें याद दिलाई गईं तो मोदी काल में पूरी हुईं, पूर्व में कांग्रेस शासनकाल में हुए घोटालों की सूची गिनाई गई, आइएनडीआइए गठबंधन के अंदरूनी संघर्ष और खींचतान की कहानी जनता को बार-बार याद दिलाई गई। विपक्ष में किसी भी नेता के पास इसका जवाब नहीं था। विपक्ष के इक्के-दुक्के नेताओं को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर अपनी क्षेत्रीय राजनीति में उलझे रहे।

देश पूर्वोत्तर में होने वाली घटनाओं से वाकिफ

मणिपुर की घटना निश्चित रूप से चिंताजनक है और उस पर सभी को संवेदनशील होना चाहिए। लेकिन इसमें भी शक नहीं कि देश पूर्वोत्तर में होने वाली नस्लीय घटनाओं से वाकिफ है। विपक्ष ने इसे राजनीतिक लड़ाई का प्रमुख केंद्र बना लिया और जिद इतनी हावी होती गई कि विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी जैसे जनता से सीधे जुड़े मुद्दों को भी नजरअंदाज कर गया।

माना जा रहा था कि टमाटर की चिढ़ाती लाली पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाएगा, लेकिन विपक्ष अवसर चूक गया। लगभग एक पखवाड़े तक मणिपुर की नस्लीय हिंसा को लेकर संसद बाधित रही, जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से किसी भी दिन चर्चा की चुनौती पेश कर दी गई थी। धीरे-धीरे यह संदेश स्थापित हो गया कि विपक्ष ही शायद मणिपुर पर चर्चा को लेकर बहुत गंभीर नहीं है।

विपक्ष को लगा कि बाकी सारे मुद्दों को छोड़कर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरा जाए क्योंकि चेहरा तो वही हैं। यही कारण है कि अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला कर लिया गया। नतीजा क्या हुआ- मणिपुर का इतिहास सामने आ गया और यह भी कि कांग्रेस काल में प्रधानमंत्री तो दूर, गृह मंत्री तक ने न तो मणिपुर का दौरा किया था और न ही संसद में इस पर कभी चर्चा हुई थी।

सिर्फ काम में लगे हुए थे प्रधानमंत्री

राहुल गांधी की संसद में वापसी हुई तो विपक्ष में उत्साह जगा। लेकिन राहुल गांधी फिर से भारत जोड़ो यात्रा और अदाणी तक सीमित होकर रह गए। मणिपुर की घटनाओं के सहारे विपक्षी सदस्यों ने महिला सुरक्षा और सम्मान का सवाल खड़ा किया, लेकिन सत्तापक्ष की ओर से जब राजग काल के आंकड़े रखे गए तो उल्टा संप्रग काल ही कठघरे में आ गया।

मणिपुर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब पूरी स्थिति रखी तो विपक्ष और खासकर कांग्रेस के लिए छिपने की स्थिति भी नहीं बची क्योंकि इतिहास का वह पन्ना जीवित हो गया जब कांग्रेस काल में मणिपुर पर चर्चा को पूरी तरह नकार दिया गया था। शाह ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि प्रधानमंत्री मोदी चुप रहते हुए सिर्फ काम में लगे हुए थे और सुबह चार बजे भी फोन पर मणिपुर की जानकारी ले रहे थे।

नहीं लगा सकते काम से बचने का आरोप

वैसे भी पिछले नौ वर्षों में देश की जनता यह तो समझ चुकी है कि प्रधानमंत्री मोदी पर काम से बचने का आरोप नहीं लगाया जा सकता। फिर विपक्ष इसमें उलझा ही क्यों। गठबंधन की एकजुटता साबित करने के लिए आग में कूदने की जरूरत ही क्या थी। जिस किसी ने पूरे तीन दिन की चर्चा देखी-सुनी होगी उसने साफ देखा होगा कि लगभग पूरे समय विपक्ष लाचार नजर आया।

विपक्षी नेता यह बोलते भी रहे कि वह अविश्वास प्रस्ताव नहीं जीत सकते और प्रधानमंत्री को सदन में बुलाना ही उनका मकसद था। अगर गठबंधन नेताओं के संयुक्त फैसले की शुरुआत ऐसी है तो उनके लिए चेतावनी है। सामने भाजपा जैसा सशक्त दल हो, प्रधानमंत्री मोदी जैसा नेता हो तो तैयारी मजबूत करनी होगी। वर्ना जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा, 2028 में फिर अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी।