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'चीता हमारे मेहमान, नई जगह से अनजान... देखने के लिए रखें धैर्य'; कूनो नेशनल पार्क में चीतों को छोड़ने के बाद बोले PM

पीएम मोदी ने कूनो नेशनल पार्क में आठ चीतों को छोड़ा। पीएम ने कहा कि आज ये चीते मेहमान बनकर आए हैं इस क्षेत्र से अनजान हैं। कूनो नेशनल पार्क को ये चीते अपना घर बना पाएं इसके लिए हमें इन चीतों को भी कुछ महीने का समय देना होगा।

By Manish NegiEdited By: Updated: Sat, 17 Sep 2022 12:32 PM (IST)
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कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए 8 चीता (फोटो- ट्विटर)

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। भारत के लिए आज का दिन खास है। नामीबिया के जिन 8 चीतों का इंतजार पूरा देश कर रहा था, वो अब खत्म हो गया है। पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में इन 8 चीतों को छोड़ दिया है। कुछ महीनों बाद अब लोग नेशनल पार्क में चीतों का दीदार कर सकेंगे।

चीतों को छोड़े जाने के बाद पीएम ने देशवासियों को संबोधित भी किया। मोदी ने कहा कि मैं हमारे मित्र देश नामीबिया और वहां की सरकार का भी धन्यवाद करता हूं जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर वापस लौटे हैं। ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। आज आजादी के अमृतकाल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है।

प्रयावरण का संरक्षण तो भविष्य सुरक्षित- मोदी

मोदी ने कहा कि जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित होता है। विकास और समृद्धि के रास्ते भी खुलते हैं। कूनो नेशनल पार्क में जब चीता फिर से दौड़ेंगे, तो यहां का ग्रासलैंड इकोसिस्टम फिर से रिस्टोर होगा, जैव विविधता और बढ़ेगी।

कुछ महीनों का करना होगा इंतजार- मोदी

पीएम ने कहा कि कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीतों को देखने के लिए देशवासियों को कुछ महीने का धैर्य दिखाना होगा, इंतजार करना होगा। आज ये चीते मेहमान बनकर आए हैं, इस क्षेत्र से अनजान हैं। कूनो नेशनल पार्क को ये चीते अपना घर बना पाएं, इसके लिए हमें इन चीतों को भी कुछ महीने का समय देना होगा। अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइन्स पर चलते हुए भारत इन चीतों को बसाने की पूरी कोशिश कर रहा है।

'भारत ने कर दिखाया'

पीएम ने आगे कहा, 'पर्यावरण की रक्षा के साथ ही, देश की प्रगति भी हो सकती है, ये भारत ने दुनिया को करके दिखाया है। हमारे यहां एशियाई शेरों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ है। इसी तरह, आज गुजरात देश में एशियाई शेरों का बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है। इसके पीछे दशकों की मेहनत, रिसर्च आधारित नीतियां और जन-भागीदारी की बड़ी भूमिका है। टाइगर्स की संख्या को दोगुना करने का जो लक्ष्य तय किया गया था उसे समय से पहले हासिल किया है। असम में एक समय एक सींग वाले गैंडों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा था, लेकिन आज उनकी भी संख्या में वृद्धि हुई है। हाथियों की संख्या भी पिछले वर्षों में बढ़कर 30 हजार से ज्यादा हो गई है।'

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