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Election 2024: बिखरा विपक्ष, भाजपा का ‘क्लीन स्वीप’ का लक्ष्य; फेल हो चुके सपा-कांग्रेस गठबंधन से चमत्कार की संभावना बेहद कम

एक बार फिर बदले सियासी माहौल में चुनाव होने जा रहे हैं। मोदी से मुकाबले की तमाम कोशिशों के बावजूद बसपा अब तक विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए में शामिल नहीं हुई है। विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस के साथ सपा और रालोद (राष्ट्रीय लोकदल) की जातीय जुगलबंदी से अबकी इतिहास बदलने के दावे किए गए लेकिन चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही रालोद के जयंत चौधरी राजग में शामिल हो गए।

By Jagran News Edited By: Amit Singh Updated: Sat, 02 Mar 2024 10:23 AM (IST)
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अकेले चुनाव लड़ने से एक दशक पहले की शून्य वाली स्थिति में पहुंचती दिख रही बसपा।
अजय जायसवाल, लखनऊ। देश की राजनीति की धुरी माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में बिखरे विपक्ष से भाजपा इस बार क्लीन स्वीप की संभावनाएं लेकर चल रही है। मोदी सरकार की हैट्रिक रोकने के लिए प्रदेश में कांग्रेस और सपा ने हाथ तो मिलाया है, लेकिन विधानसभा चुनाव में फेल हो चुके गठबंधन से लोकसभा चुनाव में भी चमत्कार की उम्मीद नहीं दिखती। वहीं, अकेले चुनाव में उतरने वाली बसपा एक बार फिर ‘शून्य’ वाली स्थिति में पहुंचने की राह पर है।

सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दृष्टि से अहमियत यूं समझी जा सकती है कि राज्य ने अब तक नरेन्द्र मोदी सहित देश को नौ प्रधानमंत्री दिए हैं। 24 करोड़ से अधिक की आबादी वाले प्रदेश में भाजपा ने पिछले दोनों लोकसभा चुनाव बिल्कुल अलग सियासी हालात में लड़े हैं। वर्ष 2014 में भाजपा के सामने जहां कोई बड़ा विपक्षी गठबंधन नहीं था वहीं, वर्ष 2019 के चुनाव में बसपा, सपा और रालोद एक साथ थे।

मोदी लहर का जलवा

एक दशक पहले वाराणसी लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव मैदान में मोदी के उतरने से राज्य में ऐसी मोदी लहर चली थी कि भाजपा रिकार्ड 71 सीटों पर पहुंच गई थी। भाजपा के सहयोगी अपना दल(एस) ने भी दो सीटें जीती थी। वहीं, सपा को पांच, कांग्रेस दो और बसपा शून्य पर सिमट कर रह गई थी।

पिछले चुनाव में सपा-बसपा के मिलने पर भाजपा सहयोगी अपना दल(एस) संग नौ सीटें घटकर 62 पर रह गई थी। वहीं, बसपा शून्य से 10 और सपा पांच सीटों पर ही रही थी। सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा था। अमेठी से राहुल गांधी हार गए थे। सिर्फ सोनिया गांधी की रायबरेली सीट बची थी।

खोखले दावों की खुली पोल

एक बार फिर बदले सियासी माहौल में चुनाव होने जा रहे हैं। मोदी से मुकाबले की तमाम कोशिशों के बावजूद बसपा अब तक विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए में शामिल नहीं हुई है। विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस के साथ सपा और रालोद (राष्ट्रीय लोकदल) की जातीय जुगलबंदी से अबकी इतिहास बदलने के दावे किए गए, लेकिन चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही रालोद के जयंत चौधरी राजग में शामिल हो गए।

यहां पर गौर करने की बात यह है कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अखिलेश और राहुल की ‘दो लड़कों की जोड़ी’ को प्रदेशवासियों ने सिरे से नकार दिया था। ऐसे में अब कांग्रेस सिर्फ 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि सपा 63 पर। आजमगढ़ से अखिलेश लड़ने को तैयार हैं।

उत्तर प्रदेश में पिछले दो लोकसभा चुनाव की दलीय स्थिति 

साल 2019 की स्थिति

पार्टी सीटें वोट%
भाजपा 62 49.46
सपा 5 17.96
बसपा 10 19.96
कांग्रेस 1 6.31
अपना दल 2 1.21
साल 2014 की स्थिति

पार्टी सीटें  वोट%
भाजपा 71 42.63
सपा 5 22.35
बसपा 0 19.77
कांग्रेस 2 07.53
अपना दल 2 01.00
  • विधानसभा चुनाव में फेल हो चुके सपा-कांग्रेस गठबंधन से चमत्कार की संभावना बेहद कम
  • अकेले चुनाव लड़ने से एक दशक पहले की 'शून्य' वाली स्थिति में पहुंचती दिख रही बसपा

भाजपा को बिखराव का फायदा

कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची तो अभी नहीं आई, लेकिन सोनिया के चुनाव न लड़ने से रायबरेली से प्रियंका वाड्रा और अमेठी से फिर राहुल गांधी के लड़ने की चर्चा है। बसपा के मौजूदा सांसद भी मायावती का साथ छोड़ते जा रहे हैं। अकेले चुनाव लड़ने से बसपा भले ही कोई सीट न जीते, लेकिन त्रिकोणीय लड़ाई में वोटों के बिखराव का फायदा भाजपा को मिल सकता है।

मिशन-80 की कामयाबी के लिए भाजपा विधानसभा चुनाव के बाद से ही तैयारियों में लगी हुई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभाव रहने वाले रालोद के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश में सामाजिक समीकरण को मजबूत करने के लिए अपना दल (एस), निषाद पार्टी और सुभासपा जैसे क्षेत्रीय दल भी एनडीए में शामिल हो चुके हैं। पिछले चुनाव में हाथ न आने वाली 14 सीटों पर कब्जा जमाने को पार्टी अब विपक्षी दलों में सेंधमारी कर फील्डिंग सजाने में जुटी है।

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