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Rajya Sabha Election 2022: कांग्रेस के लिए कड़वे रहे राज्यसभा चुनाव के नतीजे; मिला बड़ा सबक, जानें विश्‍लेषकों की राय

Rajya Sabha Election 2022 राज्यसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए कड़वे नजर आ रहे हैं। इन नतीजों ने पार्टी में एकजुटता सुनिश्चित करने का सबक देने का काम किया है। जानें कांग्रेस को लेकर क्‍या है राजनीतिक विश्‍लेषकों की राय...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Sun, 12 Jun 2022 02:42 AM (IST)
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राज्यसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए बेहद कड़वे रहे हैं।
नई दिल्‍ली, पीटीआइ। राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha Election 2022) के नतीजे कांग्रेस के लिए बेहद कड़वे रहे हैं। ऐसे में जब कांग्रेस 2024 की तैयारियों को अंजाम देने के लिए आगे बढ़ रही है इन नतीजों ने पार्टी में एकजुटता सुनिश्चित करने का सबक देने का काम किया है। विश्लेषकों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व को अब अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की दरकार है जिसके सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे। जानें इन चुनाव नतीजों पर क्‍या है विश्‍लेषकों की राय... 

हरियाणा और राजस्‍थान में कुशल प्रबंधन की थी दरकार 

राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने चार में से तीन सीटों पर जीत दर्ज की जबकि हरियाणा में उसे एक झटका लगा। हरियाणा में अजय माकन भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा से हार गए। कुछ विश्लेषकों ने बताया कि हरियाणा के नतीजे भूपिंदर सिंह हुड्डा जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों के लिए प्रतिकूल साबित हो सकते हैं। ऐसे में जब बाहरी उम्‍मीदवारों को उतारा गया तो इस पर गांधी परिवार की ओर से कुशल प्रबंधन की दरकार थी।

हरियाणा में एकता की कमी

कांग्रेस के हरियाणा विधायक और अधिकृत पोलिंग एजेंट बीबी बत्रा ने कहा कि पार्टी के एक विधायक का वोट अवैध घोषित किया गया जबकि पार्टी विधायक कुलदीप बिश्नोई ने निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा को क्रास वोट दिया। हरियाणा में नेताओं की एकता की कमी पार्टी की हार का कारण बनती नजर आ रही है। मतदान के बाद बिश्नोई ने ट्वीट कर कहा कि फन कुचलने का हुनर आता है मुझे, सांप के खौफ से जंगल नही छोड़ा करते... केंद्रीय कांग्रेस नेतृत्व बिश्नोई का दिल नहीं जीत पाया।

हरियाणा में पार्टी की फूट उसकी हार की वजह बनी

एक ओर जहां हरियाणा में पार्टी की फूट उसकी हार की वजह बनी वहीं दूसरी ओर राजस्थान में कहानी पूरी तरह से अलग थी, जिसमें गुट-ग्रस्त राज्य इकाई ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमे दोनों के साथ दुर्लभ एकता दिखाई। इस कवायद ने चुनावों में सफलता सुनिश्चित की। हालांकि '24 अकबर रोड' और 'सोनिया: ए बायोग्राफी' के लेखक रशीद किदवई कहते हैं कि इस चुनाव में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का व्यावहारिक दृष्टिकोण नजर नहीं आया।

क्षेत्रीय क्षत्रपों पर निर्भरता से बढ़ेगी जटिलता

किदवई ने कहा- इन चुनावों में कांग्रेस ने क्षेत्रीय क्षत्रपों (हरियाणा में भूपिंदर हुड्डा या राजस्थान में अशोक गहलोत) पर दारोमदार डाला जबकि पूरी राजनीतिक प्रबंधन को केंद्रीय नेतृत्व की ओर से नियंत्रित किया जाना चाहिए था। पूरी चुनाव में केंद्रीय नेतृत्‍व की भूमिका गायब थी। क्षेत्रीय क्षत्रपों पर अधिक निर्भरता चीजों को जटिल कर रही है क्योंकि अब शीर्ष नेतृत्व पर पायलट खेमे पर दबाव डालने का दबाव होगा।

चुनावों में जरूरी 'कमांड' खो रही कांग्रेस

किदवई ने सवाल किया कि हरियाणा में मिली विफलता की जिम्‍मेदारी अब कौन लेगा क्‍योंकि केंद्रीय नेतृत्व को हरियाणा की स्थिति को सूक्ष्म रूप से प्रबंधित करना चाहिए था जो उसने नहीं किया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के राजनीतिक अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफेसर मनिंद्र नाथ ठाकुर ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए। उन्‍होंने कहा कि कांग्रेस इस तरह के चुनावों में जरूरी 'कमांड' खो रही है। यह कांग्रेस के लिए संकट की घड़ी है। मौजूदा वक्‍त में उसे दिखाना होगा कि वह अभी बाहर नहीं हुई है।

परीक्षा में पास हुए गहलोत 

वहीं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और राजनीतिक टिप्पणीकार संजय के. पांडे (Sanjay K Pandey) ने कहा कि क्षत्रपों पर भरोसा करने की कांग्रेस की रणनीति को गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि गहलोत ने अपने राजनीतिक रूप से चतुर कदमों से दिखा दिया है कि सफलता हासिल की जा सकती है। गहलोत न केवल अपने समर्थक विधायकों को एक साथ रखने में कामयाब रहे वरन भाजपा की कोशिशों को विफल भी किया। यानी एकजुटता बनाए रखना भी बड़ा सबक है जिस पर कांग्रेस को गौर करना चाहिए।