Resort Politics: 27 साल पहले गुजरात में हुआ था महाराष्ट्र जैसा विद्रोह, बागी विधायकों संग रात में ऐसे उतरा था प्लेन
History of Resort Politics तोड़फोड़ के लिए बागी विधायकों को शिफ्ट करने का एक दिलचस्प वाकया 1995 का है। जब बागी विधायकों को रातोंरात एमपी ले जाने के लिए पंक्चर प्लेन सही कराया गया। एमपी में जिस एयरपोर्ट पर उतारा गया वहां नाइट लैडिंग की व्यवस्था भी नहीं थी।
By Amit SinghEdited By: Updated: Thu, 30 Jun 2022 12:42 AM (IST)
नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क। महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट (Maharashtra Political Crisis) ने रिजॉर्ट पॉलिटिक्स से जुड़े इतिहास के कई रोचक पन्ने पलट दिये हैं। ऐसा ही एक रोचक मामला है बागी विधायकों को रातोंरात एक राज्य से दूसरे राज्य में शिफ्ट करने का। इन बागी विधायकों को जिस चार्टर्ड प्लेन से ले जाना था, वो एयरपोर्ट पर पंचर खड़ा था। बागी विधायकों को ले जाने के लिए तुरंत इसका टायर बदलवाया गया। इस प्लेन को रातोंरात जिस एयरपोर्ट पर उतरना था, वहां नाइट लैंडिंग की व्यवस्था भी नहीं थी। फिर भी ये विधायक वहां पहुंचाए गए। इन बागी विधायकों के एयरपोर्ट तक पहुंचने का वाक्या भी काफी दिलचस्प है।
विधायकों की बगावत का ये दिलचस्प मामला गुजरात (Gujarat) का है। वर्ष 1995 में भाजपा ने पहली बार राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। इस चुनाव में भाजपा ने 182 में से 121 सीटों पर जीत दर्ज की थी। केशुभाई पटेल (Keshubhai Patel) को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान सौंपी गई।उस वक्त राज्य में भाजपा के दो कद्दावर नेता थे, शंकर सिंह वाघेला (Shankersinh Vaghela) और केशुभाई पटेल। वाघेला को उम्मीद थी कि सीएम की कुर्सी उन्हें मिलेगी। उम्मीद टूटने के साथ उनका पार्टी से मोहभंग हो गया। कैबिनेट में भी वाघेला के करीबी नेताओं को जगह नहीं मिली। लिहाजा वह इतने नाराज हुए कि उन्होंने अपनी ही पार्टी से बदला लेने की ठान ली। इसके लिए उन्हें एक अच्छे मौके की तलाश थी।
सितंबर 1995 में मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल अमेरिका दौरे पर रवाना हुए। इससे ठीक पहले उन्होंने राज्य के कई बोर्ड और कॉरपोरेशन में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तिया की थीं। इसमें भी वाघेला खेमे के नेताओं को नजरअंदाज किया गया। इन नियुक्तियों ने वाघेला खेमे के असंतुष्ट विधायकों को बगावत करने के लिए उकसा दिया। इधर केशुभाई पटेल अमेरिका रवाना हुए, उधर वाघेला खेमे के 44 विधायकों ने आत्माराम पटेल के नेतृत्व में बगावत कर दी। बागी विधायकों ने केशुभाई सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए राज्यपाल को पत्र लिखा। राज्यपाल ने 05 अक्टूबर 1995 को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट की तिथि निर्धारित की।
शंकर सिंह वाघेला को पता था कि तख्ता पलट के लिए फ्लोर टेस्ट से पहले बागी विधायकों को हर हाल में सुरक्षित रखना होगा। वाघेला जानते थे कि ये इतना आसान नहीं है। बागी विधायकों को पहले वाघेला के पैतृक गांव वासन ले जाया गया। यहां कुछ बागी विधायक, वाघेला खेमे से छिटकर निकलने में कामयाब हो गए। इसके बाद बचे बागी विधायकों को गांधीनगर के मनसा ब्लॉक स्थित चर्दा गांव में एक कांग्रेस समर्थक के फार्म हाउस ले जाया गया। यहां बागी विधायकों को छुड़ाने के लिए, भाजपा समर्थकों की भीड़ उमड़ पड़ी। इसका फायदा उठाकर कुछ और बागी विधायक यहां से निकल गए।
वाघेला समझ चुके थे कि गुजरात में बागी विधायकों को सुरक्षित और एकजुट रख पाना संभव नहीं है। लिहाजा उन्होंने इन्हें तुरंत किसी दूसरे राज्य में ले जाने का फैसला लिया। उन्होंने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से बात की। दिग्विजय सिंह, गुजरात की भाजपा सरकार गिराने के लिए इतने आतुर थे कि शंकर सिंह वाघेला की बात तुरंत मान गए। उन्होंने वाघेला से कहा 'मध्य प्रदेश चले आइये, खजुराहो में ठहरने का सारा इंतजाम कर दिया जाएगा।' इस तरह पहली बार बागी विधायकों को राज्य के बाहर ले जाने और रिजॉर्ट पॉलिटिक्स का सिलसिला शुरू हुआ।
इसके बाद भी वाघेला के सामने चुनौती थी कि बागी विधायकों को फार्म हाउस के बाहर जमा भीड़ से बचाकर निकालने की। वाघेला के निजी सहायक ब्रह्मदत्त ने राज्यपाल को फोन कर विधायकों के लिए सुरक्षा मांगी। राज्यपाल के निर्देश पर तत्काल पुलिस सुरक्षा उपलब्ध हो गई। इसके बाद बागी विधायकों को एक बस में बैठाकर भारी पुलिस सुरक्षा के साथ फार्म हाउस से निकाला गया। बागी विधायकों और पुलिस को बताया गया कि उन्हें राज्यपाल के पास जाना है। बागी विधायकों का काफिला जैसे ही वासन गांव पहुंचा, वाघेला भी इसमें शामिल हो गए। काफिला जब राज्यपाल निवास (राजभवन) पहुंचा, पुलिस को बताया गया कि राज्यपाल से मुलाकात का समय बीत चुका है। लिहाजा बागी विधायकों को एयरपोर्ट के करीब ताज होटल ले जाना होगा।
बागी विधायकों का काफिला जैसे ही ताज होटल पहुंचा, वाघेला ने काफिले को एयरपोर्ट ले जाने को कहा। उन्होंने कहा कि विधायकों को कुछ जरूरी औपचारिकताओं के लिए तत्काल दिल्ली जाना पड़ेगा। किसी तरह विधायक एयरपोर्ट पहुंचे, लेकिन वाघेला की चुनौतियां यहीं खत्म नहीं हुईं। जिस चार्टर्ड प्लेन से विधायकों को ले जाया जाना था, उसका टायर पंक्चर था। टायर बदल प्लेन को उड़ान के लिए तैयार करने में काफी वक्त लगा और तब तक अंधेरा हो चुका था। प्लेन को जिस खजुराहो एयरपोर्ट (Khajuraho Airport) पर उतरना था, वहां नाइट लैडिंग की व्यवस्था नहीं थी। उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। वाघेला ने तत्कालीन उड्डयन मंत्री (Aviation Minister) से खजुराहो एयरपोर्ट पर नाइट लैडिंग के लिए तत्काल जरूरी लाइटिंग कराने को कहा। उड्डयन मंत्री ने तुरंत जरूरी लाइटिंग करा दी। इसके बाद बागी विधायकों का प्लेन गुजरात से मध्य प्रदेश के खजुराहो एयरपोर्ट पहुंचा। तब तक बागी विधायकों को भी यही पता था कि वह दिल्ली जा रहे हैं। केवल प्लेन के पायलट और वाघेला के निजी सहायक ब्रहमदत्त जानते थे कि प्लेन कहां उतरने वाला है।
जब बागी विधायक भाजपा की पहुंच से दूर, दूसरे राज्य में पहुंच गए, वाघेला ने शीर्ष नेतृत्व से गुजरात सरकार बचाने के लिए मोलभाव शुरू कर दिया। पार्टी मुखिया अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने पटेल और वाघेला की जगह सुरेश मेहता को मुख्यमंत्री बना दिया। 20 सितंबर 1995 को केशुभाई की जगह सुरेश मेहता गुजरात के मुख्यमंत्री बन गए। इसके साथ ही वाघेला खेमे के कुछ नेताओं को कैबिनेट में जगह भी मिल गई। बावजूद वाघेला समर्थकों और पार्टी के दूसरे धड़े के बीच तनाव जारी रहा।
इस खींचतान के बीच 1996 के लोकसभा चुनावों में पहली बार भाजपा ने सर्वाधिक सीटें जीतीं और अटल बिहारी प्रधानमंत्री बने। अहमदाबाद स्टेडियम में उनके सम्मान में कार्यक्रम आयोजित हुआ। कार्यक्रम के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने वाघेला समर्थकों पर हमला कर दिया। वरिष्ठ नेता दत्ताजी चिरंदास और आत्माराम पटेल को अहमदाबाद में भारी विरोध झेलना पड़ा।कुछ समय बाद वाघेला ने राष्ट्रीय जनता पार्टी (RJP) नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के तत्कालीन राज्यपाल और कांग्रेस के ही तत्कालीन डिप्टी स्पीकर की मदद से सुरेश मेहता के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार गिरा खुद मुख्यमंत्री बन गए। वर्ष 1998 में उन्होंने कांग्रेस में पार्टी का विलय कर दिया।
कांग्रेस ने बाद में वाघेला को राज्य का प्रभारी और विपक्ष का नेता बनाया, फिर भी पार्टी के अंदर उनकी मान्यता बाहरी नेता के तौर पर ही रही। 2017 राज्यसभा चुनाव में उन्होंने कुछ अन्य विधायकों के साथ कांग्रेस प्रत्याशी की जगह भाजपा उम्मीदवार को वोट दिया। जुलाई 2017 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने जन विकल्प मोर्चा बनाया। जनवरी 2019 में वह एनसीपी में शामिल हुए। 22 जून 2020 को उन्होंने एनसीपी भी छोड़ दी।