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संविधान की प्रस्तावना में संशोधन का निजी विधेयक रिजर्व, केजे अलफांस ने 'सोशलिस्ट' शब्द को 'इक्वीटेबल' करने का दिया प्रस्ताव

संविधान (संशोधन) विधेयक 2021 (प्रस्तावना में संशोधन) को भाजपा सदस्य केजे अलफांस ने पेश किया। इस निजी विधेयक को चर्चा के लिए मंजूर किए जाने को लेकर सदन में हां और ना के लिए उपसभापति हरिवंश ने घोषणा की।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Updated: Fri, 03 Dec 2021 11:18 PM (IST)
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कड़े विरोध के बाद भाजपा सदस्य का निजी विधेयक फिलहाल रोका गया
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राज्यसभा में भाजपा सदस्य के संविधान संशोधन संबंधी निजी विधेयक को लेकर विपक्ष के कड़े विरोध को देखते हुए उसे रिजर्व करना पड़ा। प्रस्तुत किए गए निजी विधेयक में संविधान की प्रस्तावना में शामिल किए गए 'सोशलिस्ट' (समाजवादी) शब्द को संशोधित कर 'इक्वीटेबल' (समतामूलक) करने का प्रस्ताव है। आमतौर पर निजी विधेयकों के पेश करने को लेकर इस तरह के विरोध कम ही होते हैं। लेकिन संविधान की प्रस्तावना के शब्दों के संशोधन को लेकर आए इस प्रस्ताव पर विपक्ष ने पेश करने पर ही आपत्ति उठा दी।

संविधान (संशोधन) विधेयक 2021 (प्रस्तावना में संशोधन) को भाजपा सदस्य केजे अलफांस ने पेश किया। इस निजी विधेयक को चर्चा के लिए मंजूर किए जाने को लेकर सदन में 'हां' और 'ना' के लिए उपसभापति हरिवंश ने घोषणा की। इसी बीच राजद सदस्य मनोज झा ने आपत्ति दर्ज कराते हुए 'ना' वालों की संख्या अधिक होने की बात कही। उपसभापति ने झा से उनकी आपत्तियां जाननी चाही, जिस पर मनोज झा समेत कई विपक्षी सदस्यों ने कहा कि यह निजी विधेयक संविधान की प्रस्तावना में संशोधन की बात करता है, जो उचित नहीं है। लेकिन उपसभापति ने स्पष्ट किया कि सदन में विधेयक पेश करने का हर सदस्य को अधिकार है। विधेयक का विरोध करने का सदस्यों को अधिकार है।

मनोज झा ने नियमों का हवाला देकर इसे रोकने को कहा

एमडीएमके सदस्य वाईको ने इसे अति गंभीर मसला करार देते हुए कहा कि आपको इस तरह के विधेयक को पेश करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। सदन में हो रहे शोर शराबा के बीच अल्फांस अपनी बात रखने की मांग करते रहे। सदन में तिरुचि सिवा, वाईको, मनोज झा समेत विपक्षी दलों के सदस्यों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि विधेयक को पेश करने देने का अधिकार चेयर को है न कि राज्यसभा सचिवालय को। मनोज झा ने नियमों का हवाला देकर इसे रोकने को कहा। उन्होंने कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है। संविधान में इस तरह के संशोधन के लिए राष्ट्रपति की अनुमति लेनी जरूरी है। लेकिन उपसभापति ने उनकी इस बात को खारिज करते हुए कहा कि यह सदन का अधिकार है। इसके लिए राष्ट्रपति की पहले से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

मामला गंभीर होते देख सदन में संसदीय कार्य राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने सुझाव रखा, जिसे स्वीकार करते हुए विधेयक को रिजर्व कर लिया गया। विधेयक की मेरिट को देखते हुए इसे बाद में मंजूर किया जा सकता है। उपसभापति हरिवंश ने व्यवस्था देते हुए कहा कि सदन की अगर यही राय है तो इसे रिजर्व करते हुए इस पर बाद में फैसला लिया जाएगा।