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Gujarat Anti Terror Law: 16 साल बाद मिली राष्ट्रपति की मंजूरी, संगठित अपराधों पर लगेगी लगाम

Gujarat Anti Terror Law मकोका की तर्ज पर जून 2004 में गुजरात के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह ने गुजरात कंट्रोल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम बिल पेश किया था।

By Bhupendra SinghEdited By: Updated: Tue, 05 Nov 2019 09:55 PM (IST)
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Gujarat Anti Terror Law: 16 साल बाद मिली राष्ट्रपति की मंजूरी, संगठित अपराधों पर लगेगी लगाम
जागरण संवाददाता, अहमदाबाद। आतंकवाद और संगठित अपराध पर नकेल कसने के लिए बनाए गए बहुचर्चित गुजरात आतंकवाद नियंत्रण एवं संगठित अपराध अधिनियम (गुजटोक या Gujarat Anti Terror Law) को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी है। इस कानून को 16 साल बाद मंजूरी मिली है। यह कानून आतंकवाद के साथ शराब की तस्करी, फिरौती, जालसाजी जैसे संगठित अपराधों पर शिकंजा कसेगा। इस कानून की खास बात है कि टेलीफोन पर की गई बातचीत के रिकॉर्ड को वैधानिक साक्ष्य माना जाएगा।

राज्य में विशेष अदालतों का गठन होगा

गृह राज्यमंत्री प्रदीपसिंह जाडेजा ने बताया कि अधिनियम को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने से गुजरात जैसे सीमावर्ती राज्य की सुरक्षा और अपराध की जांच के लिए पुलिस को अधिक अधिकार और समय मिल सकेगा। राज्य सरकार विशेष अदालतों का गठन करेगी, अन्यथा डिविजन सेशन कोर्ट में मामला चल सकेगा। सरकार अतिरिक्त सरकारी वकील व लोक अभियोजकों की नियुक्ति कर सकेगी।

2004 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते मोदी लाए थे विधेयक

पहले इस अधिनियम का नाम गुजरात संगठित अपराध नियंत्रण कानून था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते राज्य के नागरिकों की सुरक्षा के लिए इस कानून का मसौदा तैयार किया था। राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए यह विधेयक 2004 से लंबित था। 2015 में राज्य सरकार ने गुजरात आतंकवाद नियंत्रण एवं संगठित अपराध अधिनियम नाम से नया विधेयक विधानसभा से पारित कराया। हालांकि, पुलिस को टेलीफोन पर बातचीत टेप करने और उसे कोर्ट में साक्ष्य के तौर पर पेश करने का विवादास्पद प्रावधान नए बिल में भी कायम रखा गया।

आतंकवाद और संगठित अपराधों पर लगेगी लगाम

जाडेजा ने बताया कि इस कानून से आतंकवाद के साथ सुपारी देकर हत्या कराने, मादक पदार्थो की तस्करी, फिरौती वसूलने, प्रतिबंधित माल की हेराफेरी, अपहरण, जालसाजी वाली योजनाओं व मल्टी लेवल मार्केटिंग पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

पुलिस अधिकारी के समक्ष दिया गया बयान सुबूत के रूप में मान्य होगा

इस कानून के तहत पुलिस अधिकारी के समक्ष दिया गया बयान सुबूत के रूप में मान्य होगा। साथ ही पुलिस को आरोपपत्र पेश करने के लिए छह माह का समय मिलेगा। अन्य अपराध में चार्जशीट 90 दिन में पेश करनी होती है।

कई बार लौटाया गया विधेयक

महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) की तर्ज पर जून 2004 में गुजरात के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह ने गुजरात कंट्रोल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम बिल पेश किया था। राष्ट्रपति और राज्यपालों ने इस कानून को कई बार संशोधन के लिए वापस लौटाया। कांग्रेस ने इसकी जरूरत पर ही यह कहते हुए सवाल उठा दिया था कि इसका अल्पसंख्यकों के खिलाफ दुरुपयोग होगा। राज्यपाल नवल किशोर शर्मा और डॉ. कमला बेनीवाल के कार्यकाल में यह काफी विवादास्पद बना रहा। राज्यपाल ओपी कोहली ने 2015 में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा था।