कांग्रेस में पद्म सम्मान पर जारी रार में उठ रहे सवाल, तरुण गोगोई और एससी जमीर पर खुशी तो गुलाम नबी आजाद पर गम क्यों?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण दिए जाने को लेकर पार्टी में चल रही अंदरूनी रार थमती नजर नहीं आ रही। पार्टी नेताओं का एक खेमा इस मामले में पार्टी में दोहरे मापदंड को लेकर भी अंदरखाने सवाल उठाने लगा है।
By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Thu, 27 Jan 2022 11:00 PM (IST)
संजय मिश्र, नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण दिए जाने को लेकर पार्टी में चल रही अंदरूनी रार थमती नजर नहीं आ रही। आजाद पर कटाक्ष करने वाले नेताओं को आड़े हाथ लेने के बाद पार्टी नेताओं का एक खेमा इस मामले में पार्टी में दोहरे मापदंड को लेकर भी अंदरखाने सवाल उठाने लगा है। उनका कहना है कि आजाद को पद्म सम्मान अगर गले से नहीं उतर रहा है तो बीते दो वर्षों के दौरान भाजपा सरकार ने जब तरुण गोगोई और एससी जमीर को पद्म भूषण से नवाजा तो कांग्रेस ने इसका स्वागत क्यों किया। इतना ही नहीं, पार्टी का यह खेमा नरसिंह राव और मनमोहन सिंह सरकार के दौरान विपक्षी दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई से लेकर ब्रजेश मिश्र को पद्म पुरस्कार देने का हवाला देकर आईना भी दिखा रहा है।
जयराम रमेश ने कसा था बेहद तीखा तंज
गुलाम नबी आजाद को देश के तीसरे सर्वोच्च सम्मान पद्म भूषण दिए जाने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने बेहद तीखा तंज कसते हुए उन पर सीधा निशाना साधा था। माकपा के दिग्गज और बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के पद्म पुरस्कार लेने से इन्कार की खबरों पर ट्वीट करते हुए जयराम ने कहा था, 'बुद्धदेव ने सही किया, उन्होंने गुलाम होने के बजाय आजाद रहना पसंद किया।'
कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं के समूह की अगुआई करने वाले आजाद पर साधे गए इस निशाने के बाद जी-23 के नेताओं ने बुधवार को सीधे पलटवार किया। राज्यसभा में पार्टी के उपनेता आनंद शर्मा, वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल, पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार और शशि थरूर जैसे नेताओं ने जयराम को आडे़ हाथों लेते हुए आजाद को सम्मानित किए जाने को सही ठहराया। इस विवाद के बावजूद कांग्रेस की ओर से अभी तक किसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई है।
गुलाम नबी आजाद पर सवाल उठाना कांग्रेस का दोहरे मानदंड का संकेत पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि कांग्रेस का यह रुख दोहरे मानदंड की ओर इशारा करता है। मोदी सरकार की ओर से आजाद को पद्म भूषण से सम्मानित किए जाने के पीछे अगर राजनीतिक मंशा की आशंका नजर आ रही है तो फिर तरुण गोगोई और एससी जमीर को सम्मानित किए जाने पर नजरिया अलग क्यों रहा। असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेसी दिग्गज तरुण गोगोई को 2021 में मोदी सरकार ने मरणोपरांत पद्म भूषण से नवाजा था तो नगालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री व दिग्गज कांग्रेस नेता एससी जमीर को 2020 में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
नरसिंह राव सरकार ने वाजपेयी को तो मनमोहन सरकार ने ब्रजेश मिश्रा को दिया था पद्म सम्मान आजाद को सम्मानित किए जाने को सही ठहराने वाले कांग्रेस नेताओं का कहना है कि राजनीति की शीर्ष हस्तियों को ऐसे राष्ट्रीय सम्मान देने में हमेशा दलीय प्रतिबद्धता की कसौटी नहीं देखी जाती। कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों में अनेक विपक्षी नेताओं को शीर्ष सम्मान से नवाजा गया।
नरसिंह राव सरकार ने भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को 1992 में दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण प्रदान किया था। जबकि 1991 में राव सरकार ने ही मोराजी देसाई को भारत रत्न से नवाजा था। वाजपेयी सरकार के दौरान 1999 में कांग्रेस के दिग्गज गोपीनाथ बारदोलोई को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इसी तरह मनमोहन सिंह सरकार ने 2011 में भाजपा-राजग की वाजपेयी सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे ब्रजेश मिश्रा को पद्म विभूषण से नवाजा था। इन उदाहरणों से साफ है कि अगर आजाद को पार्टी के अंदर से ही निशाना बनाया जाता है तो पद्म पुरस्कारों के लिए कांग्रेस की रीति-नीति की निष्पक्षता कसौटी पर कसी जाएगी।
मालूम हो कि आनंद शर्मा और सिब्बल जैसे नेताओं ने जयराम के कटाक्ष पर वार करते हुए बुधवार को यह कहने से भी गुरेज नहीं किया था कि राजनीति और सार्वजनिक जीवन में आजाद के योगदान को देखते हुए वह इस सम्मान के हकदार हैं। आजाद पर जयराम का तंज इसलिए भी पार्टी की अंदरूनी सियासत में रार का विषय बन गया क्योंकि उन्हें हाईकमान का करीबी माना जाता है।