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Tripura Elections: अमित शाह के दौरे से गर्मायी त्रिपुरा की सियासत, ढहते गढ़ को बचाना वामदलों की बड़ी चुनौती

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से त्रिपुरा की राजनीति गर्मा गई है। ऐसे में वामदल की कोशिश है कि आगामी विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर सरकार का गठन किया जाए। पिछले चुनावों भाजपा ने वामदल के 25 वर्षों के शासन का अंत किया था।

By Anurag GuptaEdited By: Anurag GuptaUpdated: Thu, 05 Jan 2023 11:01 PM (IST)
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त्रिपुरा के ढहते गढ़ को बचाना वामदलों की बड़ी चुनौती, सारे हथकंडे अपना रही पार्टी
नई दिल्ली, अरविंद शर्मा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुछ दिन बाद ही गृहमंत्री अमित शाह के दौरे से त्रिपुरा की राजनीति अचानक गर्म हो गई है। राज्य में चुनाव की अधिसूचना कभी भी जारी हो सकती है। केरल के बाद त्रिपुरा वामपंथ का दूसरा बड़ा गढ़ है, जहां मा‌र्क्सवादी भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा) विपक्ष की भूमिका में सबसे ऊपर है।

भाजपा ने ढहाया था माकपा का किला

भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में माकपा के 25 वर्षों के शासन का अंत किया था। अब वापसी की कोशिश है। इसे लेकर वामदलों में बेचैनी है। सत्ता छीनने के सारे हथकंडे आजमाए जा रहे। भाजपा और माकपा के समर्थकों में मारपीट इसी व्याकुलता की ओर संकेत करती है। विचारधारा को काफी हद तक लचीला कर भाजपा विरोध के नाम पर कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए माकपा के कदम बढ़ गए हैं।

त्रिपुरा की राजनीति कितनी गर्म होने जा रही है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अमित शाह के दौरे से पहले दोनों दलों के टकराव ने हिंसक रूप ले लिया। पिछले चुनाव में भाजपा ने वामदल का गढ़ ध्वस्त किया था। वाम की परेशानी यह है कि केरल में इस बार सत्ता जाना तय है। अगर त्रिपुरा में वापसी हो तो राजनीतिक अहमियत थोड़ी बहुत बची रहेगी वरना पूरी तरह हाशिए पर होगी। यही कारण है कि त्रिपुरा में हर कोशिश शुरू हो गई है। बेचैनी कितनी है इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के केरल में प्रवेश का प्रचंड विरोध करने वाले वामदलों को त्रिपुरा में कांग्रेस का सहयोग चाहिए।

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माकपा के अतुल अंजान ने कहा कि अगर साथ नहीं आए तो भाजपा को हराना संभव नहीं होगा। माकपा के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी ने भी कांग्रेस एवं अन्य दलों के साथ गठबंधन की संभावनाओं से इनकार नहीं किया है।

देववर्मा की पार्टी से भाजपा को मिल रही चुनौती

भाजपा गठबंधन के सामने नई चुनौती त्रिपुरा राजपरिवार के प्रद्योत माणिक्य देववर्मा की नई पार्टी से मिल रही है। उन्होंने टिपरा मोथा नाम का दल बनाया है और भाजपा से अलग अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करने का संकेत दिया है। देववर्मा की पार्टी का आदिवासी क्षेत्रों में अच्छी पकड़ मानी जा रही है। राज्य की एक तिहाई आबादी आदिवासी बहुल है।

अब तक हो चुके हैं 10 विधानसभा चुनाव

त्रिपुरा विधानसभा में सीटों की संख्या 60 है। 21 जनवरी 1972 में राज्य के गठन के बाद से विधानसभा के दस चुनाव हो चुके हैं। सात बार माकपा एवं दो बार कांग्रेस की सरकार बनी है। 2018 से भाजपा का कब्जा है। कांग्रेस के हाथ से माकपा ने 1993 में सत्ता छीनी थी। पांच वर्ष पहले सहयोगी दल इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट आफ त्रिपुरा (आइपीएफटी) के साथ चुनाव लड़ते हुए भाजपा ने कुल 41 सीटें जीती थीं। अकेले भाजपा को 35 सीटें मिली थीं। 1993 से राज्य की सत्ता पर लगातार पांच बार कब्जा जमाने वाले वाम मोर्चा को मात्र 18 सीटों से संतोष करना पड़ा था। त्रिपुरा में भाजपा ने प्रारंभ से ही प्रयासों में कोई कमी नहीं की, लेकिन फिर भी प्रभाव नहीं जमा पाया था। उसे सफलता तभी मिली जब 2018 में क्षेत्रीय दल से गठबंधन किया।

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