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भारत तटस्थ नीति पर कायम, मानवीय संकट पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में यूक्रेन की ओर से लाए गए प्रस्‍ताव पर भी रहा अनुपस्थित

संयुक्त राष्ट्र महासभा में मानवीय संकट के मसले पर यूक्रेन और उसके सहयोगियों की ओर से लाए गए प्रस्ताव से भी भारत ने दूरी बनाए रखी। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लिया।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Fri, 25 Mar 2022 08:22 AM (IST)
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भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में मानवीय संकट के मसले पर मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लिया। (Photo REUTERS)
नई दिल्‍ली, एजेंसियां। युद्ध के कारण यूक्रेन में पैदा हुए मानवीय संकट की स्थिति को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाए गए प्रस्ताव पर भारत गुरुवार को अनुपस्थित रहा। यह प्रस्‍ताव यूक्रेन और उसके सहयोगी देशों द्वारा लाया गया था। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस मसले पर मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लिया। हालांकि 193 सदस्यीय यूएनजीए में यह प्रस्‍ताव पास हो गया। यूक्रेन संकट पर यूएनजीए का यह 11वां आपातकालीन विशेष सत्र था। प्रस्ताव के पक्ष में 140 मत जबकि विरोध में पांच मत पड़े। वहीं 38 सदस्‍यों ने मतदान से परहेज किया।

रूस की ओर से लाए गए प्रस्‍ताव से भी रहा दूर  

यूक्रेन और उसके सहयोगी पश्चिमी देशों की ओर से युद्ध के मानवीय परिणाम के मसौदा प्रस्ताव पर यूएनजीए में मतदान हुआ। इस प्रस्ताव को 140 मतों के साथ मंजूर कर लिया गया। इससे पहले रूस की तरफ से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में लाए गए एक प्रस्ताव पर भी भारत वोटिंग से दूर रहा। भारत ने यूक्रेन-रूस के विवाद में अब तक तटस्थ रहने की अपनी नीति को जारी रखा है। यूक्रेन में मानवीय संकट पर रूस के प्रस्ताव पारित नहीं हो सका क्योंकि इसके लिए जरूरी नौ मत नहीं मिल सके।

चीन ने किया रूस का समर्थन

भारत परिषद के 12 अन्य देशों के साथ अनुपस्थित रहा, जबकि सिर्फ चीन ने ही रूस का समर्थन किया। प्रस्ताव स्वीकार होने के लिए जरूरी नौ वोट नहीं मिलने से रूस का प्रस्ताव गिर गया। उधर, राज्यसभा में यूक्रेन की स्थिति पर एक सवाल का जवाब देते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दो टूक कहा कि भारत की नीति शुरू से ही दृढ़ व तर्कसंगत है। भारत युद्ध खत्म करने और वार्ता से शांति स्थापित करने का पक्षधर रहा है।

रूस का आंख मूंद कर समर्थन नहीं

रूस की तरफ से लाए गए प्रस्ताव पर भारत ने बगैर कोई टिप्पणी किए अनुपस्थित रहने का फैसला किया जो यह भी बताता है कि वह रूस का आंख मूंद कर समर्थन नहीं कर रहा है। इस प्रस्ताव में रूस ने यूक्रेन पर किए गए हमले का कोई जिक्र नहीं किया था, लेकिन सभी पक्षों से आग्रह किया था कि वे यूक्रेन में फंसे हर नागरिक को सुरक्षित तरीके से बाहर निकालने में मदद करें और उन्हें सहूलियत पहुंचाएं।

रूस के प्रस्ताव पर अमेरिका की सख्‍त टिप्‍पणी

इसमें विदेशी नागरिकों, महिलाओं, बच्चों, लड़कियों, बीमार व्यक्तियों, बुजुर्गों आदि को युद्ध विराम में सुरक्षित बाहर निकालने का आग्रह भी था। अमेरिका ने रूस के इस प्रस्ताव पर काफी सख्त टिप्पणी की और कहा कि वह ऐसे किसी भी प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं करेगा जिसमें रूस को एक आक्रमण करने वाले देश के तौर पर चिह्नित नहीं किया जाए। भारत की इस वोटिंग में अनुपस्थित रहने की नीति उसकी यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से जारी नीति का ही हिस्सा है।

लगातार बिगड़ते हालात से चिंतित

विदेश मंत्री जयशंकर ने राज्यसभा में कहा कि हम शुरू से इस बात पर जोर दे रहे हैं कि इस पूरे विवाद के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों, संयुक्त राष्ट्र के नियमों और संबंधित देशों की भौगोलिक संप्रभुता व अखंडता को ध्यान में रखते हुए कोशिश की जानी चाहिए। हम यूक्रेन में हिंसा के लगातार बिगड़ते हालात से चिंतित हैं और इसे शीघ्र समाप्त करने की अपील करते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के रुख में भी इस नीति का पालन हो रहा है।

हिंसा को समाप्त करने की अपील

भारत सभी वैश्विक शक्तियों के साथ संपर्क में है और रूस व यूक्रेन के साथ भी उच्चस्तर पर संपर्क बनाकर रखा गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ अपनी वार्ता में शांति व बातचीत से मौजूदा हिंसा को समाप्त करने की अपील की। विदेश मंत्री ने कहा, 'यूक्रेन पर हमारा रुख बिल्कुल स्पष्ट है और यह छह सिद्धांतों पर आधारित है- हिंसा का तत्काल त्याग, वार्ता और कूटनीति पर वापसी, अंतरराष्ट्रीय कानून पर आधारित वैश्विक व्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र चार्टर, क्षेत्रीय संप्रभुता और मानवीय पहुंच।'

बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव से जोड़कर देखा जा रहा जयशंकर का बयान

संसद में विदेश मंत्री के इस बयान और यूएनएससी में रूस के प्रस्ताव पर भारत की अनुपस्थिति को पश्चिमी देशों की तरफ से भारत पर बढ़ रहे दबाव से जोड़कर देखा जा रहा है। पिछले एक हफ्ते के भीतर जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्काट मारीसन प्रधानमंत्री मोदी के साथ शिखर वार्ता में सीधे तौर पर यूक्रेन पर हमले के लिए रूस को दोषी ठहरा चुके हैं। ब्रिटेन की तरफ से भी दवाब बनाया जा रहा है। 

अमेरिका भेजे गए हर्ष श्रृंगला 

यही नहीं अमेरिकी राष्ट्रपति भारत की नीति को ढुलमुल करार दे चुके हैं। एक दिन पहले ग्रीस के विदेश मंत्री जब नई दिल्ली में थे, तभी उनकी यूक्रेन के विदेश मंत्री के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत को भी भारत पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर ही देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि बढ़ रहे दबाव पर अमेरिका और दूसरे देशों के साथ बातचीत करने के लिए ही विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला को मंगलवार को आनन-फानन में वाशिंगटन भेजा गया है।