कर्नाटक में भी प्रधानमंत्री को दोहराना पड़ेगा हिमाचल, खेमेबाजी और बगावत को थामने के लिए पीएम मोदी का इंतजार
यूं तो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पार्टी के प्रदेश नेताओं को आगाह कर चुके हैं कि चुनाव जिताने की पूरी निर्भरता उन पर न डालें। खुद जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए माहौल तैयार करें। लेकिन यह होता नहीं दिख रहा है...
By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Wed, 09 Nov 2022 08:40 PM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। यूं तो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पार्टी के प्रदेश नेताओं को आगाह कर चुके हैं कि चुनाव जिताने की पूरी निर्भरता उन पर न डालें। खुद जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए माहौल तैयार करें। लेकिन यह होता नहीं दिख रहा है। अगले कुछ दिनों में चुनाव में जा रहे हिमाचल प्रदेश में स्थितियां तब बदलनी शुरू हुई हैं, जब पीएम मोदी ने चुनावी अभियान के साथ साथ बागियों को थामने की कमान अपने हाथ ली।
भाजपा को मिला बागी नेताओं का साथ
बताया जा रहा है कि बागी नेताओं ने पार्टी के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया है। वहीं, अगले चार पांच महीने में कर्नाटक में भी पार्टी नेता प्रधानमंत्री से ही आस लगाए बैठे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता है और अंतिम क्षणों में वोटरों का रुझान बदलने की क्षमता रखते हैं यह कई चुनावों में दिख चुका है। लेकिन हिमाचल में जिस तरह उन्हें बागियों को समझाकर पार्टी की लाइन पर लाना पड़ा वह पार्टी के लिए चिंता का विषय है।
प्रधानमंत्री की रैलियों से बढ़ा जनता का विश्वास
ऐसा माना जा रहा है कि एक तरफ जहां बागी नेताओं को साधा गया है कि वहीं, प्रधानमंत्री की रैलियों के बाद जनता का विश्वास बढ़ा है। अब प्रदेश के पार्टी नेता थोड़े आश्वस्त हो रहे हैऔर बुधवार के चुनावी अभियान के बाद बढ़त की ओर जाने का दावा कर रहे हैं। पर यह हाल केवल हिमाचल का नहीं है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, कर्नाटक में वापसी का दारोमदार भी पीएम पर ही होगा। वहां खेमेबाज और बयानबाज नेताओं की फौज है। प्रदेश सरकार के अंदर ऐसे मंत्री भी हैं, जो अपनी ही सरकार की आलोचना करते हैं।कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति मजबूत
खासबात यह है कि कर्नाटक अकेला ऐसा राज्य है, जहां कांग्रेस मजबूत है और भाजपा की आंतरिक खामियों और खींचतान की वजह से ज्यादा मजबूत होती जा रही है। प्रदेश कांग्रेस की ओर से सीधे तौर पर मुख्यमंत्री को निशाना बनाया जा रहा है और पेसीएम जैसा अभियान छेड़ा गया है। हालात कुछ ऐसे हैं कि कुछ विधायक और नेता केंद्रीय नेतृत्व के संकेतों को भी समझने से इनकार करते हैं।