'पूरे देश में कच्चाथीवू द्वीप बनेगा भाजपा का चुनावी मुद्दा', मेरठ की रैली में पीएम मोदी ने उठाए INDI गठबंधन पर सवाल
मेरठ की रैली में भी पीएम मोदी ने INDI गठबंधन पर सवाल उठाए। दरअसल कच्चाथीवू द्वीप के मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले भी संसद और रैली में उठा चुके हैं। यह मुद्दा दक्षिण भारत की राजनीति विशेष रूप से गर्माएगा।अरुणाचल प्रदेश और चीन जैसे मुद्दे उठाकर मोदी सरकार को घेरने का प्रयास करती रही कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के विरुद्ध भाजपा इसी मुद्दे को पूरी ताकत से उठाएगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कच्चाथीवू द्वीप के जिस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले भी संसद और रैली में उठा चुके हैं, वह अब आरटीआइ के माध्यम से इन पुष्ट तथ्यों के साथ सामने है कि 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ही भारत का यह द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था।
भाजपा का कच्चाथीवू द्वीप बनेगा अहम मुद्दा
अरुणाचल प्रदेश और चीन जैसे मुद्दे उठाकर मोदी सरकार को घेरने का प्रयास करती रही कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के विरुद्ध भाजपा अब इसी मुद्दे को पूरी ताकत से उठाएगी, इसका संकेत मिल चुका है। पहले तो एक्स पर पोस्ट कर पीएम मोदी ने लिखा कि भारत की एकता-अखंडता को कमजोर करना कांग्रेस के काम का तरीका है, फिर मेरठ की रैली में भी आरोप लगाया कि कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने मां भारत के अंग को काट दिया।
दक्षिण भारत की राजनीति विशेष रूप से गर्माएगा
यह मुद्दा दक्षिण भारत की राजनीति विशेष रूप से गर्माएगा। उसमें भी तमिलनाडु में सत्तासीन डीएमके को असहज कर सकता है, क्योंकि वह इस द्वीप का मुद्दा उठाती रही है और इस चुनाव में वह उसी कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में है। प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार सुबह एक्स पर पोस्ट लिखा- 'आंखें खोलने वाली और चौंका देने वाली खबर, नए तथ्यों से पता चलता है कि कैसे कांग्रेस ने बेरहमी से कच्चाथीवू को छोड़ दिया।इससे हर भारतीय नाराज है और लोगों के मन में यह बात बैठ गई है कि हम कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं कर सकते। भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना 75 वर्षों से कांग्रेस का काम करने का तरीका रहा है।'
कहां है यह द्वीप?
दरअसल, एक रिपोर्ट के माध्यम से सामने आया है कि यह द्वीप रामेश्वरम से करीब 19 किलोमीटर दूर है। आजादी के बाद भी यह द्वीप भारत का हिस्सा था, लेकिन श्रीलंका इस पर लगातार अपना दावा ठोक रहा था। 1974 में दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर दो बैठकें हुईं, जिसके बाद भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के बीच समझौता हुआ, जिसके तहत कच्चाथीवू द्वीप औपचारिक रूप से श्रीलंका को सौंप दिया गया।इस मुद्दे को अप्रासंगिक बताकर खारिज किया गया
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 1961 में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी इस मुद्दे को अप्रासंगिक बताकर खारिज कर दिया था। उन्होंने लिखित बयान दिया था कि मैं इस द्वीप पर दावे को छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाऊंगा। मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और मुझे इस पर अपने दावे को छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी। मुझे यह पसंद नहीं है कि यह विवाद अनिश्चितकाल तक बना रहे और संसद में फिर से उठाया जाए।
गौरतलब है कि इंदिरा गांधी के निर्णय का विरोध तमिलनाडु में होता रहा, क्योंकि यह तमिलनाडु और सटे राज्यों के मछुआरों के अधिकारों पर बड़ा कुठाराघात था।