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राजस्थान के उथल-पुथल का मुद्दा ठंडा पड़ना अशोक गहलोत के प्रति हाईकमान की नरमी का संकेत, अब आगे क्‍या..?

राजस्थान के उथल-पुथल के मुद्दे का ठंडा पड़ना अशोक गहलोत के प्रति हाईकमान की नरमी का संकेत माना जा रहा है। सूत्रों की मानें तो नए कांग्रेस अध्यक्ष के कमान थामने के बाद ही अब विधायकों के विद्रोह प्रकरण का निस्‍तारण होगा।

By Jagran NewsEdited By: Krishna Bihari SinghUpdated: Fri, 14 Oct 2022 07:18 PM (IST)
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राजस्थान में सियासी उथल-पुथल का मसला अब ठंड़ा पड़ता नजर आ रहा है।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष के अगले सोमवार को होने वाले चुनाव के बीच पार्टी के सियासी गलियारों में राजस्थान की राजनीति में हुए उथल-पुथल का मुद्दा ठंड़ा पड़ता नजर आ रहा है। संकेतों से साफ है कि अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी चुनाव के इस मोड़ पर कोई फैसला नहीं लेंगी। पार्टी हाईकमान के इन संकेतों को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए राहतकारी ही नहीं नेतृत्व के नरम पड़ने के संकेतों के रूप में भी देखा जा रहा है। 19 अक्टूबर को कांग्रेस के नए अध्यक्ष के नतीजों की घोषणा हो जाएगी। ऐसे में साफ है कि राजस्थान में पार्टी विधायकों के विद्रोह से पैदा हुए विवाद का पूरी तरह पटाक्षेप नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के कमान संभालने के बाद ही होगा।

गहलोत के प्रति नरमी के संकेत

राजस्थान के अंदरूनी उठापटक की सियासी तपिश थमने और हाईकमान की गहलोत के प्रति नाराजगी नरम पड़ने का संकेत इस बात से भी मिलता है कि नेतृत्व परिवर्तन जैसी अटकलों पर पार्टी में आधिकारिक और अनौपचारिक तौर पर चुप्पी के जरिए विराम लगा दिया गया जबकि गहलोत की सोनिया गांधी से 29 सितंबर को हुई मुलाकात के बाद कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने 48 घंटे में ही राजस्थान के नेतृत्व को लेकर फैसला किए जाने की घोषणा कर दी थी।

गहलोत के साथ गांधी परिवार के रिश्‍ते कायम

अब यह घोषणा बीते वक्त बात हो चुकी है और इस बारे में एआइसीसी से जुड़े सूत्रों ने कहा कि संगठन महासचिव के एलान के बावजूद कदम नहीं उठाया जाना हाईकमान के इशारे के बिना संभव नहीं है। यह इसका भी संकेत है कि गहलोत के साथ गांधी परिवार के रिश्तों की गहराई इस विवाद के बावजूद झोंके से हिली नहीं है। गांधी परिवार की पहली पसंद होने के बावजूद गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष पद की दावेदारी से हटने के घटनाक्रमों ने तात्कालिक तौर पर नेतृत्व को चाहे असहज किया मगर गहलोत के प्रति भरोसा टूटा नहीं है।

सोनिया गांधी ही करेंगी अंतिम फैसला

मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन में अशोक गहलोत के प्रस्ताव बनने को इसका प्रमाण बताते हुए पार्टी सूत्रों ने कहा कि सोनिया गांधी की नाराजगी गहरी होती तो गहलोत प्रस्तावक नहीं बनाए जाते। वैसे गहलोत ने सोनिया गांधी के साथ 29 सितंबर को हुई बैठक के बाद खुद भी ऐलान कर दिया था कि गांधी परिवार के प्रति उनकी निष्ठा असंदिग्ध है और उनके मुख्यमंत्री बने रहने पर कोई भी फैसला सोनिया गांधी ही करेंगी।

गहलोत की माफी ने निभाई अहम भूमिका 

गहलोत ने परिवार के साथ दशकों पुराने अपने रिश्तों की गहराई को देखते हुए सोनिया गांधी से माफी मांगते हुए इस तरह का बयान देने का जोखिम उठाया। पार्टी सूत्रों का कहना है कि गहलोत के इस बयान ने भी नेतृत्व की राजस्थान प्रकरण को लेकर पैदा हुई नाराजगी को थामने में अहम भूमिका निभाई है।

कायम रही गांधी परिवार के प्रति निष्‍ठा

वैसे बीते कई वर्षों से कांग्रेस के अंदरूनी संकट के दौरान गांधी परिवार पर पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की ओर से किए गए हमलों के दौरान गहलोत खुले तौर पर सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ ही नजर आए। असंतुष्ट जी 23 नेताओं का गांधी परिवार के खिलाफ बवंडर हो या हाल ही में पार्टी छोड़ने वाले दिग्गज गुलाम नबी आजाद का राहुल गांधी पर बेहद कड़वा निजी हमला... इन सभी मौकों पर गहलोत ने गांधी परिवार के बचाव में उतरते हुए अपने साथी नेताओं पर जवाबी हमला करने में हिचक नहीं दिखाई।

मुख्य संकटमोचक की भूमिका निभाते आ रहे गहलोत

कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सलाहकार रहे दिग्गज रणनीतिकार अहमद पटेल के निधन के बाद गांधी परिवार के भरोसे की वजह से ही गहलोत पार्टी के मुख्य संकटमोचक की भूमिका निभाते आ रहे हैं। शायद यही वजह है कि पार्टी हाईकमान की ओर से गहलोत समर्थक विधायकों को जारी किए गए अनुशासनात्मक नोटिस पर आए उनके जवाब के बाद नरम रूख अपनाए जाने के संकेत हैं। वैसे कांग्रेस के नए अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा के लिए 19 अक्टूबर को दिल्ली आ रहे गहलोत की सोनिया गांधी से भी मुलाकात की संभावनाएं हैं।  

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