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SP-BSP के बैर ने UP में बिगाड़ी I.N.D.I.A. की बिसात, कई राज्यों में सीटों के बंटवारे को लेकर विपक्षी गठबंधन में फंसा पेंच

अपने जन्मदिन पर मायावती ने जब गठबंधन से इनकार की घोषणा की तो उनके निशाने पर खास तौर पर सपा रही। उसे गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला बताया। गठबंधन से बसपा को लाभ न होने की दलीलें दीं। कांग्रेस की ताकत यूपी में फिलहाल बहुत कम है। 2014 में उसे 7.53 प्रतिशत तो 2019 में 6.36 प्रतिशत वोट ही मिला। किसी जातीय वोटबैंक पर उसकी पकड़ रही नहीं है।

By Jagran News Edited By: Piyush Kumar Updated: Mon, 15 Jan 2024 09:46 PM (IST)
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आगामी लोकसभा चुनाव में बसपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी।(फोटो सोर्स: जागरण)

जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से 2024 के लोकसभा चुनाव में अकेले उतरने की घोषणा ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता की कोशिश को पलीता लगा दिया। यह तय हो गया है कि 80 सीटो वाले इस प्रदेश में भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त उम्मीदवार नहीं होगा।

आइएनडीआइए में शामिल दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर पश्चिम बंगाल, पंजाब, दिल्ली, बिहार आदि राज्यों में पेंच फंस रहा है। यहां मामले को सुलझाने के साथ ही कांग्रेस हाईकमान की कसरत उत्तर प्रदेश को लेकर भी चल रही थी, जहां वह बसपा को भी गठबंधन में लाने के लिए प्रयासरत थी।

2014 में बसपा को वोट प्रतिशत 19.77 प्रतिशत था

सूत्रों के अनुसार, सपा इस पर सहमत नहीं थी, लेकिन कांग्रेस के बड़े नेताओं ने हर बार सपा को यही समझाने का प्रयास किया कि उत्तर प्रदेश में लगभग बीस प्रतिशत दलित वोट है। भले ही भाजपा ने उस वोट में सेंध लगा दी हो, फिर भी मायावती की मुट्ठी में काफी दलित वोट है। साथ ही उनकी कुछ पकड़ मुस्लिम मतों पर भी है। यही कारण है कि 2014 में अकेले चुनाव लड़ने पर बेशक बसपा को एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली, लेकिन वोट प्रतिशत 19.77 प्रतिशत था।

2019 में बसपा ने 19.43 प्रतिशत मत प्राप्त किया

इसी तरह 2019 में सपा के साथ मिलकर लड़ी बसपा ने 19.43 प्रतिशत मत प्राप्त किया और उसके दस सांसद जीते। कांग्रेस नेताओं ने यह आंकड़ा भी दिखाया कि 2014 में सबसे खराब प्रदर्शन के बावजूद 80 में से 30 से अधिक सीटों पर बसपा ही दूसरे स्थान पर थी। अंदरखाने तेजी से चल रहे कांग्रेस के इन प्रयासों का असर सपा और बसपा, दोनों पर दिखाई दे रहा था या कहें कि अभी भी दिखाई दे रहा है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने विधायकों को हिदायत दी कि मायावती वरिष्ठ नेता हैं, उनके खिलाफ अपमानजनक शब्दों का प्रयोग न करें। वहीं, बसपा अध्यक्ष का रुख कांग्रेस के प्रति नरम हो गया। हां, सपा के प्रति बसपा की नाराजगी बनी रही।

सपा को मायावती ने गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला बताया

सोमवार को अपने जन्मदिन पर मायावती ने जब गठबंधन से इनकार की घोषणा की तो उनके निशाने पर खास तौर पर सपा रही। उसे गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला बताया।

गठबंधन से बसपा को लाभ न होने की दलीलें दीं। कांग्रेस की ताकत यूपी में फिलहाल बहुत कम है। 2014 में उसे 7.53 प्रतिशत तो 2019 में 6.36 प्रतिशत वोट ही मिला। किसी जातीय वोटबैंक पर उसकी पकड़ रही नहीं है।

सपा के पास ओबीसी के नाम पर मजबूती के साथ सिर्फ यादव बिरादरी जुड़ी है और मुस्लिम वोट उसके पास है तो उसमें कुछ हिस्सेदार बसपा भी है। मुस्लिम मतों की एकजुटता भी भाजपा को हरा नहीं सकती, यह सपा-बसपा के गठबंधन में 2019 में दिख चुका है। रालोद का असर पश्चिम उत्तर प्रदेश में सिर्फ कुछ हद तक जाटों पर सिमटा है। ऐसे में बसपा के शामिल होने से बड़ा दलित वोट बैंक जुड़ता और मुस्लिम मतों का बिखराव रुकता।

अभी आस लगाए बैठी कांग्रेस

मायावती के एक बार फिर स्पष्ट इनकार के बाद भी कांग्रेस नेता बसपा से गठबंधन की आस लगाए हैं। तर्क दे रहे हैं कि वह कांग्रेस से नाराज नहीं हैं, क्योंकि सोमवार को वह सपा के साथ भाजपा पर बरसीं, ईवीएम का मुद्दा भी उठाया, लेकिन कांग्रेस का नाम सामान्य रूप से सिर्फ एक बार लिया।

यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता अंशू अवस्थी ने तो बसपा से निर्णय पर पुनर्विचार का आग्रह किया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान अभी मायावती से और बात का प्रयास कर सकता है।

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