भाजपा को टक्कर देने की सूरत में नहीं विपक्ष, आम चुनाव में होगा नॉर्थ ईस्ट से फ़ायदा
बीते चार वर्षों में मोदी शाह की जोड़ी ने एक नई भाजपा को जन्म दिया है जो किसी भी छोटे से छोटे चुनाव को और छोटी से छोटी पार्टियों को कम नहीं आंकती है और उसके लिए रणनीति बनती है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। भाजपा के चुनाव दर चुनाव बढ़ते राजनीतिक ग्राफ के साथ-साथ पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी सियासी कामयाबी के नए मानदंड स्थापित करते जा रहे हैं। त्रिपुरा की जीत के साथ ही शाह ने चार साल से भी कम समय में 14 राज्यों में भाजपा की सत्ता का परचम लहरा दिया है। मौजूदा समय में देश के करीब 75 फीसद भू-भाग पर भाजपा या राजग की सरकारें हैं। वहीं दूसरी तरफ कभी लगभग पूरे देश पर राज करने वाली कांग्रेस अब केवल देश के आठ फीसद भू-भाग तक ही सिमट कर रह गई है।
पार्टी का स्वर्णिम काल
इस कामयाबी के बाद भी अमित शाह का कहना है की भारतीय जनता पार्टी का स्वर्णिम काल अभी नहीं आया है। उनके लिए ये दिन उस वक्त अएगा जब पार्टी ओडिशा समेत कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और केरल में अपनी सरकार बनाएगी। उनकी ये टिप्पणी काफी अहम है। अहम इसलिए क्योंकि कर्नाटक में डेढ़ महीने बाद चुनाव है, वहां उसका मुकाबला कांग्रेस से होना है। वहीं ओडिशा में 2019 में चुनाव होने हैं। यहां हाल ही के स्थानीय चुनावों में पार्टी ने अपनी काफी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। ऐसे में भाजपा अध्यक्ष की यह भूख प्रदेश के कार्यकर्ताओं में नया जोश भर सकती है।राजनीतिक जमीन काफी मजबूत
चुनावी राजनीति का शहंशाह
हालिया चुनाव की बात करें तो वामपंथ के दूसरे अभेद्य गढ़ त्रिपुरा की जीत ने शाह को देश की चुनावी राजनीति का शहंशाह इसीलिए भी बना दिया है, क्योंकि इस सूबे में भाजपा को लगभग शून्य से शिखर पर पहुंचाने की पूरी सियासी पटकथा उनकी अगुआई में बीते दो साल में लिखी गई। त्रिपुरा के पिछले विधानसभा में भाजपा मुख्य विपक्षी दल की हैसियत से भी कोसों दूर थी। इतना ही नहीं इससे पहले हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीद्वारों की जमानत तक जब्त हो गई थी। ऐसे में त्रिपुरा की जीत को कम करके नहीं आंका जा सकता है। प्रदीप सिंह का कहना है कि मौजूदा समय में भाजपा के पास बेहतर नेतृत्व है बेहतर वक्ता है जिसका कोई तोड़ नहीं है। आज लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जुडाव महसूस करते हैं। उन्होंने जो कहा उस पर कम किया या नहीं किया ये बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन आम इन्सान उनपर विश्वास करता है की भाजपा की नियत कुछ करने की जरुर है।राजनीतिक जमीन काफी मजबूत
मिल रही लगातार जीत
भाजपा को मिल रही लगातार जीत पर यदि नजर डाली जाए तो ये बात सीधे तौर पर निकल कर आती है कि शाह के कमान संभालने के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव हुए। इन दोनों सूबों में भाजपा ने उनकी अगुआई में चुनावी कामयाबी का सफर शुरू किया। इसके बाद जम्मू-कश्मीर, झारखंड, असम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भाजपा को जीत दिलाते हुए सरकार बनवाई, जबकि शाह ने अपनी रणनीति से त्रिपुरा के साथ नगालैंड और मेघालय की कामयाबी ने पूर्वोत्तर भारत में भाजपा के सियासी पांव मजबूत किए।नॉर्थ ईस्ट से होगा भाजपा को फ़ायदा
देश का सियासी मिजाज
मौजूदा समय में यदि कांग्रेस और भाजपा की तुलना की जाए तो साफ दिखाई देता है कि आज देश के सियासी मिजाज का समीकरण ही नहीं मानचित्र भी बदल गया है। अब देश की 68.3 फीसद आबादी और 75 फीसद भू-भाग पर भाजपा-राजग का शासन है। इसकी तुलना में कांग्रेस की सरकारें देश की आबादी के केवल साढ़े सात फीसद लोगों तक सीमित हैं। भू-भाग के लिहाज से भी कांग्रेस का दायरा दो अंकों से नीचे आते हुए देश के केवल आठ फीसद इलाके तक सिमट गया है। इस समय कांग्रेस की सरकार केवल कर्नाटक, पंजाब, मिजोरम और पुडुचेरी में ही रह गई है।वाजपेयी के बोल
यहां पर उस दिन को भी नहीं भूलना चाहिए जब 1997 में लोकसभा में खड़े होकर तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था की आज हमारे कम सदस्य होने पर आप (कांग्रेस) हंस रहे हैं लेकिन वो दिन आएगा जब पूरे भारत में हमारी सरकार होगी, उस दिन देश आप पर हंसेगा और आपका मजाक उड़ायेगा।" आज उनकी कही बात सच हो रही है। आपको बता दें कि पिछले वर्ष अगस्त में जब अमित शाह ने पार्टी के अध्यक्ष के तौर अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा किया था उससे कुछ ही दिन पहले नरेन्द्र मोदी को चुनौती देनेवाले बिहार के सीएम नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा बने थे। उस वक्त भाजपा की केंद्र के साथ साथ 18 राज्यों में सत्ता थी। इनमें से सात राज्यों में पहली बार भाजपा ने दस्तक दी थी।छह लाख किमी से ज्यादा की यात्रा
बतौर पार्टी अध्यक्ष शाह ने देश में अब तक करीब 6 लाख किलोमीटर से ज्यादा का सफर किया है। इस दौरान पार्टी को सबसे बड़ी मजबूती इस बात से भी मिली है की उसने किसी भी चुनाव को छोटा नहीं समझा जैसा कांग्रेस समझती रही है। इस बात की तसदीक खुद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मीम अफज़ल करते दिखाई देते हैं। उनके मुताबिक नगालैंड के चुनाव पार्टी के लिए अहमियत नहीं रखते थे इसलिए वहां पार्टी ने ज्यादा कुछ किया भी नहीं।पार्टी को दी जमीनी मजबूती
वहीं दूसरी तरफ भाजपा लगातार न सिर्फ अपनी जमीन को मजबूती देने में लगी हुए है बल्कि आज उसके सदस्यों की संख्या भी 100 मिलियन के पार चली गई है। अपनी मजबूत जमीन की बदौलत ही भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 71 सीटों पर जीत दर्ज करवा पाने में कामयाब हो सकी। इसकी ही बदौलत यहां के विधानसभा चुनाव में 403 विधानसभा क्षेत्रों में से 312 पर भाजपा ने जीत का परचम लहराया था।भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग
ये भारत की सोशल इंजीनियरिंग का ही कमाल था कि उससे वो लोग भी जुड़ गए जो कभी उससे दूरी बनाकर रखते थे। इनमें न सिर्फ दलित तबका शामिल था बल्कि मुस्लिम भी शामिल थे। भाजपा नेता इसबात को कहने से नहीं चूकते हैं कि समाज में आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े वर्गों तक अपनी पहुंच बनाने में कामयाब रही। मोदी की लहर और अमित शाह के सोशल इंजीनियरिंग का जादू इस कदर चला आज कई राज्यों में कांग्रेस हाशिए पर चली गई है। फ़िलहाल इन दोनों द्वारा दिया गया कांग्रेस मुक्त भारत का नारा जोरशोर के साथ आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है। भाजपा की राजनीति को करीब से देखने वाले राजनीतिकविश्लेषक मानते हैं की अमित शाह की अब अगली रणनीति क्षेत्रीय दलों को और कमजोर करना होगी।लेफ्ट नहीं राइट
नॉर्थ ईस्ट में अपनी जीत से उत्साहित शाह ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में यहां तक कहा की लेफ्ट भारत के किसी भी हिस्से के लिए राइट नहीं है। उनका कहना था कि देश के पश्चिमी छोर जैसा विकास अभी पूर्वी छोर में नहीं हुआ है। इसके लिए पीएम मोदी ने ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ शुरू की। यह जीत सरकार की नीतियों पर लोगों का ठप्पा है। उन्होंने त्रिपुरा की जीत को ऐतिहासिक बताया है। अब तक भाजपा को हिंदी बेल्ट की पार्टी माना जाता था, वो ठप्पा अब हट गया। लेफ्ट को आज के दौर में कोई पसंद नहीं करता है। पहले पश्चिम बंगाल अब त्रिपुरा में उसकी हार इसका सुबूत है। भाजपा देश के हर हिस्से में उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। अब जहां लद्दाख से लेकर केरल तक और कच्छ से लेकर त्रिपुरा तक हमारा राज्य है। अमित शाह ने कहा कि कर्नाटक में हमारी तैयारी मुकम्मल है।पांच वर्ष पहले जहां कहीं नहीं थी भाजपा अब वहीं बन रही उसकी सरकारतीन दशक बाद भी नगालैंड विधानसभा महिला विधायक से रहेगी महरूम
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