गो कैबिनेट: हां और ना के बीच की सियासत करने वाले शिवराज ने दो टूक फैसले लेकर दिखाए नए तेवर
गाय का मुद्दा पुराना है लेकिन सियासत को हमेशा नई ताजगी देता रहा है और अब शिवराज सिंह चौहान को नई पहचान बनाने का मौका भी दे रहा है। मुख्यमंत्री ने लिए लव जिहाद गो कैबिनेट के साथ भ्रष्टाचार व अपराध पर अंकुश के लिए सख्त फैसले।
धनंजय प्रताप सिंह ,भोपाल। सत्ता का सियासी अंदाज उसकी मंशा जाहिर करते हैं, वो भी जब इसमें बदलाव अचानक दिखे। बीते दिनों से मध्यप्रदेश इसका गवाह बन रहा है, जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नए तेवर उपचुनाव के बाद से एक के बाद एक त्वरित फैसलों में सामने आ रहे हैं। बतौर मुख्यमंत्री पिछले पारियों में वे जिन मुद्दों को हां-ना के बीच रखकर चलते थे, उन पर अचानक ही दो टूक फैसले चौंका रहे हैं।
गो कैबिनेट: मध्यप्रदेश में गाय का सियासी महत्व
ऐसा ही एक फैसला है गो कैबिनेट का। मप्र में गाय के सियासी महत्व को इसी से समझ सकते हैं कि कांग्रेस की कमल नाथ सरकार ने भी गायों के लिए न केवल कई घोषणाएं की थीं, बल्कि पूरे प्रदेश में गांव-गांव तक हजारों गौशालाएं स्थापित करने की घोषणा कर दी थी। हालांकि इसे जमीन पर उतार पाने से पहले ही मार्च 2020 में सरकार ही सत्ता से उतर गई। इसके बाद सत्ता में वापसी करने पर चौहान ने भी कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई और उपचुनावों के परिणाम का इंतजार किया। अब जब वह विधानसभा की 28 में 19 सीटें जीत चुके हैं, तो धुंआधार बल्लेबाजी के मूड में दिखाई दे रहे हैं।
लव जिहाद, गो कैबिनेट के साथ भ्रष्टाचार व अपराध पर अंकुश के लिए सख्त फैसले
दरअसल, ये लव जिहाद, गो कैबिनेट के साथ भ्रष्टाचार व अपराध पर अंकुश के लिए सख्त फैसले सीधे जनता से जुड़े हुए मुद्दे रहे हैं, लेकिन इन पर फैसले करते वक्त कोई भी मुख्यमंत्री वोटों के गणित और विपक्ष के लिए बने सियासी अवसर का आंकलन जरूर करेगा, जिसके चलते कमोबेश अब तक इन मामलों पर फैसले टलते रहे हैं। कह सकते हैं कि राजनीतिज्ञों के लिए सत्ता गंवाने से आसान तुष्टिकरण के आरोप झेलना रहा है, लेकिन अब बदले माहौल में यही मुद्दे अग्रिम पंक्ति के नेताओं के तेजतर्रार होने की पहचान बन गए हैं। कमल नाथ सरकार ने भी मिलावट, भ्रष्टाचार और अपराध के खिलाफ अभियान चलाकर देश का ध्यान मप्र की ओर खींचा था। इसके पीछे उनका तर्क निवेश के लिए बेहतर माहौल बनाने का रहा।
मुख्यमंत्री शिवराज नए तेवर में
उधर, उप्र में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भी सख्त तेवर के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में चौहान के लिए भी नए तेवर में दिखना सियासी दृष्टिकोण से भी जरूरी बन चुका है। हालांकि अपने पिछले कार्यकालों में भी चौहान अपराध पर सख्त रहे, जिसके चलते मप्र में सिमी का नेटवर्क, डकैतों के गिरोह खत्म हुए, वहीं महिला सुरक्षा के लिए बलात्कारियों को फांसी की सजा की बड;ी पहल की गई। भ्रष्टाचार के मामलों में आईएएस अधिकारियों से लेकर चपरासी तक पर कार्रवाई की गई।
कामधेनु गौ अभयारण: चौहान मप्र में संघ के एजेंडे पर तेजी से आगे बढ़ने का मन बना चुके
बात गो कैबिनेट की चल रही थी। इसका गठन करने का संकेत है कि चौहान मप्र में संघ के एजेंडे पर तेजी से आगे बढ़ने का मन बना चुके हैं। ये महज संयोग नहीं कि गोपाष्टमी पर आगर मालवा स्थित जिस कामधेनु गौ अभयारण में इसकी पहली बैठक हुई, उसकी नींव आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने साल 2012 में रखी थी। गो कैबिनेट के जरिए चौहान गाय पर किस कदर मेहरबान हैं, इसे समझने के लिए बजट आवंटन पर नजर दौड़ाना ही पर्याप्त है। इसमें शामिल विभागों का बजट देखें तो पशुपालन के लिए आवंटन राशि 919 करोड़ रुपए, वन विभाग 2,698 करोड़ रुपए, पंचायत और ग्रामीण विकास 11,731 करोड़ रुपए, गृह विभाग 7,040 करोड़ रुपए, जबकि किसान कल्याण विभाग 10,630 करोड़ रुपए है। कृषि मंत्री कमल पटेल के अनुसार इस साल 4,000 गौशालाओं का निर्माण होगा।
सीएम ने कहा- मप्र में गायों को लेकर रिसर्च सेंटर बनेगा
कई मौकों पर खुद गायों की पूजा करने वाले चौहान कहते हैं कि मप्र में गायों को लेकर रिसर्च सेंटर बनेगा। पशुओं से संबंधित विभागों के मंत्री और प्रमुख सचिव मिल कर गौरक्षा और संवर्धन के लिए काम करेंगे। वह इसे प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों से भी जोड;ते हैं, कहते हैं इसके लिए गोधन का इस्तेमाल करेंगे। हम लोगों को स्वाबलंबन बनाने गोमाता की अवधारणा लागू करेंगे। गोशालाओं को भी आत्मनिर्भर निभाएंगे। गायों को गोबर और मूत्र का बेहतर उपयोग कैसे करें, इसे लेकर कवायद शुरू कर दी गई है, जिसके जल्द ही बेहतर परिणाम देश के सामने होंगे। चौहान गायों की सेवा को समाज की जागृति, एकता और पारस्परिक सहयोग का जरिया भी मानते हैं। उनके पास गोसेवा को लेकर पूरा खाका जैसे पहले से तैयार है। उनके मुताबिक कई संस्थाएं बेहतर काम कर रही हैं। प्रदेश में स्वसहायता समूह भी गोशालाओं का संचालन करेंगे।
गौशाला मामले पर भाजपा संगठन मुख्यमंत्री शिवराज के साथ खड़ा
मुख्यमंत्री शिवराज देश के उन चुनिंदा नेतृत्वकर्ताओं में शुमार हैं, जिन्हें संगठन का भी साथ मिलता रहा है। गौशाला पर भी भाजपा संगठन उनके साथ खड़ा है। प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा इसे देश में अपनी तरह की अनूठी पहल बताते हैं। उनके मुताबिक अब गोवंश के संरक्षण एवं संवर्धन के उपाय अधिक प्रभावी तरीके से हो सकेंगे।
गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा- भाजपा हमेशा भारतीय संस्कृति की पोषक है
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती इसे अपने कार्यकाल के अभियान पंच-ज का विस्तार बताती हैं। वह इसके लिए मुख्यमंत्री चौहान का अभिनंदन करेंगी। इधर, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कह रहे हैं कि भाजपा हमेशा भारतीय संस्कृति की पोषक रही है। इसी भावना से प्रेरित होकर गो-कैबिनेट गठित हुई है। हमारे तीन सुखदाता हैं। गीता, गंगा और गो-माता।
गौ कैबिनेट का गठन मध्यप्रदेश सरकार के लिए चुनौती
हालांकि गौ कैबिनेट के गठन ने देश का ध्यान जिन आंकड़ों की तरफ खींचा है, जो अब सरकार के लिए चुनौती होंगे। मध्यप्रदेश में करीब 7 लाख गाय चारे की तलाश में सड़कों पर घूमती रहती हैं, जिनमें से कई हादसे का शिकार होती हैं, तो कई हादसे की वजह। सख्त कानून के बावजूद गो तस्करी और हत्या पर प्रभावी अंकुश लगाया जाना शेष है। मौजूदा गौशालाओं की कमजोर स्थिति भी वित्तीय चुनौतियां बढ़ाएंगी, वहीं सबसे ज्यादा नजर गौसेवा से प्रदेश की आत्मनिर्भरता पर रहेगी। गोबर और गोमूत्र से आर्थिक मजबूती सतत और दीर्घकालिक प्रभाव वाले मसले हैं, लेकिन इसके प्रभाव और इस पर जवाब की आतुरता से इनकार नहीं किया जा सकता।
गाय के मुद्दे पर सियासी घेराबंदी तय
इसके अलावा सियासी घेराबंदी भी तय है। गाय के मुद्दे को हिंदुत्व के एजेंडे से अलग नहीं कर सकते। भाजपा राममंदिर, गाय, गंगा व नर्मदा, राम वन गमन पथ आदि मुद्दों के साथ आगे बढ; रही थी, जबकि कमल नाथ ने सरकार में आते ही गायों की सुरक्षा पर काम शुरू कर दिया था, वहीं राम वनगमन पथ और सीता मंदिर पर सक्रियता बढ़ा दी थी। समय-समय पर कमल नाथ हनुमान भक्त के रूप में खुद को पेश करते रहे हैं। ऐसे में गाय का मुद्दा कांग्रेस यूं ही हाथ से जाने न देगी। वह गो कैबिनेट पर अलग से नजर रखेगी ही और उसके फैसलों व क्रियान्वयन पर सरकार को घेरेगी ही।
गो कैबिनेट को कमल नाथ निजी हाथों में सौंपना चाहते थे
आपको याद होगा कि जहां गो कैबिनेट की पहली बैठक हुई, उसे कमल नाथ निजी हाथों में सौंपना चाहते थे। ये जानते हुए कि शिवराज ने इसे बनाने का फैसला दूसरे कार्यकाल के आखिर में लिया था। 2013 के विधानसभा चुनाव के पहले इसका भूमिपूजन हुआ था।
गाय का मुद्दा पुराना, लेकिन सियासत को हमेशा नई ताजगी देता रहा
इसमें दो राय नहीं कि गाय का मुद्दा पुराना है, लेकिन सियासत को हमेशा नई ताजगी देता रहा है और अब शिवराज सिंह चौहान को नई पहचान बनाने का मौका भी दे रहा है।